महेंद्रगढ़: आरटीआई एक्ट प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता के लिए महत्पवूर्ण : प्रो. कुहाड़

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The Vice Chancellor of Haryana Central University (HKV), Mahendragarh
The Vice Chancellor of Haryana Central University (HKV), Mahendragarh

नीरज कौशिक, महेंद्रगढ़:
सूचना का अधिकार कानून एक ऐसा कानून है जो प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता हेतु महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। यह कानून आम नागारिक को बिना किसी भेदभाव के प्रशासनिक व्यवस्था को जानने समझने का अधिकार व अवसर प्रदान करता है। इसे सीधे शब्दों में सनसाइन लॉ कहें तो अनुचित नहीं होगा। यह विचार हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने विश्वविद्यालय के सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ (आरटीआई सेल) व हरियाणा इंस्टीटयूट आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, गुरूग्राम के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। आॅनलाइन माध्यम से आयोजित इस राष्ट्रीय कार्यशाला को हरियाणा इंस्टीटयूट आफ पब्लिक एडमिनिस्टेशन, गुरूग्राम डॉ. राजवीर ढाका, आरटीआई कार्यकर्त्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल और विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. राजबीर दलाल ने विशेषज्ञ वक्ता के रूप में प्रतिभागियों को संबोधित किया।

विश्वविद्यालय के आरटीआई सेल द्वारा आरटीआई एक्ट: सुओ मोटो डिसक्लोजर एंड बेस्ट प्रेक्टिसिज विषय पर केंद्रित इस आनलाइन राष्ट्रीय कार्यशाला की शुरूआत विश्वविद्यालय के कुलगीत के साथ हुई। इसके पश्चात विश्वविद्यालय की प्रगति को प्रदर्शित करने वाली डाक्यूमेंट्री फिल्म दिखाई गई। विश्वविद्यालय कुलपति ने अपने संबोधन में विशेष रूप से आरटीआई एक्ट के मूल उद्देश्य का उल्लेख करते हुए इसे एक महत्वपूर्ण व जनउपयोगी कानून बताया। कुलपति ने कहा कि यह एक ऐसा कानून है जो प्रशासानिक कार्यप्रणाली में पारदर्शिता स्थापित करता है और जनभागीदारी को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा कि यह भेदभाव से रहित कानून है जिसके लिए सभी नागरिक एक समान है और सभी का सरकारी कार्यप्रणाली में उपलब्ध सूचनाओं पर समान अधिकार है। कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने आगे कहा कि हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय इस कानून की मूल भावना को आत्मसात किए हुए और यहां हर निर्णय में पारदर्शिता बरती जाती है।

प्रत्येक निर्णय लोकतांत्रिक ढंग से लिया जाता है और वेबसाइट पर हर छोटे, बड़े निर्णय को प्रदर्शित किया जाता है जिससे की विश्वविद्यालय के सहभागी ही नहीं बल्कि अन्य कोई भी जान सकता है कि विश्वविद्यालय नेक नीति व नियत के साथ प्रगति के पथ पर अग्रसर है। कुलपति ने इस अवसर पर आरटीआई कानून के दुरूपयोग करने पर भी प्रकाश डाला और युवाओं को इस बुराई व अनाचार से बचने की सीख दी। प्रो. कुहाड़ ने इस अवसर पर शपथ दिलाते हुए सभी प्रतिभागियों को इस कानून का प्रयोग समाज व देश की बेहतरी के लिए करने, न्याय के लिए करने के लिए प्रेरित किया और कहा कि हम इस बात की भी शपथ ले कि इस कानून का किसी भी तरह से दुरूपयोग नहीं करेंगे और न ही किसी को करने देंगे। कुलपति के संबोधन से पूर्व विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. जे.पी. भूकर ने कुलपति व विशेषज्ञ वक्ता का स्वागत किया। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ के मार्गदर्शन व निर्देशन विश्वविद्यालय निरंतर प्रगति कर रहा है।

कोरोना महामारी के समय में बचाव व जागरूकता के स्तर पर उल्लेखनीय कार्यों के लिए हाल ही में विश्वविद्यालय को वर्ल्ड बुक आॅफ रिकॉर्ड, लंदन की ओर से प्रतिबद्धता प्रमाण पत्र प्रदान किया गया है। इसी तरह कोरोना संकट के मुश्किल समय में विश्वविद्यालय ने इनफिल्बिनेट के सहयोग से आॅनलाइन अध्ययन हेतु लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम की शुरूआत की जिससे छात्र-छात्राओं की पढ़ाई एक दिन के लिए भी बाधित नहीं होने दी गई। कुलसचिव ने आगे कहा कि जहां तक बात कार्यशाला के विषय की है तो आरटीआई एक्ट एक महत्वपूर्ण विषय है और इसके माध्यम से लोक प्रशासन में पारदर्शिता, जनभागीदारी और जवाबदेही का समावेश सुनिश्चित होता है।
कार्यशाला के विशेषज्ञ वक्ता डॉ. राजवीर ढाका ने आरटीआई एक्ट विभिन्न न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से बताया कि यह कानून किस हद तक सूचना प्राप्त करने के नागरिक अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। उन्होंने कहा कि इस कानून की सहायता से प्रशासनिक कार्यप्रणाली में पारदर्शिता को प्राप्त किया जा सका है और यदि कोई सूचना देने से इंकार करता है तो इसके प्राप्तकर्ता को संविधान के अंतर्गत प्राप्त अधिकार का उल्लंघन तक माना जाता है।

हालांकि डॉ. ढाका ने भी इस कानून के दुरूपयोग पर चिंता जाहिर की और प्रतिभागियों को इसके उचित व जनहित में प्रयोग के लिए प्रेरित किया। इसी क्रम में विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. राजबीर दलाल ने भी इस कानून के विभिन्न तकनीकी पक्षों पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस कानून के अंतर्गत निर्धारित सूचना देने की समयसीमा, इसके अंतर्गत वर्णित अपील व आवेदन के लिए निर्धारित शुल्क आदि से संबंधित पक्षों को प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि कौन सा अधिकारी क्या कार्य करता है और उसकी सूचनाएं कहां उपलब्ध होती है। कार्यशाला में विशेषज्ञ वक्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने अपने संबोधन में इस कानून के व्यावहारिक पक्षों पर विस्तार से चर्चा की।

उन्होंने इस कानून को भारतीय नागरिकों को आजाद भारत में सूचना के स्तर पर मिली सूचना की दूसरी आजादी बताया। सुभाष अग्रवाल ने बताया कि यह कानून एक व्यक्ति को तीन स्तर पर सूचनाएं प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है पहला, सूचना अधिकारी के स्तर पर, दूसरा, प्रथम अपील अधिकारी व  तीसरा, सूचना आयोग के स्तर पर। यानी सूचना प्रदान करने में यदि कहीं कौताही बरती जाती है तो उसके विरुद्ध कार्रवाई का अवसर उपलब्ध है।  उन्होंने बताया कि इस कानून के अंतर्गत आप किस तरह से सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं और सूचनाएं न मिलने की स्थिति में आप किस तरह से इस संबंध में अपने स्तर पर प्रयास कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अवश्य ही ऐसा देखने में आता है कि कुछ लोग इस कानून का गलत प्रयोग करते हैं लेकिन बड़े पैमाने पर देखे तो यह कानून जनहित में है और आम आदमी को सरकारी कार्य व्यवस्था को जानने समझने का अवसर प्रदान करता है। आयोजन में प्रतिभागियों ने विशेषज्ञों से अपनी विभिन्न जिज्ञासाओं का निदान भी प्राप्त किया।

कार्यशाला के आयोजन सचिव व विश्वविद्यालय के आरटीआई सेल के प्रमुख डॉ. कुलवंत मलिक ने बताया कि सूचना का अधिकार कानून नागरिकों के लिए विभिन्न प्रशासनिक जानकारियां प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इसके लिए अब सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं रह गई हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का आरटीआई सेल इस दिशा में बेहद सकारात्मक रूप से कार्यरत है और आरटीआई के अंतर्गत मांगी जाने वाली सूचनाएं निर्धारित समय पर नियमानुसार आवेदकों को उपलब्ध कराता है। डॉ. कुलवंत ने कहा कि अवश्य ही इस आयोजन से प्रतिभागियों के ज्ञान में बढ़ोत्तरी हुई होगी। कार्यक्रम का संचालन विधि विभाग में सह आचार्य डॉ. मोनिका ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. कुलवंत मलिक ने प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि इस आयोजन में विभिन्न शिक्षण संस्थानों के करीब 400 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।

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