Sama Chakeva: जानें सामा चकेवा पर्व का महत्व

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Sama Chakeva: जानें सामा चकेवा पर्व का महत्व
Sama Chakeva: जानें सामा चकेवा पर्व का महत्व

मिथिला क्षेत्र का प्रसिद्ध पर्व सामा चकेवा, बहनें मिट्टी की मूर्तियां बनाकर करती हैं पूजा
Sama Chakeva, (आज समाज), नई दिल्ली: भाई बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक पर्व सामा चकेवा प्रमुख रूप से मिथिला क्षेत्र में मनाया जाता है। इस पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से हो चुकी है। यह पर्व पूर्णिमा तक चलता है। इस दौरान बहनें मिट्टी की मूर्तियां बनाकर पूजा करती हैं। इन मूर्तियों का विसर्जन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है। इन प्रतिमाओं में सामा चकेवा चुगला, सतभैया, वृंदावन एवं कुछ खास पक्षी होते हैं। यह पर्व भाई बहन के पवित्र रिश्ते को दर्शाता है।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण की पुत्री सामा के संबंध में किसी चुगले ने पिता से सामा की शिकायत कर दी। कृष्ण गुस्से में आकर सामा को पक्षी बन जाने का श्राप दिया। बहुत दिनों तक सामा इस श्राप के कारण पक्षी बनी रही, किंतु अपने भाई चकेवा ने प्रेम व त्याग के बल पर सामा को मनुष्य का रूप मिला। उसके साथ हीं चुगले को प्रताड़ित भी करवाया।

चुगले प्रतिमा को पीटने की परंपरा

उसी की याद में भाई बहन के पवित्र रिश्ते को छठ पर्व के आठवें दिन निभाया जाता है। इस पर्व में चुगले की प्रतिमा बनाकर उसकी चोटी में आग लगाकर उसे पीटने की भी परंपरा है। परंपरा के अनुसार धान की नई फसल का चूड़े बनाकर बहनें भाई को चूड़ा दही खिलाती हैं।

पद्म पुराण में भी उल्लेख

लोकपर्व सामा-चकेवा का उल्लेख पद्म पुराण में भी है। चुड़क नामक एक चुगलबाज ने एक बार श्रीकृष्ण से यह चुगली कर दी कि उनकी पुत्री साम्बवती वृंदावन जाने के क्रम में एक ऋषि के संग प्रेमालाप कर रही थी। क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने अपनी पुत्री और उस ऋषि को शाप देकर मैना बना दिया। साम्बवती के वियोग में उसका पति चक्रवाक भी मैना बन गया। यह सब जानने के बाद साम्बवती के भाई साम्ब ने घोर तपस्या कर श्रीकृष्ण को प्रसन्न किया और अपनी बहन और जीजा को श्राप से मुक्त कराया। तबसे ही मिथिला में सामा-चकेवा पर्व मनाया जाता है।

खुशहाल जीवन के लिए मंगल कामना करती हैं बहनें

सात दिनों तक चलने वाले इस पर्व में बहनें भाई की खुशहाल जीवन के लिए मंगल कामना करती हैं। इस पर्व में बहनें पारंपरिक गीत गाती हैं। सामा-चकेवा व चुगला की कथा को गीतों के रूप में प्रस्तुत करती हैं। आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंच कर गीतों के साथ उसका विसर्जन करती हैं।