Who is responsible and whose accountability? कौन जिम्मेदार और किसकी जवाबदेही?

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पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। कौन जीता? क्या फर्क पड़ता है? हारने वाली हमेशा जनता ही होती है।
एक तरफ कोविड से निरंतर जंग हारते लोग हैं और दूसरी तरफ लोकतंत्र की दुहाई देते राजनेता। सोचने वाली बात यह है कि लोक के बिना तंत्र चलेगा कैसे। शायद चल भी जाए, लेकिन लोक के बिना तंत्र दंभ किसे दिखायेगा। हारते लोग, उनके रिश्तेदार, हर तरफ रोते-चीखते लोग, क्या ये सब उस राजनीतिक जीत या हार से ऊपर है? सरकारें यह दावा कर रही हैं कि उनकी व्यवस्था पुरजोर है। उनके पास बेड, दवाई, आॅक्सीजन की कोई किल्लत नहीं है। उन सरकारों के पास कैसी किल्लत? किल्लत तो आम लोगों के लिए है।
देश की राजनीति इतनी संवेदनहीन हो जाएगी, यह मैंने कभी नहीं सोचा था। यह भी कहां सोचा था कि उस सत्ता के समर्थक भी इतने संवेदनहीन हो जाएंगे कि मदद मांग रहे लोगों को यह दलील देंगे कि सरकार कितनों को मदद देगी। ऐसे समर्थकों को याद रखना चाहिए कि अगला घर आपका भी हो सकता है और कोई आपको भी यही दलील दे सकता है। समझना जरूरी है कि जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया उनके लिए जीवन दोबारा वैसा नहीं होगा।
बात रही बेहतर व्यवस्था की तो उसे भी आंकड़े ध्वस्त कर देंगे। जब कोविद-19 महामारी की पहली लहर पिछले साल के अंत में कम हो रही थी, तब भारत में 138 करोड़ की आबादी के लिए 15,375 समर्पित उपचार केन्द्रों में 15 लाख से अधिक आइसोलेशन बेड थे। यह प्रति 1,000 लोगों पर 1 बेड के बराबर है। स्वास्थ्य मंत्रालय की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से सिर्फ 18 प्रतिशत ही आॅक्सीजन समर्थित बेड थे। सरकारी आंकड़े को ही ले लें तो इससे बहुत ज्यादा लोगों को इन बेड की जरूरत थी। प्रति 1000 व्यक्ति पर लगबग 100- 150 लोगों को आॅक्सीजन की जरूरत पड़ती है।
ऐसे में 1000 लोगों पर 1 बेड और उनमें भी केवल 18 प्रतिशत ही आॅक्सीजन समर्थित। समझना शायद मुश्किल ना हो कि हालात क्यां हैं
और जवाबदेही किसकी बनती है? बेहतरीन चिकित्सा व्यवस्था के आंकड़ों में और अंदर घुसते हैं। इन कोविड समर्पित केन्द्रों में से प्रत्येक में औसतन 5.2 गहन देखभाल इकाई (आईसीयू) बेड थे। कुल मिलाकर, कोविड रोगियों के लिए कुल 80,583 आईसीयू बेड थे, और इनमें से लगभग आधे वेंटिलेटर बेड थे। ये संख्या निसंदेह काफी कम है।
चूंकि जनवरी 2021 में मामलों की संख्या में गिरावट जारी रही और अस्पताल में भर्ती होने वाले रोगियों की संख्या में गिरावट आई। इसी वजह से घोर आशावाद से घिरीं और अपनी जीत का डंका समय से पहले ही बजा चुकीं सरकारों ने इनमें से कई समर्पित कोविड केन्द्रों को बंद कर दिया। महामारी की दूसरी लहर ने एक बार फिर महामारी से निपटने के लिए भारत की स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे की अपर्याप्तता को उजागर किया है। द सेंटर फॉर डिसीज डायनामिक्स, इकॉनमी एंड पोलिसी (सीडीडीईपी) और प्रिंसटन विश्वविद्यालय ने अप्रैल 2020 में 43,487 अस्पतालों और 1,185,242 बिस्तरों की संख्या का अनुमान लगाया था।
हालांकि, अगर स्वास्थ्य मंत्रालय और सीडीडीईपी-प्रिंसटन विश्वविद्यालय के अनुमानों को सही माना जाता है, तो भारत में प्रति 10,000 लोगों पर लगभग 13.76 बेड थे जब देश कोविद-19 संक्रमण की पहली लहर की चपेट में था। सरकारी क्षेत्र में, प्रति 10,000 लोगों पर केवल 5.2 बेड थे। आईसीयू बेड और भी दुर्लभ हैं। देश में अनुमानित अस्पताल के बेड में से, लगभग 5 प्रतिशत आईसीयू में रखे गए थे। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुमान के अनुसार सरकारी अस्पतालों में लगभग 35,700 आईसीयू बेड थे जिनमें 17,850 वेंटिलेटर बेड थे। इसका मतलब प्रति दस लाख लोगों के लिए लगभग 25.87 आईसीयू बेड ही थे। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र को मिलाकर भी प्रति दस लाख लोगों पर लगभग 68.8 ही आईसीयू बेड थे।
इसके अलावा बीते साल पीएम केयर्स फंड से 2000 करोड़ रुपए के वेंटिलेटर्स का क्या हुआ? इसका जवाब बीबीसी की पड़ताल से मिल जाएगा। बीबीसी के अनुसार पीएम केयर्स फंड से आॅर्डर किए गए 58,850 वेंटिलेटर्स में से तकरीबन 30 हजार वेंटिलेटर्स ही खरीदे गए। कोरोना की पहली लहर का जोर कम होने के बाद वेंटिलेटर की खरीद में ढील हुई।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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