Shardiya Navratri: जानें सप्तमी तिथि को ही क्यों पंडालों में देवी की आंखों से हटाई जाती है पट्टी

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Shardiya Navratri: जानें सप्तमी तिथि को ही क्यों पंडालों में देवी की आंखों से हटाई जाती है पट्टी
Shardiya Navratri: जानें सप्तमी तिथि को ही क्यों पंडालों में देवी की आंखों से हटाई जाती है पट्टी

माना जाता है कि इसी क्षण से देवी दुर्गा की प्रतिमा में होती है प्राण-प्रतिष्ठा
Shardiya Navratri, (आज समाज), नई दिल्ली: नवरात्र में सप्तमी तिथि का अपना अलग ही महत्व है और इस तिथि को महासप्तमी तिथि भी कहा जाता है। सप्तमी तिथि को एक तरफ मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि की पूजा अर्चना की जाएगी। वहीं दूसरी तरफ पंडालों में मां दुर्गा की आंखों से पट्टी हटाई जाएगी। सप्तमी तिथि को दुर्गा पूजा का पहला दिन माना जाता है क्योंकि इस दिन पंडालों में इस दिन माता की आंखों से पट्टी हटाई जाती है। खासकर बंगाल और पूर्वी भारत के पंडालों में सप्तमी को देवी की प्रतिमा की आंखों पर लगी पट्टी हटाई जाती है।

इसे माना जाता है कि इसी क्षण से देवी दुर्गा की प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा होती है और वे पूरी तरह जाग्रत हो जाती हैं। सप्तमी तिथि को महास्नान का भी बड़ा महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा और अन्य पवित्र नदियों का आह्वान कर कलश में स्थापित किया जाता है और इसी समय देवी को आमंत्रित किया जाता है। आइए जानते हैं सप्तमी तिथि को ही क्यों पंडालों में देवी की आंखों से पट्टी हटाई जाती है।

मां दुर्गा के साथ-साथ इनकी भी आंखों से हटती है पट्टी

पंडालों में मां दुर्गा के साथ-साथ माता सरस्वती, माता लक्ष्मी, गणेशजी, भगवान शिव और कार्तिकेयजी की मूर्तियां होती हैं और इस दिन सभी की आंखों पर लगी पट्टी को हटाया जाता है। प्रतिमा निर्माण की शुरूआत महालया से पहले ही हो जाती है, लेकिन मां की आंखें आखिरी चरण में बनाई जाती हैं।

परंपरा है कि सप्तमी के दिन देवी की आंखों को पूरी तरह से सजाया-संवारा जाता है और पट्टी हटाकर माता का दिव्य स्वरूप प्रकट किया जाता है। इसे चक्षु दान भी कहा जाता है, यानी देवी की आंखों में दिव्यता का संचार। पट्टी हटने के बाद माना जाता है कि देवी दुर्गा धरती पर अवतरित हो चुकी हैं और अपने भक्तों की प्रार्थना सुनने लगी हैं।

इसलिए हटाई जाती है सप्तमी तिथि को आंखों से पट्टी

माना जाता है कि देवी की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा 6 दिन बाद होती है। मान्यता के अनुसार, इन 6 दिनों तक माता के दर्शन नहीं किए जाते हैं। इसलिए मूर्ति को पूरी तरह ढक दिया जाता है। लेकिन अब पंडाल में आने वाले श्रद्धालु दर्शन भी करना चाहते हैं इसलिए अब केवल माता की आखों पर पट्टी बांध दी जाती है ताकि माता के भक्त दर्शन कर सकें। सप्तमी तिथि को माता समेत सभी की आंखों से पट्टी हटाई जाती है और अष्टमी और नवमी तिथि पूजा अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध सप्तमी तिथि को किया था इसलिए इस दिन माता की आंख खोलकर विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। बता दें कि पंडालों में मां दुर्गा की आंखें खोलकर सिंदूर खेला होने के बाद माता रानी की विदाई कर दी जाती है।

देवी दुर्गा के पूरी तरह जाग्रत होने का प्रतीक

सप्तमी से पंडालों में पूजा-अर्चना का माहौल और अधिक भव्य हो जाता है। भक्त देवी की आंखों में दर्शन कर अपने मनोकामना सिद्ध होने की प्रार्थना करते हैं। यह क्षण श्रद्धालुओं के लिए बेहद भावुक और पवित्र माना जाता है, क्योंकि तभी से मां का सजीव स्वरूप उपस्थित माना जाता है। इसलिए सप्तमी को देवी की आंखों से पट्टी हटाने की परंपरा केवल रीति-रिवाज नहीं, बल्कि देवी दुर्गा के पूरी तरह जाग्रत होने का प्रतीक है। सप्तमी तिथि को आंखों से पट्टी हटाना उसी दिव्य प्रक्रिया का हिस्सा है, जिससे देवी को जागृत रूप में पूजनीय माना जाता है।

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