Loud Fireworks Effect : प्रदूषण में वृद्वि के साथ सुनने की क्षमता छीनते हैं तेज आवाज के पटाखे

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Loud Fireworks Effect : प्रदूषण में वृद्वि के साथ सुनने की क्षमता छीनते हैं तेज आवाज के पटाखे
Loud Fireworks Effect : प्रदूषण में वृद्वि के साथ सुनने की क्षमता छीनते हैं तेज आवाज के पटाखे
  • 90 डेसीबल से अधिक आवाज होती है नुकसानदायक

Loud firecrackers Effect(आज समाज) :  माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार एनजीटी व प्रदेश सरकार ने भी दीपावली पर्व पर प्रदेश में आतिशबाजी पर रोक लगा दी है। तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के उदेश्य से लागू किए गए आदेशों के तहत दीपावली पर्व पर आतिशबाजी पर रोक रहेगी। दिवाली पर्व पर केवल ग्रीन पटाखे ही जलाए जा सकेंगे। देखा जाए तो प्रदूषण में वृद्वि के साथ-साथ दीपावली पर खुशियों की आतिशबाजी हमारी सुनने की क्षमता को भी लगातार प्रभावित कर रही है।

स्थिति यह है कि तेज आवाज के पटाखों पर प्रतिबंध के बाद भी लोग इनको चलाते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप दीपावली की रात को प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाता है। यह प्रदूषण इतना अधिक होता है कि इसकी मात्रा बढक़र 140 डेसीबल तक पहुंच जाती है। दीपावली की रात को होने वाली आतिशबाजी के दौरान कानों के नजदीक पटाखे चलाने पर नसों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

सरकार की रोक के बावजूद भी पटाखें की बिक्री

यदि चलने वाले पटाखे का शोर 90 डेसीबल से अधिक होता तो यह कान की नसों को काफी नुकसान पहुंचाता है। कई पटाखों का शोर तो इतना अधिक होता है कि वे कानों के पर्दो को भी काफी अधिक नुकसान पहुंचाते हैं, और इस तरह के मामलों में कमी आने की बजाय लगातार बढ़ रहे हैं। हालांकि सरकार की रोक के बावजूद भी पटाखें की बिक्री से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि अधिकांश दुकानदार लालच में चोरी छिपे इससे भी अधिक ध्वनि वाले पटाखों को बेचते हैं जिनका असर बहुत अधिक होता है।

स्थायी रूप से कर रहे हैं बहरे

अधिक ध्वनि प्रदूषण करने वाले पटाखों से बहुत अधिक नुकसान हो रहा है। इनकी वजह से कानों की नसें स्थायी रूप से डैमेज हो जाती हैं, जिसके कारण सुनना बंद हो जाता है। इनमें आपरेशन करने के बाद भी सुनने की क्षमता वापस लौटने की गुजाइंश बहुत कम रहती है। अधिकांश मामलों में सुनने की क्षमता पूरी तरह से चली जाती है। चिकित्सकों के अनुसार इस तरह के मामलों में कम होने की बजाय बढ़ोतरी हो रही है। वहीं प्रशासनिक अधिकारियों की माने तो 145 डेसीबल से अधिक शोर करने वाले पटाखों की बिक्री पर पूर्णत: रोक लगाई हुई है।

ध्वनि प्रदूषण बढक़र 140 डेसीबल

इन सब के साथ हमें अपने बारे में भी सोचना होगा क्योंकि आतिशबाजी से सेहत के साथ हमारे पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान हो रहा है। चिकित्सकों ने बताया कि 90 डेसीबल से अधिक का शोर कानों के नुकसानदायक होता है। दीपावली की आतिशबाजी से यह ध्वनि प्रदूषण बढक़र 140 डेसीबल तक पहुंच जाता है, जिसका व्यापक असर देखने को मिलता है। अधिक क्षमता के पटाखे चलाने की वजह से कई लोग स्थायी रूप से बहरे भी जाते हैं। इसलिए आतिशबाजी न ही करे तो बेहतर होगा।

वैसे सुप्रीम कोर्ट व सरकार के आदेशों के बाद युवा वर्ग मायूस नजर आ रहा है तथा उनका कहना है कि दीपावली की शोभा आतिशबाजी से है तथा सरकार को चाहिए कि वह दीपावली पर्व पर खुलकर आतिशबाजी की छूट दे बेशक तेज आवाज के पटाखों पर प्रतिबंध लगाए परंतु एक दिन तो आतिशबाजी के साथ खुशियां मनाने का मौका मिलना ही चाहिए। वहीं यह भी स्वीकार करना होगा कि दीपावली पूरी तरह से पटाखामुक्त नहीं होगी लेकिन समय रहते पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए तो यह घातक साबित हो सकता है।

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