परमब्रह्मा का सूचक है शिवलिंग

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Avadhoot Baba Shivanandji
Avadhoot Baba Shivanandji

अवधूत बाबा शिवानंदजी
यह भारत का सौभाग्य है कि यहां की रत्नगर्भा माटी में महापुरुषों को पैदा करने की शोहरत प्राप्त है। ज्ञात इतिहास के पन्नों पर दृष्टिपात करते हैं, तो ऐसे अनेक नामधारी चेहरों पर दृष्टि टिकती है, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व से न सिर्फ स्वयं को प्रतिष्ठित किया वरन् उनके अवतरण से समग्र विश्व मानवता धन्य हुई है। इसी संतपुरुषों एवं महामनीषियों की श्रृंखला में एक संतपुरुष हैं अवधूत बाबा शिवानंदजी। भगवान शिव एवं मां दुर्गा की गहन साधना से प्राप्त सिद्धियों को वे मानवता के उत्थान और उन्नयन के लिये उपयोग में ले रहे हैं। भारत की आध्यात्मिक संस्कृति को विदेशों में महिमामंडित करने की दृष्टि से उनका योगदान अविस्मरणीय है। वे आध्यात्मिक जगत के विश्रुत धर्मनेता हैं।

उनके प्रवचनों में धर्म और अध्यात्म की चर्चा होना बहुत स्वाभाविक है। पर उन्होंने जिस पैनेपन के साथ शिव योग को वर्तमान युग के समक्ष रखा है, वह सचमुच मननीय है। जीवन की अनेक समस्याओं को उन्होंने शिव योग के साथ जोड़कर उसे समाहित करने का प्रयत्न किया है। ईश्वर, जीव, जगत, पुनर्जन्म आदि आध्यात्मिक चिंतन बिंदुओं पर उन्होंने व्यवहारिक प्रस्तुति देकर उसे जनभोग्य बनाने का प्रयत्न किया है।
बाबा शिवानंद को बचपन से ही ईश्वर की प्राप्ति को लेकर एक जुनून-सा था। मात्र 8 साल की उम्र में ही बाबाजी को हिमालय योगी 108 जगन्नाथ स्वामी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था, एक दिन उन्होंने बाबाजी को अपने पास बुलाया और उन्हें मंत्रों से दीक्षा देनी प्रारंभ की। इसके बाद वह उस स्थान को छोड़कर निकल गए। इस दिव्य-मंत्र दीक्षा की प्राप्ति के बाद बाबा ने इसे बड़ी संख्या में आम लोगों तक पहुंचाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने एक नियोजित एवं व्यवस्थित प्रशिक्षण का उपक्रम शुरू किया।

बाबा एक करिश्माई व्यक्ति हैं। उन्हें भारतीय चिकित्सा का जनक भी माना जाता है। उन्होंने अपने आपको जन-जन के कल्याण के लिए समर्पित किया है। वे प्राचीन वैदिक विद्याओं के विशेषज्ञ हैं। ये पवित्र विद्या यानि सिद्धियों के भी जानकार हैं, जो गुरु द्वारा अपने योग्य अनुयायियों को ही प्रदान की जाती है, ताकि वह उन्हीं की विरासत में सुरक्षित रहें। बाबा शिवानंदजी ने पूज्यनीय गुरु मां एवं ईशान शिवानंदजी के साथ 11 महीने की अथक एवं कठोर तपस्या व मंत्र साधना से पारा का एक शिवलिंग तैयार किया। इस अद्भुत और अलौकिक शिवलिंग के बारे में ऐसी मान्यता है कि स्वयं महादेवजी ने पारद संहिता के तीसरे अध्याय में कहा है कि करोड़ों शिवलिंग के पूजन से जो फल प्राप्त होता है, उससे भी करोड़ों गुना ज्यादा फल पारद शिवलिंग की पूजा और दर्शन से प्राप्त होता है। जीवन में भगवान शिव के महत्व और महिमा को आम लोगों तक पहुंचाने वाले बाबा शिवानंदजी आश्रम लखनऊ में है।

बाबा शिवानंदजी इस संसार को शिवमय बनाने के लिये संकल्पित है। वे चाहते हैं कि हमारा संकल्प सृजनशील संकल्प हो। न उसमें विचारों का आग्रह हो, न परम्पराओं का व्यामोह, न सिद्धांतों की कट्टरता हो, न क्रिया में जड़ता हो। समय का हर पल पुरुषार्थ के साथ निर्माण का नया इतिहास रचे। सफलता स्वयं उपलब्धि बने। जैसा रखोगे भाव, वैसी मिलेगी परमात्मा की कृपा। शिव व दुगार्माता की शरण में जो जाता है, उसका जीवन सफल हो जाता है। इस शिवयोग के अलौकिक एवं दिव्य विचार और कार्यक्रम को देश और दुनिया में लोकप्रिय बनाने के लिये बाबा शिवानंदजी प्रयासरत है। बाबा के अनुसार ब्रह्मांड एक नाद पर आधारित है। ब्रह्मांड में जीवन देने और लेने की शक्ति है। वैज्ञानिक भी ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता को मान चुके हैं, जबकि भारतीय संस्कृति इससे कहीं आगे है। नकारात्मक भाव या वाणी का असर ब्रह्मांड पर होता है। इसलिए जीवन में नफरत खत्म कर प्यार की जरूरत है। प्राकृतिक आपदा और परेशानियों का कारण नकारात्मकता ही है। शिवयोग से सफेद क्रांति, हरित क्रांति और प्राकृतिक आपदा पर नियंत्रण अचूक उपाय निहित है। बाबा शिवानंदजी का अतीत सृजनशील सफर का साक्षी है।

इसके हर पड़ाव पर शिशु-सी सहजता, युवा-सी तेजस्विता, प्रौढ़-सी विवेकशीलता और वृद्ध-सी अनुभवप्रवणता के पदचिन्ह हैं जो हमारे लिए सही दिशा में मील के पत्थर बनते हैं। आपका वर्तमान तेजस्विता और तपस्विता की ऊंची मीनार है जिसकी बुनियाद में जीए गए अनुभूत सत्यों का इतिहास संकलित है। जो साक्षी है सतत अध्यवसाय और पुरुषार्थ की कर्मचेतना का, परिणाम है तर्क और बुद्धि की समन्वयात्मक ज्ञान चेतना का और उदाहरण है निष्ठा तथा निष्काम भाव चेतना का। आपका भविष्य मानवता के अभ्युदय का उजला भविष्य है। इससे जुड़ी है मानवीय एकता, सर्वधर्म समन्वय, सापेक्ष चिंतनशैली के विकास की नई संभवनाएं और शिव योग की उजली किरणें। अवधूत बाबा शिवानंद का संपूर्ण जीवन मानवीय-मूल्यों का सुरक्षा प्रहरी है, इसलिए आप सबके लिए प्रणम्य है। आपके विचार जीवन का दर्शन है। प्रवचन भीतरी बदलाव की प्रेरणा है। संवाद जीने का सही सीख है। शिवयोग को जीवनशैली बनाने के लिये जुटे बाबा के अनुसार शिव का अर्थ है अनंत और योग अर्थात जुड?े की प्रक्रिया। शिव योग में न केवल भविष्य की बल्कि वर्तमान की हर समस्या का समाधान संभव है। शिव योग हर व्यक्ति में मौजूद है। विदेशों में इसको सीखने एवं समझने और आत्मसात करने की होड लगी है।

यही कारण है कि बाबाजी के जितने भक्त हिन्दुस्तान में हैं, उससे ज्यादा विदेशों में है। बाबाजी के अनुसार रोज सिर्फ 20 मिनट शिवयोग से देश का विकास किया जा सकता हैं। बाबा के अनुसार शिव भक्ति में गोता लगाने के लिये मन और माहौल दोनों जरूरी है। रोशनी और धूप के बिना वह मकान कैसे मालिक का सुख, शांति और स्वास्थ्य देगा जिसकी खिड़कियां और दरवाजे कभी खुलते ही नहीं। खुलना जरूरी है, दिल का भी और दिमाग का भी। बाबा शिवानंदजी कहते हैं कि हर ग्रह का एक नाद है जिसे वैज्ञानिक अनुभव कर रहे हैं। यजुर्वेद में ऐसे मंत्रों का उल्लेख है लेकिन तपस्या से ही उसे जागृत किया जा सकता हैं। मैं सप्त ऋषियों की शक्ति बांट रहा हूं। जिससे सकारात्मकता की शक्तियां प्रस्फुटित होती है। उनका एक विशिष्ट उपक्रम है महामृत्युंजय की संजीवनी शक्ति की दीक्षा देना।

उनके बीज मंत्रात्मक साधना की शिक्षा एवं दीक्षा से फ सल तथा गाय के दूध में वृद्धि, बिना रासायनिक खादों के खेत को उपजाऊ बनाने के चमत्कारी प्रयोग हो रहे हैं। तरह-तरह के रसायनों से भूमि बंजर हो रही है और जीवाणु मर रहे हैं। दुनिया फैक्टरी के प्रदूषण का रोना रोती है लेकिन इस ओर ध्यान नहीं है। बारिश के बाद यह जहर खेतों से नदियों में पहुंच रहा है। बीमारियों का कारण रसायन ही है। शिव योग में खाद और रसायन की जरूरत नहीं है। बीज बोने से पहले योग से अभिमंत्रित करें और फसल के लिए भी रोज योग करें। तीन वर्ष में कृषि दो से तीन गुना बढ़ जाएगी। लागत 50 से 70 प्रतिशत कम होगी। जैविक खेती होगी तो लोग स्वस्थ रहेंगे, विकास होगा। बाबाजी कहते हैं कि किसानों को लोन या बीज-खाद उपलब्ध करवाना काफी नहीं है। सरकार की सोच अच्छी है लेकिन काफी आगे सोचने की जरूरत है। शिव योग के दस मिनट प्रयोग से देशी गाय का भी 20 लीटर दूध पैदा किया जा सकता है। इसके प्रयोग से दूध कम होना भी बंद हो जाता है। दूध बढ़ेगा तो श्वेत क्रांति आएगी। बाबा शिवानंदजी वर्तमान शिक्षा पद्धति को अपूर्ण मानते हैं। क्योंकि यह शिक्षा में बच्चों को रट्टन विद्या सिखा रही हैं, जबकि सृजनात्मकता की जरूरत है। असेंबल लाइन सिस्टम लागू हो गया हे। कोई हमें कंट्रोल कर रहा है। पहले ईस्ट इंडिया कंपनी थी, अब वालमार्ट हो गया है। देश फिर गुलामी की ओर जा रहा है।

मनुष्यता की कोई बात नहीं कर रहा। बाबा शिवानंद ने कहते है कि बड़े-बड़े आलीशान घरों में हर चीज का अलग-अलग कमरा होता है। अतिथि का कमरा भी अलग होता है। लेकिन भगवान का कमरा होता ही नहीं है। बाबा ने भक्तों को आलमारी में मंदिर न बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि जो चेतना तुम्हारे भीतर है वही परमात्मा के भीतर है। जैसा भाव रखोगे, वैसी ही कृपा मिलेगी। शिवलिंग परमब्रह्मा का सूचक है। समाज में एक बुद्धिहीन प्रचार हो चुका है कि घर में शिवलिंग नहीं रखना चाहिए। शिव की शरण में जो गया, उसका जीवन सफल हो जाएगा। परमात्मा की पूजा करो, गुरुओं ने भी शिवलिंग रूप की साधना करके ही सिद्धियां प्राप्त की है। बाबा टोने-टोटके व ताबीज के अंधविश्वासों के सख्त विरोधी है। शिवलिंग के आगे दीये जलाओगे, तो लक्ष्मी घर में वास करेगी। तेजस्वी व्यक्तित्व का यह प्रगतिशील सफर सीख देता है कि घर में जब कन्या जन्म ले तो आंख बंद कर दुर्गा माता का ध्यान करें। क्योंकि लक्ष्मी रूप में कन्या ने अवतार लिया है। कन्या के जन्म पर चिंतित नहीं हों। जिस रूप में आप देवी का ध्यान करोगे उसी रूप में वह दौड़ी चली आएंगी। वे भ्रूण-हत्या की बढ़ती घटनाओं को चिन्ताजनक मानते हैं। ऐसे परम ज्ञानी एवं सिद्धपुरुष बाबा का लक्ष्य है समय के साथ चलना। जिनकी साधना है समय के साथ जीना और जिनकी नियति है समय के साथ निर्माण के नए पदचिन्ह बनाना। उस शिवभक्ति के सूत्रधार बाबा शिवानंदजी को हम शत-शत नमन।

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