चंडीगढ़ को पंजाब में शामिल करने के अब तक 7 प्रस्ताव, ये हैं आम आदमी पार्टी के तर्क Official Resolution

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आज समाज डिजिटल, अंबाला:
Official Resolution : पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद हरियाणा और पंजाब में चंडीगढ़ को राजधानी का मुद्दा फिर गरमा गया है। शुक्रवार को इस मुद्दे पर पंजाब की विधानसभा ने विशेष सत्र में सर्वसम्मति से चंडीगढ़ पर दावे को दोहराते हुए आधिकारिक प्रस्ताव पास कर दिया।

ये तर्क दे रही आप सरकार

आम आदमी पार्टी के विधायक अमन अरोड़ा तर्क दे रहे हैं कि जब भी एक मूल राज्य से कोई नया प्रदेश बनता है तो राजधानी मूल राज्य के साथ रहती है। उन्होंने तक5जब महाराष्ट्र का पुनर्गठन हुआ और 1 जनवरी, 1960 को गुजरात का जन्म हुआ, तो महाराष्ट्र ने मुंबई को अपनी राजधानी के रूप में बरकरार रखा। जब 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड बना था, तब भी लखनऊ यूपी की राजधानी बनी रही। जब छत्तीसगढ़ मूल राज्य मध्य प्रदेश से बना था तो भी 1 नवंबर 2000 को भोपाल एमपी की राजधानी बना रही।

तर्क के बाद जताया रोष

इसी तरह जब 15 नवंबर 2000 को झारखंड को बिहार से अलग कर दिया गया, पटना बिहार की राजधानी बना रही। जब तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग किया गया था, तो उन्होंने 2024 तक 10 साल की पुनर्गठन अवधि का फैसला किया था। लेकिन पंजाब में पुनर्गठन की अवधि पांच दशकों के बाद भी जारी है। पंजाब सरकार ने कहा कि सरकार ने पहले भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) में नियुक्ति के नियमों में बदलाव किया था। राज्य को लगता है कि केंद्र चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को कमजोर करने के लिए चंडीगढ़ को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है।

अब तक दावे के इतने प्रस्ताव

पंजाब विधानसभा द्वारा अब तक सात प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं। 18 मई 1967 को आचार्य पृथ्वी सिंह आजाद एक प्रस्ताव लेकर आए थे। चौधरी बलबीर सिंह 19 जनवरी 1970 को एक प्रस्ताव लेकर आए जबकि सुखदेव सिंह ढिल्लों ने 7 सितंबर 1978 को प्रकाश सिंह बादल की सरकार के दौरान प्रस्ताव लाया था। बलदेव सिंह मान 31 अक्टूबर 1985 को सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार के दौरान एक समान प्रस्ताव लाया था। ओम प्रकाश गुप्ता ने 6 मार्च 1986 को प्रस्ताव लाया। 23 दिसंबर 2014 को गुरदेव सिंह झूलन ने बादल की सरकार के दौरान यह प्रस्ताव लाया था। शुक्रवार (1 अप्रैल) को भगवंत मान आठ साल के अंतराल के बाद यह संकल्प लेकर आए।

मुद्दा रहा गौण, आतंकवाद था कारण

इस मुद्दे को पहले मुखर रूप से नहीं उठाया गया था क्योंकि पंजाब 1980 और 1990 के दशक में आतंकवाद से लड़ रहा था। इसलिए कई सरकारों ने राज्य के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया था, इसलिए विधानसभा द्वारा पारित पांचवें और छठे प्रस्तावों के बीच 28 साल का अंतर था। रिपोर्ट के मुताबिक 30 जनवरी 1970 को चंडीगढ़ को पंजाब को देने के केंद्र सरकार के फैसले की रिपोर्ट दी गई थी। जिसके मुताबिक चंडीगढ़ को पांच साल तक की अवधि के लिए केंद्र शासित प्रदेश रहना था।

पहले केंद्र ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड में नियुक्तियों के लिए नियमों में बदलाव किया था। पहले नियुक्तियां केवल पंजाब और हरियाणा से की जाती थीं लेकिन अब बोर्ड भारत में कहीं से भी भर्ती कर सकता है। इन दो घटनाक्रमों ने राज्य की सियासत में गरमाहट पैदा कर दी है। यह पहली बार नहीं हैं अब तक चंडीगढ़ पर दावे के लिए पंजाब विधानसभा में सात प्रस्ताव पारित हो चुके हैं, लेकिन मसला वहीं का वहीं खड़ा है। मामला बाहर आते ही इस जंग में चंड़ीगढ़ पर दावा करने के लिए हरियाणा भी कूद जाता है, जिससे पेचिदिगियां और बढ़ जाती हैं।

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