Gram Farming: चने की बुवाई के समय इन बातों का रखें ध्यान

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Gram Farming: चने की बुवाई के समय इन बातों का रखें ध्यान
Gram Farming: चने की बुवाई के समय इन बातों का रखें ध्यान

जानें रख-रखाव और बचाव के उपाय
Gram Farming, (आज समाज), नई दिल्ली: उत्तर भारत में अब चने की बुआई का समय शुरू हो चुका है। धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, कपास और गन्ने जैसी खरीफ फसलों की कटाई के बाद जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, वहां नवंबर के अंत तक या दिसंबर के पहले हफ्ते तक चना बोना सबसे उपयुक्त रहता है। आईसीएआर से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों की मदद के लिए चने की बुआई से जुड़ी जरूरी जानकारी साझा की है। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि जिन खेतों में उकठा रोग का असर ज्यादा होता है, वहां थोड़ी देरी से बुआई करने से लाभ होता है।

उपयुक्त किस्में

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि चने की खेती के लिए किस्म का चयन बेहद महत्वपूर्ण है। पछेती बुआई के लिए पूसा चना विजय, एचसी-5, जेजी-12 जैसी देसी प्रजातियां और पूसा 1003, राज विजय काबुली 101, जीएनजी 1292, हरियाणा काबुली चना-4 जैसी काबुली किस्में उपयुक्त हैं।

कम पानी वाले इलाकों में बोएं ये किस्में

वहीं जिन इलाकों में सूखा या सीमित जल उपलब्धता रहती है, वहां अत्यधिक जलवायु सहिष्णु किस्में जैसे पूसा 3043 (बीजी 3043), पूसा चना 10216 (बीजीएम 10216) और सुपर एनिगेरी-1 (एमएबीसी-डब्ल्यूआर-एसएआई) की सिफारिश की जाती है। उच्च तापमान या गर्मी सहन करने वाली फसलों के लिए भी पूसा 3043 को प्रभावी माना गया है।

हाल के वर्षों में बायो-फोर्टिफाइड किस्मों की मांग तेजी से बढ़ी है। इनमें आईपीसी 2005-62 (देसी) जिसमें 27.25 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है और शालीमार चना-2 जिसमें 27 प्रतिशत प्रोटीन होता है, किसानों को बेहतर उत्पादन के साथ पोषण मूल्य भी प्रदान करते हैं।

बुआई से पहले करें बीजों का उपचार

बीजोपचार चने की पैदावार बढ़ाने की एक अहम कड़ी है। कृषि विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बीजों को बोने से पहले कवकनाशी से उपचारित करें ताकि रोगों से बचाव हो सके। इसके लिए प्रति किलोग्राम बीज पर एक ग्राम बाविस्टीन या 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा का प्रयोग किया जा सकता है।

इसके अलावा बीजों को राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करना चाहिए, जिससे पौधों की वृद्धि बेहतर होती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए राइजोबियम के दो पैकेट पर्याप्त होते हैं और बीजोपचार बुआई से 10-12 घंटे पहले किया जाना चाहिए। इससे उपज में 15 से 20 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई है।

दलहनी फसलों में फॉस्फोरस की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। मिट्टी में उपलब्ध न होने वाले फॉस्फेट को पौधों के लिए उपयोगी बनाने में फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया (पीएसबी) का प्रयोग कारगर साबित होता है।

बुआई करते समय रखें इन बातों का ध्यान

चने की बुआई अपेक्षाकृत गहराई में करनी चाहिए, ताकि पौधों की जड़ों तक पर्याप्त नमी बनी रहे। सिंचित क्षेत्रों में 5 से 7 सेंटीमीटर और बारानी इलाकों में 7 से 10 सेंटीमीटर की गहराई तक बुआई उपयुक्त रहती है। पछेती बुआई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 सेंटीमीटर रखी जानी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 50 किलोग्राम फॉस्फोरस बुआई के समय देना चाहिए। जहां मिट्टी में गंधक की कमी है, वहां 20 किलोग्राम गंधक और जिंक की कमी वाली भूमि में 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर डालना फायदेमंद होता है।