हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में एकीकृत भारतीय ज्ञान प्रणाली पर पैनल चर्चा आयोजित

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Panel discussion on Integrated Indian Knowledge System organized at Central University of Haryana

नीरज कौशिक, महेंद्रगढ़:

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ के दिव्यांगजन प्रकोष्ठ द्वारा शुक्रवार 2 दिसम्बर को विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में एकीकृत भारतीय ज्ञान प्रणाली विषय पर पैनल चर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के प्रो. पवन शर्मा तथा महात्मा ज्योतिबा फुले रूहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली के डॉ. प्रवीण तिवारी पैनलिस्ट के रूप में उपस्थित रहे जबकि विश्वविद्यालय की समकुलपति प्रो. सुषमा यादव ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। परिचर्चा के मुख्य संरक्षक व विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने इस अवसर पर कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा हजारों साल पुरानी है और इस ज्ञान को भारत के वेद पुराणों में प्रस्तुत किया गया है। ये सभी धार्मिक पुस्तकें नहीं है ये ज्ञान की किताबे है जो आज के समय में भी वैज्ञानिक रूप से अपनी बातों को स्थापित करती है।

शिक्षा पीठ की सराहना की

आजादी का अमृत महोत्सव अभियान के तहत आयोजित इस कार्यक्रम की शुरूआत विश्वविद्यालय के कुलगीत के साथ हुई। इसके पश्चात आजादी का अमृत महोत्सव अभियान की नोडल ऑफिसर व शिक्षा पीठ की अधिष्ठाता प्रो. सारिका शर्मा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय में आजादी का अमृत महोत्सव अभियान के तहत आयोजित किए गए विभिन्न कार्यक्रमों को प्रतिभागियों के साथ साझा किया। विश्वविद्यालय कुलपति ने अपने संबोधन में कहा कि आयुर्वेद हो या एस्ट्रोनॉमी अभी में वर्णित ज्ञान आज के समय में भी प्रासंगिक रूप से अपने महत्व को बनाए हुए है। कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय के पाठयक्रम में भारतीय ज्ञान परम्परा को समाहित करना आज के समय की आवश्यकता है। शोध व नवाचार की दृष्टि से भी आवश्यक है कि हम हमारे पुरातन ज्ञान को जाने समझे और उसे अपनाते हुए आगे बढ़े। प्रो. टंकेश्वर कुमार ने इस आयोजन के लिए आजादी का अमृत महोत्सव, दिव्यांगजन प्रकोष्ठ और शिक्षा पीठ की सराहना की और कहा कि यहां अर्जित ज्ञान से विद्यार्थी, शिक्षक व शोधार्थी सभी लाभान्वित होंगे।

परम्परा को समझने के लिए हमें मूल ग्रंथों का अध्ययन करना होगा

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय की समकुलपति प्रो. सुषमा यादव ने कहा कि भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था देश में ही नहीं बल्कि समूचे विश्व में भी प्रसिद्ध थी। चरित्र निर्माण, आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ व्यक्ति के सर्वागीण विकास के उद्देश्य पर आधारित इस शिक्षा प्रणाली की ख्याति चारों ओर फैली हुई थी। प्राचीन भारतीय शिक्षा अपने उद्देश्यों एवं व्यावहारिकता के कारण संसार में अनूठी थी। उन्होंने कहा कि आज विशेषज्ञों द्वारा की गई चर्चा से प्रतिभागी अवश्य ही लाभांवित होंगे। कार्यक्रम में प्रो. पवन शर्मा ने भारतीय ज्ञान परंपरा अद्वितीय ज्ञान का भंडार है। प्राचीन भारतीय सनातन ज्ञान परंपरा अति समृद्ध थी और इसका उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना था। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा को समझने के लिए हमें मूल ग्रंथों का अध्ययन करना होगा।

कार्यक्रम का संचालन प्रो. गौरव सिंह ने किया

मूल स्रोतों पर आधारित शोध से हम सत्य की खोज कर सकते हैं। प्रो. शर्मा ने कहा कि जीवन में सत्य अलावा सब मिथ्या और भ्रम हैं। इसी क्रम में डॉ. प्रवीण तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा केवल संस्कृत का अध्ययन नहीं है। उन्होंने कहा कि विज्ञान, गणित, खगोल आदि सभी का मूल संस्कृत में है। संस्कृत और विज्ञान में जो बटवारा किया गया उससे भारतीय परम्परा का ह्यस हुआ है। डॉ. तिवारी ने कहा कि पाठ्यक्रमों में भारतीय ज्ञान प्रणाली का समायोजन विद्यार्थियों के लिए अवश्य ही उपयोगी साबित होगा। इससे विद्यार्थियों के मानसिक व शारीरिक विकास को सबल करने में मदद मिलेगी। कार्यक्रम का संचालन प्रो. गौरव सिंह ने किया।

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