Paush Maas Puja Benefits: पौष माह को क्यों माना जाता है देवताओं का तपस्या काल?

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Paush Maas Puja Benefits: पौष माह को क्यों माना जाता है देवताओं का तपस्या काल?
Paush Maas Puja Benefits: पौष माह को क्यों माना जाता है देवताओं का तपस्या काल?

जानें पुराणों में क्या कहा गया
Paush Maas Puja Benefits, (आज समाज), नई दिल्ली: हिन्दू पंचांग में पौष माह को विशेष महत्व इसलिए दिया गया है क्योंकि इसे देवताओं के गहन तप और आंतरिक साधना का काल माना गया है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि सूर्य के उत्तरायण होने से पहले ब्रह्मांड की ऊर्जाएं अत्यंत शांत, संतुलित और स्थिर हो जाती हैं।

इस स्थिरता के कारण देवगण अपनी दिव्य शक्तियों को पुन: जाग्रत करने, उन्हें शुद्ध करने और ऊर्जा संचय के लिए तप में लीन रहते हैं। इस दौरान ब्रह्मांड में फैलने वाली सात्विक ऊर्जा मनुष्य के मन, बुद्धि और चित्त पर गहरा प्रभाव डालती है, जिससे साधना, जप, ध्यान और संकल्प अधिक फलदायी होते हैं।

पुराणों में वर्णित देवताओं की तपस्या

स्कंद पुराण और पद्म पुराण में पौष माह को देवताओं की गहन साधना का काल बताया गया है। स्कंद पुराण के अनुसार, जब सूर्य अपनी तीव्रतम स्थिति यानी ध्रुव ऊर्जा के समीप होता है, तब देवता अपनी दिव्य शक्तियों को स्थिर रखने हेतु मौन तप में प्रवेश करते हैं।

इस अवधि में देवताओं का तेज भीतर की ओर केंद्रित रहता है, जिससे उनकी कृपा बाहरी रूप में अपेक्षाकृत शांत अनुभव होती है। इसी कारण यह महीना पृथ्वी पर भी अधिक सात्त्विक, निश्चल और शांत वातावरण उत्पन्न करता है। कहा गया है कि देवताओं के तप के प्रभाव से ब्रह्मांड में सूक्ष्म दिव्य ऊर्जा अत्यधिक पवित्र होती है।

ब्रह्मांडीय ऊर्जा और वातावरण का सात्विक होना

शास्त्रों के अनुसार, पौष माह में सूर्य की किरणों और ग्रहों की गति में सूक्ष्म परिवर्तन होता है, जिससे ब्रह्मांडीय ऊर्जा एक विशिष्ट स्थिरता प्राप्त करती है। यह स्थिरता वातावरण में सात्त्विकता को बढ़ाती है, परिणामस्वरूप मनुष्य की मानसिक और आध्यात्मिक क्षमता उभरकर सामने आती है।

इस समय साधना, योग, ध्यान और संकल्प अधिक आसानी से सफल होते हैं क्योंकि प्रकृति स्वयं साधक के पक्ष में कार्य करती है। नकारात्मक विचार, आलस्य, भ्रम और मानसिक अशांति स्वत: कम होने लगती है। इसी कारण पौष मास को मनोवृत्ति की शुद्धि और दिव्य चेतना के जागरण का सर्वोत्तम समय माना गया है।

पौष मास में व्रत-उपवास की आध्यात्मिक शक्ति

पौष मास में किए गए व्रत और उपवास को अत्यंत पवित्र और फलदायी माना गया है। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि इस काल में किया गया संयम साधक के मन, शरीर और चेतना को एक विशेष शुद्धि प्रदान करता है। पौष पूर्णिमा, सप्तमी और एकादशी जैसे व्रत मानसिक स्थिरता, संकल्प शक्ति और आत्म-अनुशासन को बढ़ाते हैं।

उपवास के दौरान शरीर हल्का और मन अधिक शांत होता है, जिससे ध्यान, जप और साधना की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। इस महीने की सात्विक ऊर्जा व्रत के प्रभाव को और गहरा बनाती है, इसलिए पौष मास को तप और संयम का श्रेष्ठ समय माना गया है।

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