meva kee seva kee samaapti ke baad…? मेवा की सेवा की समाप्ति के बाद…?

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बिहार में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद नई सरकार बन गई है। इस सरकार में पहले दिन मंत्री पद की शपथ लेने वाले तारापुर विधानसभा सीट के विधायक मेवालाल चौधरी की चर्चा खत्म नहीं हो रही है। दरअसल, मेवालाल पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप हैं। बावजूद उन्हें मंत्री बना दिया गया। हालांकि अब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है, फिर भी अनेक सवाल ऐसे हैं, जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछे जा रहे हैं। नीतीश कुमार से पूछा जा रहा है कि आपने मेवालाल को दुबारा टिकट क्यों दिया? वह 2015 में जदयू वे विधायक चुने गए थे। आरोप है कि उन्होंने कृषि विवि का वीसी रहते 2012-13 में असिस्टेंट प्रोफेसर और जूनियर साइंटिस्ट की नियुक्ति में भारी घपला किया था। 2017 में उनका भ्रष्टाचार उजागर हुआ। उनके खिलाफ एफआइआर हुआ, तो नीतीश ने उन्हें सिर्फ पार्टी से निलंबित किया! गिरफ्तारी के डर से फरार चल रहे मेवालाल को नीतीश की सरकार ने जमानत हासिल करने में मदद की! कोर्ट के रिकार्ड में दर्ज है कि सरकारी वकील ने उनकी बेल अर्जी का विरोध तक नहीं किया। नीतीश सरकार ने आज तक मेवालाल के खिलाफ चार्जशीट की अनुमति नहीं दी। सितंबर, 2019 से पुलिस चार्जशीट के लिए सरकार की अनुमति का इंतजार कर रही है। सरकार ने मेवालाल को कानून के शिकंजे से मुक्त रखा और उन्हें दुबारा पार्टी का टिकट दे दिया। वे दुबारा जीत गए और नीतीश ने उन्हें मंत्री बना दिया। सोशल मीडिया और विपक्ष ने हंगामा मचाया तो नीतीश कुमार ने मेवालाल से इस्तीफा करा दिया! इस तरह के कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब बिहार चाहता है।
आपको बता दें कि बिहार में चुनाव नतीजे आने के बाद नीतीश सरकार ने शपथ ले ली। लेकिन चार दिन के भीतर ही शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी को इस्तीफा देना पड़ गया। मेवालाल जेडीयू के नेता हैं न कि बीजेपी के। ऐसे में ये माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को बीजेपी के दबाव में यह फैसला लेना पड़ा है क्योंकि अगर मेवालाल को हटाना ही होता तो नीतीश उन्हें जेडीयू के कोटे से मंत्री क्यों बनाते और आरजेडी का कोई ऐसा प्रेशर नहीं है जो नीतीश को अपने मंत्री को हटाने के लिए मजबूर कर सके। मेवा लाल चौधरी पर भागलपुर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और कनिष्ठ वैज्ञानिकों की नियुक्ति में घपले सहित अपनी पत्नी नीरा चौधरी की मौत को लेकर भी गंभीर आरोप हैं। पटना से लेकर दिल्ली तक यह चर्चा जोरों पर है कि नीतीश के लिए इस बार सरकार चलाना आसान नहीं होगा। इसकी वजह साफ है कि बीजेपी इस बार बड़ा दल तो है ही, नीतीश के जोड़ीदार सुशील कुमार मोदी को भी उसने हटाकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। इसके अलावा बीजेपी ने एक के बजाए दो लोगों को उप मुख्यमंत्री बनवाया है और दोनों खांटी संघी हैं। ऐसे में सेक्युलर मिजाज वाले नीतीश को साफ मैसेज दे दिया गया है कि उन्हें किस तरह के माहौल में काम करना है। सुशील मोदी के बिना सरकार चलाना नीतीश के लिए खासा मुश्किल होगा और शपथ ग्रहण के बाद उन्होंने पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में कहा कि हां, उन्हें सुशील मोदी की कमी खलेगी। बीजेपी नेता जब-जब हमलावर होते थे तो सुशील मोदी ही ऐसे शख़्स थे जो उनके बचाव में खुलकर आगे आते थे और माना जा रहा है कि नीतीश की हिमायत करने का ही खामियाजा सुशील मोदी को उठाना पड़ा है।
बहरहाल, यह साफ है कि मेवालाल का इस्तीफा बीजेपी के जबरदस्त दबाव में हुआ है। क्योंकि सरकार बनने के तीन-चार दिन के अंदर अपने मंत्री को हटाकर नीतीश अपनी किरकिरी क्यों करवाना चाहेंगे, वे क्यों चाहेंगे कि आरजेडी और चिराग पासवान को उन पर हमलावर होने का एक और मौका मिले। नीतीश पार्टी के अकेले बड़े नेता हैं और जेडीयू के खराब प्रदर्शन को लेकर सारे सवालों का जवाब भी उन्हें देना है और पांच साल तक बीजेपी से ना दबते हुए सरकार भी चलानी है। बिहार में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि बंगाल के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी कांग्रेस और जेडीयू के विधायक दल में जोरदार सर्जिकल स्ट्राइक कर सकती है। क्योंकि वह राज्य में अपने नेता को मुख्यमंत्री देखना चाहती है। यहां इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी है कि भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद मेवालाल को जेडीयू से निकाला गया था तो पार्टी में उनकी वापसी भी और उन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट मिलना भी बिना नीतीश कुमार की मर्जी के संभव नहीं हो सकता। इसके बाद कैबिनेट के चयन में जेडीयू कोटे से पहली बार में मेवालाल का शामिल होना भी नीतीश कुमार के बिना संभव नहीं है क्योंकि नीतीश ही पार्टी के मुखिया हैं। फिर ऐसा क्या कारण रहा कि नीतीश को मेवालाल का इस्तीफा लेना पड़ा। ताजा राजनीतिक माहौल में बीजेपी ही नीतीश पर दबाव बनाने में सक्षम है और जैसे ही आरजेडी-कांग्रेस ने हंगामा किया और मीडिया में मेवालाल पर लगे आरोपों का जिक्र होना शुरू हुआ तो बीजेपी ने भी इस मसले को उठाया होगा। नीतीश आखिर क्यों अपने ऐसे नेता का इस्तीफा लेना चाहेंगे जिसे उन्होंने मंत्री बनाया है। जाहिर है कि यह बीजेपी का ही दबाव है, जिस कारण वह मजबूर हुए हैं। अब यह शीशे की तरह साफ हो चुका है कि नीतीश के लिए आने वाले 5 साल कांटों भरे होंगे। चुनाव नतीजे आने के बाद यह चर्चा जोर-शोर से उठी थी और नीतीश ने इसे स्वीकार भी किया था कि वह इस बार मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते। लेकिन बीजेपी को डर था कि आरजेडी उन्हें समर्थन देकर मुख्यमंत्री बना सकती है, इसलिए मोदी से लेकर अमित शाह तक उन्हें मनाने में जुट गए।
जानकार मानते हैं कि वैसे भी बीजेपी और जेडीयू के बीच विचारधारा का जबरदस्त टकराव है। राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, सीएए-एनआरसी को लेकर जेडीयू का रूख बीजेपी से पूरी तरह अलग है। बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे पर तेजी से आगे बढ़ रही है और ऐसे में पार्टी के बेहद खराब प्रदर्शन से परेशान नीतीश उसके साथ कब तक रह पाएंगे, यह सवाल बिहार में उस दिन तक पूछा जाएगा जब तक वे बीजेपी से अलग नहीं हो जाते। बहरहाल, देखना यह है कि तमाम गतिरोधों व अवरोधों के बीच नीतीश कुमार अपनी सरकार का सफल संचालन किस प्रकार कर पाते हैं। उसमें भी मेवालाल चौधरी का प्रकरण उनका पीछा छोड़ने को तैयार नहीं है।
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