We must recognize the truth: हमें ही सत्य को पहचानना होगा

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एक दिन व्हाट्सऐप पर हमें संदेश मिला कि आरबीआई नौ बैंकों को बंद करने जा रहा है। हमारे लिए यह बड़ी चिंताजनक खबर थी क्योंकि चैनल के ग्रुप में नहीं थी। हमने अपने संपादक (असाइनमेंट) से खबर के बारे में पूछा। तत्काल संवाददाता से खबर की सत्यता पता कराने को कहा। कुछ देर में संवाददाता ने आरबीआई के हवाले से बताया कि यह अफवाह है। कुछ बैंकों के विलय का प्रस्ताव जरूर है। डिजिटल वर्ल्ड में इस तरह की अफवाह सामान्य बात हो गई है। कई बार तमाम लोग यह भी लिखते हैं कि दलाल मीडिया इसे नहीं दिखाएगा। परंपरागत मीडिया खबर की सत्याता परखने के बाद दिखाता है जबकि गलत पोस्ट भेजने वालों की कोई जिम्मेदारी नहीं है। चुनाव के वक्त में कुछ सियासी दल झूठी पोस्ट का सहारा लेकर अपने वोट बैंक को साधते हैं। ऐसी ही एक पोस्ट हमने पिछले चुनावों में देखी, जिसमें बताया गया कि प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के पूर्वज मुस्लिम थे। एक विचारधारा के लोगों ने इसे फारवर्ड भी किया। इसी तरह के झूठ फैलाकर हमें भ्रमित किया जाता है और हम हो जाते हैं, क्योंकि हमें सत्य का ज्ञान नहीं होता। सत्य की खोज और गलत से बचना हमारी ही जिम्मेदारी है, न कि भ्रमित करने वालों की।
मौजूं मामला दिल्ली की तीस हजारी कचेहरी में वकीलों और पुलिस के बीच हुए संघर्ष का है। सामान्य मारपीट की घटना को व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया पर ऐसे फैलाया गया कि जैसे कोई बड़ा आतंकी हमला हो गया हो। इस झूठ ने दोनों पक्षों को भड़का दिया। सोशल मीडिया पर खुद को अपने समुदाय का हितैषी साबित करने के लिए लोग बेतुकी और शर्मनाक टिप्पणी करने लगे। इनमें कई दिल्ली में ही तैनात अधिकारी भी थे मगर वे घायल पुलिस कर्मियों का हाल तक जानने नहीं गए। विधि अनुसार अनुशासित पुलिस को साजिश के तहत प्रदर्शन करने के लिए उकसाया गया। किसी ने सच देखने या दिखाने पर जोर नहीं दिया बल्कि झूठ और अर्धसत्य पर एक बड़ा बवाल खड़ा कर दिया। जब हाईकोर्ट ने घटना पर संज्ञान ले लिया था। मामले की न्यायिक जांच शुरू हो गई थी। दोनों पक्षों की शिकायतों पर एफआईआर दर्ज कर ली गई थी, तब भी हंगामा खड़ा करने का मकसद क्या था? क्या यह पुलिस और प्रशासनिक नेतृत्व की अक्षमता को प्रदर्शित नहीं करता? क्या कानून-व्यवस्था की संस्थाओं का यह टकराव भविष्य में बड़े संकट को जन्म देने वाला नहीं है? जिम्मेदार सचिव, मंत्री और प्रधानमंत्री ने राजधानी में हुई इस घटना पर शांति बहाली के लिए फ्रंट क्यों नहीं संभाला? इन सवालों के जवाब खोजने की जरूरत है। अगर पूर्णसत्य सामने होता तो शायद यह घटना ऐसी न होती।
हमें याद आता है कि जम्मू-कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 370 में विशेषाधिकार देने को लेकर लंबे वक्त से यह झूठ फैलाया जाता रहा है कि अगर सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रथम प्रधानमंत्री होते तो यह प्रावधान न होता। पाक अधिकृत कश्मीर भी न होता। जबकि सत्य यह है कि 15-16 मई 1949 को पटेल के घर पर जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने पर फैसला हुआ था। भारत की ओर से एन गोपालस्वामी अयंगार और कश्मीर राज्य की तरफ से शेख अब्दुल्ला चर्चा कर रहे थे। गोपालस्वामी ने पटेल को लिखी चिट्ठी में कहा था कि पंडित नेहरू का स्पष्ट निर्देश है कि आपकी सहमति के बाद ही इस मसले पर अंतिम फैसला किया जाए। जिस वक्त अनुच्छेद 370 संसद में पास हुआ, उस वक्त पंडित नेहरू विदेश में थे। वह जब लौटे तो पटेल ने नेहरू को लिखी चिट्ठी में बताया कि उन्होंने किस तरह से कांग्रेस के लोगों को मनाकर एक अच्छा फैसला कराया है। पटेल ने ही 28 नवंबर 1947 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली से मिलकर कहा कि कश्मीर में युद्ध रुकना चाहिए। आप जहां तक काबिज हैं, वहीं रुक जायें, हम अपनी सेना वापस बुला लेंगे। इस पर सहमति बनी और संयुक्त राष्ट्र में अंडरटेकिंग भी दी गई। अब सूचना के अधिकार और डिजिटल दुनिया में सच को खोजना कठिन भी नहीं रह गया है।
यूपीए-2 के कुछ साल गुजरे थे कि अचानक भ्रष्टाचार मुद्दा बन गया। यह वैसे ही था जैसे 1988 में बोफोर्स तोप दलाली। कामनवेल्थ घोटाला, टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला और न जाने क्या क्या घोटाले गिनाये जाने लगे। इन घोटालों के पीछे तत्कालीन कैग विनोद राय और जस्टिस आरएम लोढ़ा का दिमाग चला था। दोनों ने बगैर किसी मेरिट और सबूत के इन सभी को घोटाला बना दिया। घोटालों के इन आरोप ने तमाम नेताओं को दागदार बना दिया। जब अदालत में घोटालों के सबूत देने की बारी आई, तो जस्टिस लोढ़ा और विनोद राय दोनों गायब रहे। सबूत और तथ्यों के अभाव में सभी आरोपी बाइज्जत बरी हो गये। इस दाग को लगाने के एवज में विनोद राय को धनवान संस्था बीसीसीआई का चेयरमैन और लोढ़ा को सुधार समिति का चीफ बना दिया गया। मनमोहन सरकार को तमाम लानतों के साथ बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। इन सभी मामलों की जांच पर सीबीआई ने आपकी मेहनत की कमाई के 200 करोड़ से अधिक रुपये खर्च कर दिये, जो कोई नतीजा नहीं दे सके। जैसे सीबीआई ने 64 करोड़ की कथित बोफोर्स दलाली को साबित करने के लिए 250 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर दिये थे मगर अदालत में एक भी आरोप को सिद्ध करने योग्य सबूत नहीं दे सकी थी। सभी आरोपी बरी हो गये थे। बोफोर्स के शोर में राजीव गांधी सरकार चली गई। उनकी मिस्टर क्लीन की छवि पर दाग लगा। हमने जब तक सच जाना, तब तक देश संकट में फंस चुका था।
इस तरह से झूठ अपने वेष बदल बदल कर सामने आता और हमें भ्रमित करता है। झूठ हमें तब भ्रमित कर पाता है, जब हम सच को पहचान नहीं पाते या पहचानना नहीं चाहते। असल में समस्या यह है कि हम पढ़ना और खोजना नहीं चाहते। सुविधाजनक जीवन, हमारा काम, हमारा घर-परिवार ही हमारी दुनिया बन गया है। हमने समाज, क्षेत्र, देश और दुनिया से सिर्फ स्वार्थ को साधने मात्र का रिश्ता बना रखा है। अपना और अपनों का हित सोचने में कोई बुराई नहीं होती मगर उसके आगे जो समाज, क्षेत्र, देश, दुनिया और प्रकृति हमें देती है, उसके प्रति भी सच्ची भावना रखना हमारी ही जिम्मेदारी है। हम सच को पहचाने और लोगों को सचेत भी करें क्योंकि जब नाव डूबती है तो सिर्फ चालक या कुछ लोग नहीं, सभी सवार उसका शिकार होते हैं।

जयहिंद

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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)

 

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