Oil cheaper than water, rate in India on sky: पानी से सस्ता तेल, भारत में रेट आसमान पर

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जानिए कैसे तय होती हैं पेट्रोल-डीजल की कीमतें, आज कीमतों में राहत
जानिए कैसे तय होती हैं पेट्रोल-डीजल की कीमतें, आज कीमतों में राहत

लॉकडाउन की वजह से दुनियाभर में लोग घरों में है। तेल की मांग में कमी की यह भी एक बड़ी वजह है। दुनिया के पास फिलहाल इस्तेमाल की जरूरत से ज़्यादा कच्चा तेल है और आर्थिक गिरावट की वजह से दुनियाभर में तेल की मांग में कमी आई है। तेल के सबसे बड़े निर्यातक ओपेक और इसके सहयोगी जैसे रूस, पहले ही तेल के उत्पादन में रिकॉर्ड कमी लाने पर राजी हो चुके है। अमरीका और बाकी देशों में भी तेल उत्पादन में कमी लाने का फैसला लिया गया है। लेकिन तेल उत्पादन में कमी लाने के बावजूद दुनिया के पास इस्तेमाल की जरूरत से अधिक कच्चा तेल उपलब्ध है। समंदर और धरती पर भी स्टोरेज तेजी से भर रहे हैं। स्टोरोज की कमी भी एक समस्या बन रही है। साथ ही कोरोना महामारी से बाहर आने के बाद भी दुनिया में तेल की मांग धीरे-धीरे बढ़ेगी और हालात सामान्य होने में लंबा वक़्त लगेगा। क्योंकि यह सब कुछ स्वास्थ्य संकट के निपटने पर निर्भर करता है।
कच्चे तेल की कीमतें कोरोना वायरस महामारी और रूस तथा सऊदी अरब के बीच जारी कीमत कीमत युद्ध के कारण काफी टूट चुकी हैं। लेकिन भारत में तेल की कीमतों में गिरावट के बाद भी उपभोक्ताओं को लाभ नहीं मिलता है, तेल और गैस क्षेत्र भारत के आठ प्रमुख उद्योगों में से एक है और अर्थव्यवस्था के अन्य सभी महत्वपूर्ण वर्गों के लिए निर्णय लेने को प्रभावित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। इसलिए, तेल और गैस के दाम अधिक बढ़ने का अनुमान है। सरकार ने इस क्षेत्र के कई क्षेत्रों में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी है, जिसमें प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम उत्पाद और रिफाइनरियां शामिल हैं।
भारत में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों से जुड़ी हैं। जिसका मतलब है कि अगर कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं, जैसा कि फरवरी से काफी हद तक चलन रहा है, तो खुदरा कीमतों में भी कमी आनी चाहिए, लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। तेल कंपनियों ने 82 दिनों के अंतराल के बाद बीते रविवार से संशोधित कीमतों को फिर से शुरू करने के बाद से आॅटो ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी की। पिछले छह दिनों में पेट्रोल की कीमत में 3.31 रुपये प्रति लीटर और डीजल में 3.42 रुपये की बढ़ोतरी हुई है।
बीते माह न्यूयॉर्क आॅयल मार्केट में तेल की कीमतें इतनी गिरी की कच्चा तेल बोतलबंद पानी से भी सस्ता हो गया। सवाल उठता है कि दुनियाभर में बाजार में कच्चे तेल की कीमत पानी से भी कम हो गई है तो हमें पेट्रोल-डीजल इतना महंगा क्यों मिल रहा है? भारत में पेट्रोलियम पदार्थों की मांग भले ही तेजी से बढ़ी हों, लेकिन उत्पादन पर्याप्त नहीं है। ऐसे में हमें अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करना पड़ता है। जाहिर है कि यदि विदेशी बाजार में यह महंगा होता तो घरेलू बाजार में पेट्रोल—डीजल महंगा होगा और कच्चा तेल सस्ता होगा तो पेट्रोलियम उत्पाद सस्ता होता है तो यह सस्ता होगा। लेकिन अभी ऐसा दिख नहीं रहा है भारत में तेल की कीमत में गिरावट एक तरह से अजीब है – जब वैश्विक कीमतें बढ़ती हैं, तो यह उपभोक्ता को भरना पड़ता है, जिसे खपत किए गए प्रत्येक लीटर ईंधन के लिए अधिक पैसा देना पड़ता है। लेकिन जब रिवर्स होता है और कीमतें नीचे जाती हैं, तो सरकार यह सुनिश्चित करते हुए कि यह अतिरिक्त राजस्व में है, तो अपने पास रख लेती है और उपभोगताओं को कोई छूट नहीं देती।
कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद उपभोक्ताओं को लाभ नहीं मिलते। फरवरी की शुरूआत में क्रूड की कीमतें औसतन $ 55 प्रति बैरल से घटकर $ 35 तक पहुंच गईं, और फिर मार्च के अंत तक गिरकर 20 डॉलर तक पहुंच गई, क्योंकि मांग में गिरावट थी। उस समय से, कीमतें अब लगभग $ 37 तक वापस आ गई हैं। दूसरी ओर, भारत में, ईंधन की खुदरा कीमतें 82 दिनों के रिकॉर्ड के लिए जमी हुई है, यहां तक कि ईंधन पर उत्पाद शुल्क में केंद्र द्वारा दो बार बढ़ोतरी की गई। हालांकि सरकार ने दावा किया कि बढ़ोतरी का असर उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ा है, लेकिन बाद में कच्चे तेल की कीमतों में इस गिरावट का फायदा निम्न स्तर पर पहुंचने में नहीं हुआ। केंद्र के अलावा, कई राज्यों ने इस अवधि के दौरान आॅटो ईंधन पर लगान भी बढ़ाया। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा है कि तेल कीमतों को बढ़ाने का निर्णय तंग राजकोषीय स्थिति को देखते हुए लिया गया है और खुदरा कीमतों में उत्तरोत्तर वृद्धि की जा रही है। कच्चे तेल की कीमतें माइनस में जाने का यह मतलब नहीं है कि आज या कल से ही तेल सस्ता हो गया है। दरअसल मई महीने में कच्चे तेल की सप्लाई के लिए जो ठेके दिए जाते हैं वो अब निगेटिव में चला गया है। तेल विक्रेता दुनिया के देशों से तेल खरीदने के लिए कह रहे हैं लेकिन तेल खर्च करने वाले देशों को इसकी जरूरत नहीं है, क्योंकि उनकी अरबों की आबादी घरों में बैठी है लिहाजा वे तेल नहीं खरीद रहे हैं।

-डॉ. सत्यवान सौरभ
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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