New strain of corona virus caused most deaths: अधिकांश मौतों की वजह कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन

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भारत में कोरोना का दूसरा लहर अभी खत्म नहीं हुआ कि तीसरे लहर की आशंका लोगों को परेशान करने लगी। देश में हुए अधिकांश मौतों की वजह कोरोनावायरस का नया स्ट्रेन है।
भारत की आबादी जिस तरह की है उस लिहाज से संक्रमण का प्रसार बहुत अधिक हो रहा है। हाल ही में  विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ साइंटिस्ट डॉ  सौम्या स्वामीनाथन ने वायरस के रोकथाम के लिए टीकाकरण को प्रमुख उपलब्धि बताया है। अक्टूबर 2020 में इस नये लहर की पुष्टि हुई थी। जितना अधिक स्ट्रेन, होगा संक्रमण भी उतनी तेजी से लोगों में फैलेगा और शहरों से लेकर गांव तक की एक अधिकांश आबादी इसके चपेट में आ जाएगी।  सुरक्षा मानकों की लगातार अनदेखी करना, लापरवाही भरी आदतों से खुद को तथा आसपास की आबादी को बीमार करना एक गैर जिम्मेदार नागरिक होने का प्रमाण है। सिर्फ टीकाकरण कर देने से कोई भी बीमारी समाप्त नहीं हो जाती,वरन् इसके पीछे कई और भी जिम्मेदार कारण है। होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों ने खुद को बहुत लापरवाह रखा, चिकित्सीय परामर्श में रहे बगैर झोलाछाप डॉक्टरों एवं रेहड़ी  तथा चौराहे पर उगे हुए मेडिकल स्टोरों की दवा खा कर वह अपने को अत्यधिक बीमार कर लिए।
लापरवाही इतनी अधिक बढ़ गई थी कि लोग होम आइसोलेशन को 14 दिनों तक काटने को तैयार नहीं थे। उन्हें कोई चिंता नहीं थी। इस बात की लापरवाही अत्यधिक लोगों में देखी गई कि वे लगातार कोविड पाजिटव  होने के बाद भी परिवार के अन्य सदस्यों से छुपाते रहे एवं नुक्कड़ चौराहे पर बातचीत में मशगूल होते रहे। नि:संदेह सरकार एवं सामाजिक संगठनों ने पर्याप्त रूप से टीकाकरण पर जोर दिया। लेकिन क्या सिर्फ टीकाकरण करने से महामारी बंद हो जाएगी? क्या भारत की अधिकांश आबादी इसी तरह अपने आप को लापरवाह करती रहेगी? क्या भारत के गांव में अभी भी लोग उतनी जागरूक नहीं जितने कि शहर के? क्या भारत के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं चिकित्सीय उपकरणों दवाइयों एवं चिकित्सा आपूर्ति की उतनी उपलब्धता क्यों नहीं है जितनी कि महानगरों एवं मेट्रो शहरों की है? सवाल सिर्फ इतना ही नहीं है। सरकार अपनी तरफ से लगातार लोगों को स्वस्थ देखना चाहती हैं। भारत की अधिकांश आबादी मे से अगर 73 फीसदी शिक्षित है,तो तो 27 फीसदी अशिक्षित भी। अधिकांश शिक्षित आबादी में से लोग आखिर इतनी लापरवाह क्यों है? प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पताल तथा कोविड-19 पर टीकाकरण जितनी मुस्तैदी से चल रहा है, समझाने की जरूरत नहीं।
80 साल की उम्र से लेकर अभी भी कई बूढ़े- बुजुर्ग कोरोनावायरस के टीका को लगवाने से अपने आप को बचा रहे हैं। 60 वर्ष की आबादी हो या 45 वर्ष की आबादी से ऊपर के लोग, भारत की कुल 135 करोड़ आबादी है अभी दो फीसदी लोगों ने ही सिर्फ टीका लगवाया है। क्या कारण है कि लोगों का विश्वास टीके के प्रति इतना गंभीर नहीं है जितना अपने रहन-सहन एवं भोग विलासिता के अन्य गैर जरूरी सामान इकट्ठा करने में है?
भारत की अधिकांश आबादी को यह समझना होगा की सरकार एवं समाज के परस्पर सहयोग से ही कोई भी महामारी अथवा  विपदा का संकट टल सकता है। आॅक्सीजन की कमी हमारे देश में है इसको स्वीकार करते हुए पेड़ पौधे एवं वृक्षारोपण पर अत्यधिक ध्यान देना होगा नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब लोगों को आॅक्सीजन के लिए पैसे खर्च करने पड़ेंगे और पैसे खर्च करने के बावजूद भी पर्याप्त आॅक्सीजन न मिलने के बराबर होगा।
अस्पतालों की इस समय जो दशा है वह शायद समय के न जाने कितने कालांश बीत गए कभी नहीं थी। ‘सिस्टम’ को सुधरने में धीरे-धीरे वक्त लगेगा पर अपने को व्यक्ति धीरे-धीरे जरूर सुधार सकता है।इस महामारी ने न सिर्फ केवल शारीरिक रूप से मनुष्य को कमजोर किया बल्कि कई मानसिक विकार भी उत्पन्न किए। कोरोना महामारी के इस विकराल आपदा में लोगों में मानसिक अवसाद, चिंता, दुख चिड़चिड़ापन, से लेकर भूलने की बीमारी तथा एकाग्रता की कमी देखी गई। लोग इन दिनों अपने घरों में कैद है। सरकार लगातार कोरोना वायरस की तेजी से प्रसारित होने वाली श्रृंखला को तोड़ने में पूरा जोर लगा रही है। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार में इन दिनों पारस्परिक सहयोग एवं संबंध स्थापित होते हुए दिख रहे हैं। वैसे भी अलग-अलग पार्टी होने के नाते अक्सर केंद्र और राज्य की समस्याओं समाधानो  को लेकर विरोधाभास उत्पन्न  होता रहा है। 18 साल से ऊपर के नौजवानों टीकाकरण को लेकर देश की अधिकांश जनसंख्या कोविड-19 के टीके को लेकर जागरूक होते हुए सक्रिय हैं। 1 मई से लेकर 8 मई तक हुए आंकड़ो पर नजर डालें तो युवाओं में टीकाकरण में अब तक तक 18 लाख के पार है।

देवेश त्रिपाठी

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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