- करीब 200 युवाओं की टीम रक्तदान के लिए सदैव है तत्पर
 - डॉ. भूरिया युवाओं के लिए बने प्रेरणा स्त्रोत, उनकी प्रेरणा से एक दर्जन के करीब बच्चे डॉक्टर बनने के लिए नीट की कर रहे है तैयारी
 
(Bhiwani News) लोहारू। एक चिकित्सक बनना अपने आप में गौरव की बात होती है परंतु जब विषम परिस्थितियों से लड़ते हुए इस मुकाम को हासिल करना और उसके बाद युवाओं में रक्तदान की भावना को जागृत करना और भी सम्मान की बात हो जाती है। एक ऐसे ही शख्स डॉ. सुरेश भूरिया हैं जिन्होंने विषम परिस्थितियों से लड़ते हुए वर्ष 2006 में पंडित भगवत दयाल शर्मा स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान पीजीआईएमएस रोहतक से एमबीबीएस किया और उसके बाद से पीजी कर अपने क्षेत्र के साथ-साथ अपने गांव का नाम रोशन किया वह भी तब जब गांव में डॉक्टर बनने की सोच तक नहीं सकता था।
डॉ. सुरेश भूरिया गांव के युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बने हुए
आज डॉ. सुरेश भूरिया गांव के युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं उनकी प्रेरणा पाकर दर्जनभर के करीब लडक़े और लड़कियां नीट की तैयारी में जुटे हुए हैं वहीं एक छात्र ने एमबीबीएस कर लिया और दो छात्र एमबीबीएस कर रहे हैं। डॉ. सुरेश भूरिया ने बताया कि पिता स्व. सोहन लाल भूरिया राजस्थान में बिजली विभाग में एईएन के पद पर कार्यरत थे। उनका सपना था कि उसका बेटा एक बेहतरीन चिकित्सक बनकर समाज सेवा कर सके।
इसके लिए उन्होंने पीएमटी की तैयारी करवाई और वर्ष 2000 में उनका स्टेट कोटे से पंडित भगवत दयाल शर्मा स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान पीजीआईएमएस रोहतक में एडमिशन हुआ। वर्ष 2006 में एमबीबीएस करने के बाद राजस्थान विश्वविद्यालय एंड साइंस अजमेर से ऑर्थो डिस्क में मास्टर डिग्री प्राप्त की इसके बाद वे अपने पिता की बताई हुई बात समाज सेवा के लिए जुट गए। डॉ. सुरेश भूरिया ने पीजीआई रोहतक प्रोफेसर भी रह चुके हैं और उन्होंने अपने प्रैक्टिस कार्यकाल के दौरान देखा कि बहुत से ऐसे मरीजों को समय पर ब्लड नहीं मिलने के कारण अपनी कीमती जान गंवानी पड़ी है।
155 युवाओं ने रक्तदान में भाग लिया
इसके बाद उन्होंने रक्तदान शिविर आयोजित करने की ठानी और सबसे पहला कैंप अपने ही गांव रहीमपुर में अपने पिता की पुण्यतिथि पर आयोजित किया जिसके 155 युवाओं ने रक्तदान में भाग लिया। इसके बाद से अब तक उन्होंने 7 से अधिक रक्तदान शिविर लगाकर युवाओं की एक टीम बनाकर जरूरतमंदों को रक्त मुहैया करवा रहे हैं।
डॉ. सुरेश भूरिया से इंस्पायर गांव के बच्चे नीट की तैयारी में जुटे हुए हैं और उनकी प्रेरणा पाकर दर्जनभर के करीब लडक़े और लड़कियां नीट की तैयारी में जुटे हुए हैं वहीं एक छात्र ने एमबीबीएस कर लिया और दो छात्र एमबीबीएस कर रहे हैं।
रक्तदान के प्रति शहरी इलाकों से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र में आज भी डर का माहौल
डॉ. सुरेश भूरिया ने बताया कि उनके जीवन के मकसद साफ है कि गांव के बच्चों को अधिक से अधिक चिकित्सका के क्षेत्र में ले जाना है। इसके लिए स्वयं वे वर्ष में दो बार गांव आकर बच्चों को प्रेरित करने का काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जो गरीबी मैंने देखी है मेरा सपना है कि उस गरीबी को और बच्चे ना देखें। रक्तदान को लेकर उन्होंने कहा कि रक्तदान के प्रति शहरी इलाकों से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र में आज भी डर का माहौल है।
ग्रामीण क्षेत्र के लोग खून देने से कमजोरी और बीमारियों के डर से अपने करीबी लोगों को भी रक्तदान करने से घबराते हैं। लेकिन डॉ. सुरेश भूरिया ने ग्रामीण क्षेत्र में रक्तदान और रक्तदान के प्रति जागरूकता की मुहिम छेड़ी है जो रंग भी ला रही है। उनका मानना है कि किसी भी सुधार की शुरुआत घर से फिर गांव से होती है इसलिए उनका प्रयास है कि गांव के अधिक से अधिक युवाओं को इस मुहिम से जुड़ जाए और इसके साथ-साथ युवाओं को नशे जैसी बुरी आदत को छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाए।
बॉक्स: डॉ. सुरेश भूरिया का मानना है कि शहरी क्षेत्र में तो रक्तदान के लिए ज्यादा समस्या नहीं आती है. ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के मन में रक्तदान को लेकर तरह-तरह की भ्रांतिया हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में रक्तदान के प्रति लोगों को जागरूक करना कठिन काम था, लेकिन हम कुछ लोगों ने मिलकर लोगों को जागरूक करने का काम किया और आज कम से कम उनके गांव रहीमपुर में जागरूकता आई है और करीब 200 से अधिक युवा आगे बढक़र रक्तदान कर रहे हैं।


