Ram Mandir in Ayodya-राम काज कीन्हें बिनु, मोहि कहां विश्राम’

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श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में 05 अगस्त का दिन स्वर्णयुग के रूप में अंकित हुआ। 500 साल कि लम्बी लड़ाई और प्रतीक्षा के बाद हिंदुत्व को नया आयाम मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीराम मंदिर की आधारशिला रखी। इस मौके पर पूरे देश में उत्साह का महौल दिखा। लोगों ने दीप जला और मिठाइयाँ बांट खुशियां मनाई। इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि राम सब जगह हैं। राम सबमें हैं और सबके हैं।
विश्व की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में भी राम विद्यमान हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘राम काज कीन्हें बिनु, मोहि कहां विश्राम’। राम परिवर्तन और आधुनिकता के पक्षधर हैं। मोदी ने शिलापूजन के दौरान साष्टांग दंडवत किया। पीएम मोदी ने  कहा यह उत्यसव नर को नारायण बनाने का पर्व है। राममंदिर राष्ट्रीय भावना को प्रतीक है। पीएम ने कहा न्याय प्रिय भारत के लिए यह अनुपम भेंट है। श्रीराम सत्य और सम्पूर्ण हैं। उन्होंने समाजिक समरसता को अपने शासन का अंग बनाया। राम प्रजा से एक समान प्रेम करते हैं। राम जीवन के हर पहलू को प्रेरणा देते हैं। उन्होंने कहा भारत के आस्था, धर्म और दर्शन में राम बसे हैं। उन्माहोंने कहा भारत हमेशा से मानवता का पक्षधर रहा है। सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद देश ने एकता और मानवता की मिसाल कायम किया।
उन्होंने कहा इस मंदिर के साथ इतिहास भी दोहराया जा रहा है। श्रीराम हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं। अयोध्या में निर्मित राम मंदिर पूरी दुनिया को मनवता का संदेश देगा। राम से अयोध्या है जबकि अयोध्या श्रीराम का जीवन संस्कार है। हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार अयोध्या सप्त पुरियों मथुरा, माया , काशी, कांची, अवंतिका और द्वारका में शामिल है। श्रीराम की नगरी अयोध्या को अथर्ववेद में भगवान की नगरी कहा गया है। अयोध्या के शाब्दिक विश्लेषण से पता चलता है कि अ से ब्रह्मा, य से विष्णु और ध से रुद्र यानी त्रिदेव का स्वरूप है अयोध्या। जहाँ ब्रह्मा, विष्णु और शंकरजी स्वयं विराजमान हैं। अयोध्या के कण- कण में मयार्दा पुरुषोत्तम श्रीराम बसे हैं।
इसे हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म का मौलिक स्वरूप माना जाता है। सरयू नदी के पावन तट पर बसी है अयोध्या। इसकी स्थापना महाराज मनु ने की थीं। इसे साकेत के नाम से भी जाना जाता है। अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया गया था। सरयू नगरी इंद्रधनुष के रंग में रंग उठी है। पूरी अयोध्या चित्र शैली में रंग उठी है। अयोध्या से जिस तरह की तस्वीरें आ रहीं हैं, उससे यहीं लग रहा है कि जैसे भगवान विश्वकर्मा स्वयं अयोध्या उतर आए हैं। धर्मिक मान्यता के अनुसार जब महाराज मनु ने ब्रम्हा से अपने लिए एक नगर निर्माण की माँग कि, तो विष्णुजी ने उन्हें साकेत को सबसे उचित स्थान बताया। बाद में मनु के साथ भगवान विश्?वकर्मा को भेजा गया। स्?कंदपुराण के अनुसार अयोध्?या भगवान विष्?णु के चक्र पर विराजमान है। भगवान श्रीराम के बाद बाद लव ने श्रावस्ती को बसाया। कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। बाद में विक्रमादित्य ने अयोध्या का निर्माण कराया। श्रीराम विकारों से मुक्त उत्तम और मयार्दा पुरुषोत्तम हैं। इसी लिया उन्हें श्रेष्ठ मयार्दा का वाहक मयार्दा पुरुषोत्तम कहा गया है। वह धर्म, विवेक और आदर्श, के साथ मयार्दा और नैतिकता के प्रतीक हैं। वह मनवता के धर्मप्राण हैं। अहंकार और अविवेक रहित हैं। वह क्रोध, पाप से बिलग हैं। वह समदर्शी हैं। उन्होंने अपने निहित स्वार्थ के लिए धर्म की ध्वज को कभी गिरने नहीं दिया। न्याय और धर्म को हमेशा शीर्ष पर रखा। पिता महराज दशरथ और माँ कैकैई के वचनों के अनुपालन में राजसत्ता और वनवास को त्याग दिया। प्रजा के भावनाओं को उन्होंने हमेशा सम्मान किया। अयोध्या की प्रजा कि तरफ से आशंका उठने पर माँ सीता को वनवास भेज दिया। श्रीराम लोक मयार्दा को कहीँ से भी भंग नहीं होने दिया। यहीं वजह रहीं कि वह लोकरंजक कहलाए। उन्हें प्रजारंजक कहा गया। राज्य विस्तार को उन्होंने सिरे से खारिज किया। लंका को जीत कर विभीषण का राजतिलक किया। बालि के कुकर्मों का अंतकर सुग्रीव को राजा बनाया तो अंगद को युवराज। राक्षसों को वध कर दण्डकारण्य ऋषियों और मुनियों को दिया। श्रीराम हिंदुत्व के ध्वजवाहक हैं। वह धर्म हैं, संस्कार हैं। संस्कृति हैं। श्रीराम हिंदुत्व के राग, रंग और संस्कार हैं।वह मानववता के आधार स्तम्भ हैं। उनका अवतार ही इस धरा पर धर्म के अवतार के रूप में हुआ। मानवता के कल्याण और समाज के आदर्शवाद के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन लोक कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने हमेशा अयोध्या में धर्म को राज्य के नीति में शामिल किया। लेकिन धरती पर अवतरण के बाद वह खुद राजनीति का शिकार हो गए। 500 सालों तक वह विवादों में उलझे रहे। खुद के लिए रामलला को अदालत में अपना पक्ष रखना पड़ा। त्रेता में 14 सालों तक वनवास झेला। लेकिन कलयुग में उन्हें 28 सालों तक वनवास काल को अस्थाई टेंट में गुजारना पड़ा। राम को राजनीति का आधार बनाने वाले आलीशान बंगलों में गुजारा जबकि हमारे प्रभु टेंट में विराजमान होकर भक्तो के लिए स्वयं राजनीति की भेंट चढ़ गए। राम को आगे रख कर 500 सालों तक खून- खराबा करने वाले लोग अपनी सियासी रोटी सेंकते रहे लेकिन प्रभु न्याय के लिए जीर्ण मंदिर और टेंट में अपने मालिकाना हक कि लड़ाई लड़ी और आखिरकार विजयी हुए। श्रीराम की इस लड़ाई में किसी का जस और निहोरा नहीं है। उन्होंने यह लड़ाई मयार्दा में रह कर जीता है। तकरीबन तीन दशक बाद उन्हें अपना घर मिलने जा रहा है। तभी तो इस खुशी में अयोध्या सतरंगी हो चली है। श्रीराम की अयोध्या रघुवंशी राजाओं की बेहद प्राचीन  राजधानी थी। यह यह कौशल की राजधानी थी। वाल्मीकि रामायण में अयोध्या 12 योजन लम्बी और 3 योजन चौड़ी बताई गई है। आईन-ए-अकबरी के अनुसार अयोध्या कि  लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस मानी गई है। ‘कोसल नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान। निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान्’ का उल्लेख है। अयोध्या के दर्शनीय स्थलों में हनुमान गढ़ी, रामदरबार, सीतामहल, राम की पैड़ी, गुप्त द्वार घाट, कैकेयी घाट, कौशल्या घाट, पापमोचन घाट, लक्ष्मण जैसे प्रमुख स्थल हैं।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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