Prime Minister in parliamentary system: संसदीय व्यवस्था में प्रधानमंत्री

0
262

इंदिरा गांधी एक मजबूत प्रधानमंत्री रही हैं। उनके प्रतिद्वंद्वी समाजवादी दल के नेता राज नारायण थे। इंदिरा गांधी से चुनाव में हारने के बाद राज नारायण ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इंदिरा गांधी के विरुद्ध चुनाव याचिका दायर करके यह आरोप लगाया कि वे भ्रष्ट तरीकों से चुनाव जीती हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने तकनीकी कारणों से इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया तो जवाब में उन्होंने अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश पर आपात्काल थोप दिया और संविधान में मनमाने संशोधन करवा लिये। संविधान संशोधनों में सर्वाधिक बदनाम 42वां संविधान संशोधन इसी दौर में हुआ।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को तकनीकी कारणों से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध बताते हुए उन्हें 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करके इतिहास रचा लेकिन इस फैसले ने देश का भाग्य बदल दिया। न्यायालय का फैसला आने के 13 दिन के भीतर ही, यानी 25 जून 1975 को देश में आपात्काल लागू हो गया। आपात्काल लागू होते ही केंद्र सरकार के हाथ में असीमित अधिकार आ गये, प्रेस पर सेंसरशिप लग गई, मौलिक अधिकार स्थगित कर दिये गये, संविधान में मनचाहे संशोधन कर दिये गए, सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रपति की शक्तियां घटा दी गईं और सारी शक्तियां प्रधानमंत्री के हाथ में केंद्रित कर दी गईं। 31 अक्तूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और उसी साल दिसंबर में हुए लोकसभा चुनावों में उन्हें अपार बहुमत मिला।
अपना बहुमत बचाए रखने के लिए उन्होंने सन् 1985 में संविधान के 52वें संशोधन के माध्यम से दलबदल विरोधी कानून पास करवा लिया और राजनीतिक दलों के अध्यक्ष को असीमित शक्तियां दे दीं जिसके परिणामस्वरूप राजनीतिक दल प्राइवेट कंपनियों की तरह काम करने लगे। यह इस तथाकथित दलबदल कानून का ही परिणाम है जो पार्टी अध्यक्ष को अध्यक्ष के बजाए पार्टी के मालिक का-सा दर्जा और शक्तियां देता है। राजीव गांधी ने दलबदल विरोधी कानून के माध्यम से एक ऐसी परंपरा की शुरूआत की जो देश में धर्म, क्षेत्र, जाति और नीति-विहीन व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के आधार पर हजारों छोटे-छोटे राजनीतिक दलों के जन्म का कारण बना। राजीव गांधी को सत्ताच्युत करके विश्वनाथ प्रताप सिंह का अपने ही उपप्रधानमंत्री चौ. देवी लाल से मनमुटाव हुआ तो अपनी कुर्सी मजबूत करने के प्रयास में उन्होंने लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़े मंडल आयोग की सिफारिशों को खोज निकाला और अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण लागू कर दिया। आश्चर्य की बात नहीं है कि देश आज भी आरक्षण की आग में जल रहा है। इंदिरा गांधी ने सारी शक्तियां अपने हाथ में लेने के लिए देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को शक्तिविहीन कर दिया, राजीव गांधी ने दलबदल कानून के माध्यम से राजनीतिक दलों का चरित्र बदल दिया और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने समाज में हमेशा के लिए विभाजन की लकीर खींच दी। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद और मंत्रिमंडल को बताए बिना नोटबंदी लागू कर दी और सारे देश को लाइन में खड़ा कर दिया।
ये चार उदाहरण इस सत्य को समझने के लिए काफी हैं कि किसी प्रधानमंत्री का कोई एक गलत कदम देश के लिए कितना हानिकारक हो सकता है। स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री कमजोर हो जाए तो अपने स्वार्थ के लिए वह देश का नुकसान कर सकता है, और यदि आवश्यकता से अधिक शक्तिशाली हो जाए तो हानिकारक मनमानियों का दौर शुरू हो जाता है। यह स्पष्ट है कि संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री सारी शक्तियां हड़प सकता है। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरेंद्र मोदी ने इसे साबित कर दिखाया है। इसी प्रकार यदि प्रधानमंत्री कमजोर हो तो अपनी कुर्सी की खातिर देश को बांट सकता है, जैसा कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कर डाला था।
सन 2014 के लोकसभा चुनावों में श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए बहुमत हासिल किया और इस स्थिति में आ गई कि खुद अपने ही दम पर सरकार बना सके। श्री मोदी अनुभवी ही नहीं, दूरंदेश भी हैं, भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उन्होंने शिरोमणि अकाली दल, शिव सेना, अपना दल और तेलुगु देशम पार्टी को केंद्र सरकार में स्थान दिया क्योंकि तब बहुत से राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी और अपनी नीतियों और महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उन्हें सहयोगियों की आवश्यकता थी। इसके लिए उन्हें देश की आधी राज्य सरकारों और राज्यसभा में अपनी पार्टी के बहुमत की आवश्यकता थी।
यही कारण है कि राज्यों में भाजपा की सरकारें बनवाने के लिए प्रधानमंत्री अपना सरकारी काम छोड़ कर हर राज्य में खुद रैलियां करते रहे। अपने पहले कार्यकाल की शुरूआत में लंबे समय तक उन्होंने अध्यादेशों के माध्यम से शासन किया क्योंकि तब राज्यसभा में भाजपा की उपस्थिति काफी कम थी।
इस स्थिति से उबरने के लिए ही भाजपा को काश्मीर में पीडीपी के साथ और हरियाणा में जेजेपी के साथ समझौता करना पड़ा और कई अन्य राज्यों में विधायकों को खरीदने के लिए विवश होना पड़ा। सवाल सिर्फ यह नहीं है कि श्री मोदी ऐसा क्यों कर रहे हैं, असली सवाल यह है कि उन्हें ऐसा क्यों करना पड़ रहा है। बीमारी की जड़ तक जाना आवश्यक है वरना बीमारी दूर नहीं हो सकेगी। प्रधानमंत्री को सत्ता में बने रहने के लिए संसद में बहुमत की आवश्यकता है लेकिन अपनी नीतियों को लागू करने की मन्शा से कानूनों में परिवर्तन के लिए अथवा नये कानून बनाने के लिए संसद के दोनों सदनों में बहुमत की आवश्यकता है और कई कानून बनाने के लिए तो संसद के दोनों सदनों में बहुमत के अलावा देश के आधे राज्यों में भी अपनी पार्टी की सरकार की आवश्यकता है। यही नहीं, केंद्र में सत्ता में होने के बावजूद राज्यसभा में बहुमत पाने के लिए भी राज्यों में अपनी पार्टी की सरकार होना आवश्यक है। ऐसे में दोनों सदनों में बहुमत बनाने के लिए प्रधानमंत्री को राज्यों में भी जोड़- तोड़ करनी पड़ती है।
(लेखक मोटिवेशनल एक्सपर्ट हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

SHARE