Lockdown and psychosomatic disorders: लॉकडाउन और मनोदैहिक विकारों की समस्या

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आजकल कोरोना के भय एवं लाँकडाउन के कारण घर में ही रहने के कारण लोगों में मनोदैहिक विकार की समस्या तेजी से फैल रही है। मनोदैहिक विकार में लोगों में बिना कारण सिर दर्द, बुखार, पेट दर्द, घबराहट, बेचैनी, मिचली आना, दस्त, नींद ना आना, हाथ पैर में झनझनाहट व अन्य समस्याए होना आम बात है। मनोदैहिक विकार में व्यक्ति शारीरिक लक्षण बिना किसी जैव-शारीरिक कारणों के ही महसूस करता है। सामान्य समय में  14% लोगों में मनोदैहिक विकार दिखाई पड़ता है। मध्यम सामाजिक आर्थिक स्तर के लोगों में 17 प्रतिशत जबकि निम्न सामाजिक आर्थिक स्तर वाले लोगों में 10 फीसद तथा उच्च सामाजिक-आर्थिक स्तर के लोगों में 15 फीसद पाया जाता है। मनोदैहिक विकारों के लक्षण पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक पाए जाते हैं। व्यक्ति के सभी जांच रिपोर्ट सामान्य आते हैं फिर भी उसमें शारीरिक दर्द एवं समस्याएं बनी रहती है। वास्तव में लक्षण भावनात्मक एवं व्यावहारिक कारणों से होता है। किसी भी लक्षण को मनोदैहिक विकार की श्रेणी में रखने से पूर्व उससे संबंधित शारीरिक कारणों की जांच करके यह सुनिश्चित कर लेना अत्यंत आवश्यक होता है कि सभी जांच रिपोर्ट सामान्य है। मनोदैहिक विकार में व्यक्ति को शारीरिक लक्षण होता है किंतु उसका कारण शारीरिक नहीं बल्कि मन से जुड़ा होता है इसीलिए इसे मनोदैहिक विकार कहते हैं। इसमें कारण दिमाग/ मन में होता है और लक्षण शरीर में दिखता है। इससे पीड़ित व्यक्ति भावनात्मक तनाव को छुपाने के लिए शारीरिक लक्षण प्रदर्शित करता है। वास्तव में कोई समस्या नहीं होती है, व्यक्ति केवल महसूस करता है। मनोदैहिक समस्याएं व्यक्ति में मनोवैज्ञानिक संकट की शारीरिक अभिव्यक्ति है। जब व्यक्ति के मन में कोई परेशानी होती है और व्यक्ति उससे निपटने में सक्षम नहीं होता है तो दिमाग उसे नकारात्मक भावना में बदल देता है जिसका प्रभाव व्यक्ति के शरीर पर पड़ता है। यह परेशानी जितनी गंभीर और लंबे समय तक चलने वाली होगी उसका दुष्प्रभाव भी शारीरिक लक्षण के रूप में उतनी ही गंभीर दिखाई पड़ेगी। एक साधारण से उदाहरण के माध्यम से इसे आसानी से समझ सकते हैं। आप कप में चाय पीते हैं तो क्या कप में चाय पीते समय कप आपको वजनी महसूस होता है? इसका उत्तर होगा बिल्कुल नहीं, पर इसी कप को आपको 2 घंटे हाथ में पकड़ कर रखने के लिए बोल दिया जाए तो क्या होगा? निश्चय ही हाथ में दर्द होने लगेगा और ऐसा ही 4 घंटे तक करने को कह दिया जाए तो दर्द पूरे शरीर में होने लगेगा। यही तनाव के साथ भी होता है जब कुछ समय तक तनाव रहता है तो इसका प्रभाव दिखाई नहीं देता किंतु जब तनाव लंबे समय तक तथा उच्च स्तर का बना रहता है तो यह शारीरिक दुष्प्रभाव के रूप में दिखाई पड़ने लगता है। कोरोना के संक्रमण के बारे में लगातार गंभीर सोच विचार करने तथा इसे तनाव के रूप में मन में बने रहने के कारण लोग इससे संबंधित मनोदैहिक विकारों को महसूस करने लगते हैं। आजकल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रिंट मीडिया सोशल मीडिया सभी जगह कोरोना संबंधित सूचनाएं 24 घंटे प्रसारित हो रही हैं जो व्यक्ति लगातार इसके संपर्क में बना रहता है तो उसके मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और कुछ समय पश्चात शारीरिक लक्षण के रूप में दिखाई पड़ने लगता है।
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा.मनोज तिवारी के अनुसार कोरोना के कारण मुख्य रूप से लोगों में जो मनोदैहिक लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं उनमें से प्रमुख निम्नलिखित है:-
गले में खराश महसूस करना। जोर लगाकर खाँसने का प्रयास करना, जब वे किसी कार्य या अन्य गतिविधि में व्यस्त रहते हैं उनका ध्यान गले पर नहीं रहता तब तक उन्हें खांसी महसूस नहीं होती और जैसे ही उनका ध्यान गले पड़ जाता है वे खाँसने का प्रयास करने लगते हैं।बार-बार शरीर गर्म (बुखार) होने की शिकायत करना जबकि बुखार नापने पर शरीर का तापमान सामान्य होता है। पेट में दर्द की शिकायत करना। सीने में भारीपन महसूस करना। अत्यधिक पसीना होना। मुंह व गला सूखना । बार-बार दस्त महसूस होना जैसी प्रमुख बातें हैं। व्यक्ति निम्नलिखित सावधानियां को अपनाकर कोरोना से जुड़ी मनोदैहिक समस्याओं से अपने आप को सुरक्षित रख सकता है। कोरोना से जुड़ी खबरें हर समय ना सुने और ना देखने का प्रयास करें। परिवार के सदस्यों, परिचितों, मित्रों एवं रिश्तेदारों से केवल कोरोना के बारे में ही बातचीत ना करें बल्कि कुछ अच्छे एवं सकारात्मक समाचार पर भी चर्चा करें। गूगल एवं सोशल मीडिया पर कोरोना संबंधी अधिक जानकारी इकट्ठा करने का प्रयास ना करें।  दिमाग और शरीर के बीच का संतुलन बनाकर रखें, शरीर और मन दोनों को ही पर्याप्त आराम दें। अपने दिनचर्या को नियमित रखें सुबह उठने एवं रात में सोने के समय का निर्धारण करें, खाना खाने का समय निर्धारित करें।रात में सोने से पहले  कोरोना सम्बन्धी सूचना को देखकर, सुनकर या पढ़कर ना सोए। इसके अलावा नियमित व्यायाम करें, ऐसे अवसरों में रिलैक्सेशन एक्सरसाइज अत्यंत प्रभावकारी होते हैं। योग एवं मनन करें। पूजा करें।  घर के सदस्यों के साथ आगे की योजनाएं बनाएं घर में बच्चे हो तो उनके साथ उनके पढ़ाई लिखाई के मुद्दों पर चर्चा करें, उनके साथ खेलने का प्रयास करें अपने बचपन के दिनों में खो जाए। अपने पसंद व रुचि का काम करें।ऐसे लोगों से बातचीत एवं सोशल मीडिया पर दूरी बना लें, जो लोग आपको दहशत में डालने वाली बातें अधिक करते हैं। अकेले हैं तो डायरी लिखें, कविता लिखें, कहानी लिखें व पढें, अपने अच्छे दिनों को याद करें, अच्छी फिल्में देखें, अपने जीवन की यादगार फोटो देखें, मनपसंद गाने सुने तथा सोशल मीडिया के माध्यम से अपनों से जुड़े रहें।अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखें, सोचे कि यह समय शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा पुन: हम लोग अपना जीवन सामान्य ढंग से जी सकेंगे। परिवार  का कोई सदस्य, परिचित या रिश्तेदार मनोदैहिक विकार से पीड़ित हो वे लोग कुछ सावधानियां रखकर पीड़ित व्यक्ति की सहायता कर सकते हैं। देखभाल करने वाले व्यक्ति का व्यवहार मनोदैहिक विकार से पीड़ित व्यक्ति की समस्या को बढ़ाने एवं कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पीड़ित व्यक्ति से यह कभी ना बोलें कि “यह केवल तुम्हारा नाटक है, ऐसा कुछ नहीं होता है” ऐसा कथन पीड़ित व्यक्ति के समस्याओं को घटाने के बजाय और बढ़ा सकता है।पीड़ित व्यक्ति को दशार्ते रहे कि आपकी परेशानी को हम समझते हैं इससे पीड़ित व्यक्ति को साम्बेगिक सहयोग महसूस होगा और उसके लक्षणों में कमी आएगी। उसे ध्यान, योग, पूजा ध्यान इत्यादि करने में सहयोग प्रदान करें। पीड़ित व्यक्ति के दिनचर्या में सुधार करने तथा उसको नियमित बनाए रखने में सहयोग प्रदान करें। उन्हें सकारात्मक सूचनाएं प्रदान करें। उनसे कहे की हम लोग आपके साथ हैं कोई समस्या हो तो आप तुरंत बताएं, कोरोना जैसी महामारी पहले भी आई और चली गई हैं। सावधानियां रखकर के इस महामारी से आसानी से बचा जा सकता है घबराने का कोई बात नहीं है। उनके निदान एवं उपचार में आवश्यकता अनुसार सहयोग प्रदान करें। मनोदैहिक विकारों के उपचार में  मनोचिकित्सा सबसे अधिक मददगार साबित होता ह। आप उचित इलाज के जरिए इस समस्या का निदान खोज सकते हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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