वरुथिनी एकादशी 26 अप्रैल को Varuthini Ekadashi On 26 April

एकादशी तिथि प्रारंभ - 26 अप्रैल (मंगलवार) सुबह 01 बजकर 36 मिनट पर से शुरू होकर 27 अप्रैल (बुधवार) रत 12 बजकर 46 मिनट पर तक  पारण का समय - 27 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 41 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 22 मिनट तक

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Varuthini Ekadashi On 26 April
  • एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और व्रत करने वालों पर उनकी विशेष कृपा बनी रहती है।

आज डिजिटल, अम्बाला।
Varuthini Ekadashi On 26 April : हिन्दू धर्म के अनुसार एकादशी व्रत को सर्वश्रेठ माना जाता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-आराधना की जाती है और व्रत किया जाता है। एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और व्रत करने वालों पर उनकी विशेष कृपा बनी रहती है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।

Varuthini Ekadashi On 26 April

Varuthini Ekadashi On 26 April : हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। इस बार वरुथिनी एकादशी 26 अप्रैल (मंगलवार) को है। वैशाख मास में भगवान विष्णु की पूजा के साथ भगवान शिव और ब्रह्माजी की पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यताओं के अनुसार वरुथिनी एकादशी के दिन विधिपूर्वक व्रत-पूजन करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और बैकुंठ की प्राप्ति होती है।

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एकादशी तिथि प्रारंभ – 26 अप्रैल (मंगलवार) सुबह 01 बजकर 36 मिनट पर से शुरू होकर
27 अप्रैल (बुधवार) रत 12 बजकर 46 मिनट पर तक 

पारण का समय – 27 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 41 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 22 मिनट तक

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वरुथिनी एकादशी पूजा विधि

  • वरुथिनी एकादशी के दिन सुबह प्रात: जल्दी उठ कर स्नान करें।
  • इसके बाद मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करके उन्हें स्नान करवाएं और साफ धुले हुए वस्त्र पहनाएं।
  • भगवान विष्णु के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें और उनकी विधि- विधान से पूजा करें।
  • भगवान को फल, फूल, मिष्ठान आदि अर्पित करें और उनकी आरती करें।
  • वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत कथा अवश्य पढ़ें।
  • भगवान विष्णु को भोग लगाएं और प्रसाद घर में सभी को बांटे और खुद भी ग्रहण करें।
  • अगले दिन द्वादशी तिथि के दिन पारण करें।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में नर्मदा तट पर मांधाता नामक राजा राज्य करता था। वह अत्यन्त ही दानशील और तपस्वी राजा था। एक दिन तपस्या करते समय वह जंगली भालू राजा मांधाता का पैर चबाने लगा। थोड़ी देर बाद भालू राजा को घसीटकर वन में ले गया। राजा घबराकर विष्णु भगवान से प्रार्थना करने लगा। भक्त की पुकार सुनकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से भालू को मारकर अपने भक्त की रक्षा की। भगवान विष्णु ने राजा मांधाता से कहा− हे वत्स् मथुरा में मेरी वाराह मूर्ति की पूजा वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर करो। उसके प्रभाव से तुम पुनः अपने पैरों को प्राप्त कर सकोगे। यह तुम्हारा पूर्व जन्म का अपराध था।

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विष्णु भगवान जी कि आरती

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे। भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का। सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी। तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। स्वामी तुम अन्तर्यामी। पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता। मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति। किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ओम जय जगदीश हरे।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे। अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा। स्वामी पाप हरो देवा। श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।

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