संत राजिन्दर सिंह महाराज ने किया अपनी नई पुस्तक “डिटॉक्स द माइंड” का विमोचन

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Panipat News/Sant Rajinder Singh Maharaj released his new book Detox the Mind
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आज समाज डिजिटल, पानीपत :
पानीपत। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ध्यान-अभ्यास के आध्यात्मिक गुरु संत राजिन्दर सिंह महाराज की नई पुस्तक “डिटॉक्स द माइंड” के विमोचन के अवसर पर नई दिल्ली स्थित सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में देश-विदेश से हजारों की संख्या में लोग उपस्थित हुए, जिनमें कई नए जिज्ञासु भी उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरूआत में संत राजिन्दर सिंह महाराज के साथ गणमान्य व्यक्तियों ने पारंपरिक रूप से दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का उदघाटन किया। पुस्तक विमोचन समारोह में आए अतिथियों, गणमान्य व्यक्तियों, एवं दर्शकों से खचाखच भरे ऑडिटोरियम को संबोधित करते हुए परम पूजनीय संत राजिन्दर सिंह महाराज कहा ने इस पुस्तक को लिखने के विचार तथा प्ररेणा के बारे में बताया। उन्होंने समझाया कि किस तरह हम शरीर में फैले दूषित पदार्थों को बाहर निकालकर अपने आपको साफ व स्वस्थ रखने की कोशिश करते हैं लेकिन फिर भी हम अंदर की खुशी और संतुष्टि से कौसों दूर हैं।

मन स्वस्थ होगा तो हमारा शरीर भी अपने आप ही स्वस्थ और निरोग हो जाएगा

अपनी ज़िंदगी जीते हुए अक्सर हम अपने अंदर लगातार चलने वाले विचारों की वजह से दुःखी और परेशान रहते हैं। हम अपने अहंकार और घृणा की वजह से ऐसे लोगों के व्यवहार को पसंद और सहन नहीं कर पाते, जिनके विचार और कार्य हमसे भिन्न हैं। जिसकी वजह से हमारे अंदर तनाव और चिंता बढ़ जाती है। अपने मन के इन दूषित विचारों को दूर करके ही हम इसका शुद्धिकरण कर सकते हैं। यदि हमारा मन स्वस्थ होगा तो हमारा शरीर भी अपने आप ही स्वस्थ और निरोग हो जाएगा। आज के समय में डॉक्टर्स भी हमारे शरीर और मन के संबंध को स्वीकार कर रहे हैं। यह पुस्तक हमारे मन को दूषित करने वाले स्त्रोतों के बारे में बताती है और किस तरह से हम उन्हें जानकर अपनी ज़िदंगी से दूर कर सकते है, इसके बारे में हमारी मदद करती है।

यह पुस्तक एक व्यावहारिक अभ्यास के बारे में भी बताती है

यह पुस्तक एक व्यावहारिक अभ्यास के बारे में भी बताती है जिसको हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में ढाल सकते हैं। हमारे जीवन के एक सामान्य प्रश्न कि हम किस तरह से खुश और आनंद की अवस्था में रह सकते है? के बारे में इस पुस्तक में बताया गया है। प्रभु की बनाई इस सृष्टि में हम किस तरह शांत, स्थिर और संतुलित जीवन व्यतीत कर सकते हैं? इसके लिए हमें अपने अंतर में प्रभु के प्रेम का अनुभव करना होगा, जो केवल ध्यान-अभ्यास द्वारा ही संभव है।

ध्यान को टिकाने के लिए अपने मन को भी स्थिर करना होगा

इस विधि में हमें अपने ध्यान को अंतर केन्द्रित कर प्रभु के दो जाति रूप ज्योति और श्रुति का अनुभव कर सकते हैं। ध्यान को टिकाने के लिए हमें सिर्फ अपने शरीर और इंद्रियों को ही शांत नहीं करना बल्कि अपने मन को भी स्थिर करना होगा। हमारा मन एक पारे की भांति चंचल है जो हमेशा हलचल में रहता है। हम अपने मन को काबू में नहीं ला सकते लेकिन हम इसे अपना दोस्त बनाकर इसकी शक्ति को प्रभु की तरफ जरूर ले जा सकते है। जो केवल मन ही मन प्रभु के जाति नाम का जाप करके ही संभव है। यह एक सामान्य ध्यान-अभ्यास विद्या है जो पुरातन काल से चली आ रही है जिसमें हम अपना ध्यान प्रभु की ओर कर सकते है।

ध्यान को केन्द्रित करना कितना मुश्किल है, एक दृष्टांत का उदाहरण देकर समझाया

यह कहना आसान है किंतु इसका व्यावहारिक अनुभव करना बहुत ही मुश्किल है। अपने ध्यान को केन्द्रित करना कितना मुश्किल है, इसको महाराज ने एक दृष्टांत का उदाहरण देकर समझाया कि एक अध्यापक ने किसी व्यक्ति को तालाब में अपना चेहरा देखकर उसे कागज पर उतारने के लिए कहा और साथ ही साथ यह आदेश दिया कि यदि उसके मन में कोई विचार आए तो उसी समय एक पत्थर तालाब में फेंक दे। इस तरह अमुक व्यक्ति जब अपने चेहरे को बनाने के लिए तालाब में देखने लगा तो उसके मन में अनेक प्रकार विचार उठे और उस बार-बार पत्थर को तालाब में फेंकना पड़ा। जिसकी वजह से तालाब में लहरें उठती रहीं और पूरा दिन गुजर जाने के बाद भी वह अपना चित्र नहीं बना पाया। इसी प्रकार यदि हमारे मन में कोई एक विचार उठता है तो इससे कई गुणा विचार हमारे मन में उत्पन्न होने लगते हैं। जैसे तालाब में पत्थर फेंकने से बहुत सी लहरें उठती हैं।

रोजाना कम से कम आधा घंटा इस अभ्यास को करें

आखिर में संत राजिन्दर सिंह महाराज ने जिज्ञासुओं को ध्यान-अभ्यास की इस तकनीक को समझाते हुए कहा कि यह किस तरह से हमारे जीवन में आनंद, शांति और संतुष्टि ला सकती है। प्रभु की दिव्य ज्योति और श्रुति जिसे “शब्द” कहा गया है, का अनुभव कर ही हम अपने मन का शुद्धिकरण कर सकते हैं। इस अभ्यास को करने से हमें शारीरिक फायदे भी मिलते हैं। यदि हम रोजाना कम से कम आधा घंटा इस अभ्यास को करें तो हम अपने जीवन में शांति, स्थिरता, प्यार और संतुष्टि भरा जीवन जी सकते हैं।
इस पुस्तक का शीर्षक अपने आपमें एक कमांड हैं
अपने व्यक्तव्य के पश्चात संत राजिन्दर सिंह महाराज ने ऑडिटोरियम में हजारों की संख्या में उपस्थित भाई-बहनों को कुछ समय के लिए ध्यान-अभ्यास पर बिठाया और इस पुस्तक के अंग्रेजी, हिन्दी और हंगेरियन भाषा के अनुवाद का विमोचन किया। कार्यक्रम के अंत में जवाहर लाल नेरूह यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर प्रोफेसर दीपेन्द्रा नाथ दास ने संत राजिन्दर सिंह महाराज द्वारा लिखित पुस्तक को काफी सराहा और कहा कि इस पुस्तक का शीर्षक अपने आपमें एक कमांड हैं, जिसे अगर हम अपने जीवन में ढालें तो हमारे जीवन में खुशी और शांति आ सकती है। दिल्ली टीचर्स यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर धनांजय जोशी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि यह किताब अपने आपमें एक लाईब्रेरी और ज्ञान का समुन्दर है। संत राजिन्दर सिंह महाराज ने ऑडिटोरियम में उपस्थित जनसमूह को नज़दीक से जाकर दर्शन दिए। सावन कृपाल रूहानी मिशन की ओर से नये भाई-बहनों का शुक्रिया अदा किया गया।
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