SC ON RRTS Project: आरआरटीएस के लिए अपनी हिस्सेदारी न देने पर दिल्ली सरकार को फिर ‘सुप्रीम’ फटकार

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SC ON RRTS Project
आरआरटीएस के लिए अपनी हिस्सेदारी न देने पर दिल्ली सरकार को फिर 'सुप्रीम' फटकार

Aaj Samaj (आज समाज), SC ON RRTS Project, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) के लिए अपनी हिस्सेदारी का भगुतान न करने के मामले में दिल्ली की केजरीवाल सरकार को एक बार फिर कड़ी फटकार लगाई है। बता दें कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली से हरियाणा के पानीपत व राजस्थान के अलवर के लिए बन रहे आरआरटीएस प्रोजेक्ट्स के लिए अपना अंशदान नहीं दिया है, जिसको लेकर शीर्ष अदालत ने सख्त लहजे में नाराजगी जाहिर की है।

विज्ञापन को लेकर भी आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने विज्ञापन को लेकर भी दिल्ली सरकार को आदेश दिया है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और संजय किशन कौल ने अपना आदेश एक हफ्ते के लिए स्थगित करते हुए कहा कि यदि इस दौरान दिल्ली सरकार ने पैसा नहीं दिया तो सरकार के विज्ञापन का फंड आरआरटीएस को ट्रांसफर कर दिया जाएगा।

दिल्ली व आसपास बेहतर की जा रही कनेक्टिविटी

बता दें कि आरआरटीएस प्रोजेक्ट के जरिये दिल्ली और आसपास के शहरों के बीच कनेक्टिविटी बेहतर की जा रही है। पहले चरण में दिल्ली से मेरठ के बीच बन रहे रूट पर गाजियाबाद के साहिबाबाद से दुहाई तक रैपिड रेल शुरू भी हो गई है। केंद्र सरकार की अलवर और पानीपत के बीच फिलहाल रैपिड रेल चलाने की योजना है।

विज्ञापन के लिए 500 करोड़ कर सकते  इस परियोजना के लिए 400 करोड़ नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को अपने हिस्से का पूरा भुगतान करने का निर्देश देते हुए सुनवाई 7 दिसंबर के लिए टाल दी है। जस्टिस संजय किशन कौल ने आज सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के रवैये पर कहा कि आप विज्ञापन के लिए 500 करोड़ रुपए का बजट में प्रावधान कर सकते हैं, लेकिन इस परियोजना के लिए 400 करोड़ रुपए का प्रावधान नहीं कर सकते। दिल्ली सरकार को अपने हिस्से का पूरा भुगतान करने का निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 7 दिसंबर के लिए टाल दी है।

विज्ञान के खर्च को वाजिब बताया

दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि 2020 से 2023 तक विज्ञापन के लिए 1073.16 करोड़ रुपया खर्च किया गया। 2020-21 में 296.89 करोड़, 2021-22 में 579.91 करोड़ और 2022-23 में 196.36 करोड़ रुपया विज्ञापन पर खर्च किया गया। दिल्ली सरकार ने अपने हलफनामे में इस खर्च का बचाव करते हुए कहा कि सरकारी नीतियों के प्रचार के लिए यह खर्च वाजिब और किफायती है। किसी भी तरह से दूसरे राज्यों के प्रचार से यह खर्च ज्यादा नहीं है।

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