Legally Speaking : सेम सेक्स मैरिजः सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ ने फिर ठुकराई केंद्र की मांग, कहा समलैंगिक संबंध शहरी अभिजात्य अवधारणा मात्र नहीं

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आज समाज डिजिटल ,दिल्ली:

1.सेम सेक्स मैरिजः सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ ने फिर ठुकराई केंद्र की मांग, कहा समलैंगिक संबंध शहरी अभिजात्य अवधारणा मात्र नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कानून के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बुधवार को कहा कि समलैंगिक संबंध और क्वीर अधिकार शहरी-अभिजात्य अवधारणा नहीं हैं, जैसा कि केंद्र सरकार ने दावा किया है। सुप्रीम की संविधान पीठ सेम सेक्स मैरिज के मुद्दे पर सुनवाई कर रही है। इस पीठ में  CJI चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, पीएस नरसिम्हा और हिमा कोहली भी शामिल हैं।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले अधिक लोग अपनी यौन पहचान के संबंध में कोठरी से बाहर आ रहे हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार के पास यह दिखाने के लिए कोई डेटा है कि समलैंगिक विवाह के लिए ऐसी अवधारणाएं या मांगें शहरी संभ्रांत आबादी तक ही सीमित हैं।

उन्होंने आगे कहा कि राज्य लोगों में उनकी सहज विशेषताओं के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है, जिन पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि “राज्य किसी व्यक्ति के खिलाफ उस विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है जिस पर व्यक्ति का नियंत्रण नहीं है। जब आप इसे जन्मजात विशेषताओं के रूप में देखते हैं, तो यह शहरी अभिजात्य अवधारणा का मुकाबला करता है.. शहरी शायद इसलिए कि अधिक लोग बाहर आ रहे हैं। सरकार के पास यह दिखाने के लिए कोई डेटा भी नहीं है कि समलैंगिक विवाह एक शहरी अभिजात्य अवधारणा है,

सीजेआई ने यह टिप्पणी सरकार की ओर से पेश किए गए तर्कों के आधार पर दी। सरकार का कहना था कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने वाले याचिकाकर्ता शहरी अभिजात्य विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

सरकार ने अपने हलफनामे में दावा किया कि याचिकाएं “सामाजिक स्वीकृति के उद्देश्य के लिए केवल शहरी अभिजात्य विचारों” का प्रतिनिधित्व करती हैं और विधायिका को समाज के सभी वर्गों के व्यापक विचारों पर विचार करना होगा।

याचिकाओं के समूह ने कानून के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की है। केंद्र सरकार ने इन सभी याचिकाओं का विरोध किया है।

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर एक हलफनामे मे केंद्र सरकार ने कहा कि भागीदारों के रूप में एक साथ रहना और समान लिंग वाले व्यक्तियों द्वारा यौन संबंध बनाना भारतीय परिवार इकाई की अवधारणा के साथ तुलना ठीक नहीं है।

केंद्र ने एक आवेदन भी दायर किया है जिसमें अदालत से कहा गया है कि वह पहले याचिकाओं की विचारणीयता पर फैसला करे। सेम सेक्स मैरिज पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जारी है।

2. किशोरी से छेड़छाड़ के दोषी को इटावा की अदालत ने सुनाई पांच साल की सजा

उत्तर प्रदेश की इटावा की अदालत ने छेड़छाड़ करने के दोषी को पांच साल की सजा सुनाई गई है साथ ही कोर्ट ने आठ हजार का जुर्माना भी लगाया है। इटावा की अदालत के विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट कल्पना द्वितीय ने ढाई साल पुराने पॉक्सो एक्ट के मामले की सुनवाई करते हुए एक आरोपी को पांच साल की सजा सुनाई है।

उत्तर प्रदेश जिला शासकीय अधिवक्ता दशरथ सिंह चौहान ने मीडिया को बताया कि बकेवर थाना क्षेत्र के एक कस्बा की रहने वाली किशोरी ढाई साल पहले 9 नवंबर को अपने घर पर थी। उसके माता-पिता दवा दिलाने के लिए इटावा गए थे, उसी वक्त मौका पाकर पड़ोस में रहने वाला पीतांबर नाथ वर्मा उसके दरवाजे पर पहुंचा और उसे बहला फुसलाकर दरवाजा खुलवा लिया। किशोरी ने दरवाजा खोला तो पीतामंबर ने उसके साथ छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी। युवती के विरोध करने पर उसे जान माल की धमकी दी। उसने यह भी चेतावनी दी कि उसने इसकी जानकारी अपने पिता को दी तो उसकी खैर नहीं। रात को उसके माता-पिता लौट आए। किशोरी ने जानकारी पिता को दी। पिता ने इसकी जानकारी पुलिस को दी। शिकायत के आधार पर पुलिस ने घर में घुसकर छेड़छाड़, जान माल की धमकी व पॉक्सो एक्ट की धाराओं में मामला दर्ज कर लिया।

पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। विवेचना के बाद पुलिस ने आरोप पत्र कोर्ट में पेश किया था। अपर जिला शासकीय अधिवक्ता के द्वारा पेश किए साक्ष्यों व गवाहों के आधार पर कोर्ट ने पीताम्बर नाथ वर्मा को दोषी पाया और उसे पांच साल का सजा सुनाई।

3.मोदी सरनेम’ मामले में राहुल गाँधी ने पटना हाई कोर्ट में दाखिल की याचीका, 24 अप्रैल को सुनवाई होगी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व लोकसभा सांसद राहुल गाँधी ने पटना हाई कोर्ट में याचीका दाखिल कर पटना के एमएलए-एमपी कोर्ट के उस आदेश को रद करने की मांग की है, जिसमें कोर्ट ने राहुल को 25 अप्रैल को मोदी सरनेम मामले में सदेह उपस्थित होने के लिए कहा है।

पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीश संदीप कुमार के समक्ष राहुल गांधी के अधिवक्ता अंशुल ने इस मामले की त्वरित सुनवाई की गुहार लगाई थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकृति देते हुए इसे 24 अप्रैल को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।

दरसअल भाजपा नेता सुशील मोदी ने 2019 में राहुल गांधी पर मानहानि का केस दर्ज करवाया था। सुशील मोदी ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने मोदी को चोर कहकर पूरे मोदी समुदाय का अपमान किया है।

ऐसे ही मामले में इन 23 मार्च 2023 को गुजरात की सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई थी। जिसके बाद राहुल गाँधी की संसद की सदस्यता समाप्त हो गई थी।

वही संसद सदस्यता जाने के बाद पहली बार राहुल गांधी मंगलवार को अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड पहुंचे थे। इस दौरान राहुल ने भाजपा पर जमकर आरोप भी लगाए। उन्होंने कहा कि भाजपा सांसद का टैग छीन सकती है। मेरा पद और घर ले सकती है। वे लोग जेल में भी डाल सकते हैं, लेकिन मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता। मैं सवाल तो पूछता रहूंगा।

4. बिहार सरकार को पटना हाई कोर्ट से राहत: जातीय गणना पर कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार किया

पटना हाई कोर्ट से बिहार सरकार को बड़ी राहत मिल गई है। हाई कोर्ट ने बिहार में जाति आधारित गणना के दूसरे चरण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। जातीय गणना का दूसरा चरण 15 अप्रैल को ही शुरू हुआ है। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने जाति आधारित गणना के खिलाफ दाखिल
याचिकाओं पर सुनवाई की।

दरअसल, राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग की इसी साल सात मार्च को जारी अधिसूचना रद्द करने को लगभग आधा दर्जन याचिकाएं पटना हाई कोर्ट में दायर की गई हैं। राज्य सरकार के वकील ने अदलात में कहा कि अर्जी में आरोप लगाया गया है कि आकस्मिक निधि से 500 करोड़ निकाला गया है, जो पूरी तरह से निराधार है।

वही याचिकाकर्ता को वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि सरकार नागरिकों की गोपनीयता के अधिकार में दखल दे रही है। कोई नागरिक जाति का खुलासा नहीं करना चाहता है तो भी उसकी जाति की जानकारी सभी को हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि राज्य सरकार को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।

हालांकि कई वकीलों ने जाति आधारित गणना पर रोक लगाने का अनुरोध कोर्ट से किया। लेकिन कोर्ट ने कहा कि इस केस में किसी तरह का अंतरिम आदेश नहीं दिया जाएगा। साथ ही कोर्ट ने सभी मामलों पर चार मई को सुनवाई करने का आदेश दिया।

5.कर्नाटक की फास्ट ट्रैक अदालत ने बलात्कार के अभियुक्त को सुनाई 20 साल की सश्रम कारावास की सजा

कर्नाटक के उडुपी जिले की एक फास्ट ट्रैक पोक्सो अदालत ने ब्यंदूर की एक लड़की से दोस्ती करने के बाद उससे कई बार बलात्कार करने के आरोप में एक युवक को 20 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है।

उडुपी जिला अतिरिक्त और सत्र अदालत ने 23 वर्षीय साहिल को करीब दो साल पहले लड़की से बलात्कार करने के आरोप में सजा सुनाई।

पुलिस के मुताबिक, साहिल शिवमोग्गा जिले के सागर कस्बे में एक होटल के पास एक दुकान में काम करता था. उडुपी के बेंदूर की रहने वाली पीड़िता सागर में रह रही थी क्योंकि उसके पिता का वहां होटल है। युवक उसके साथ संबंध बनाने लगा।

जुलाई 2021 में, साहिल ने लड़की के जन्मदिन समारोह के लिए बिंदूर की यात्रा की। बर्थडे पार्टी के बाद वह पीड़िता को सुनसान जगह पर ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। चार्जशीट में कहा गया है कि युवक ने उससे शादी करने का वादा किया और पहली घटना के बाद बार-बार इस कृत्य को अंजाम दिया।

जब पीड़िता की मां को इस संबंध के बारे में पता चला तो उसने बिंदूर थाने में शिकायत दर्ज करायी. तत्कालीन पुलिस निरीक्षक संतोष कयाकिनी ने मामले में आरोप पत्र दायर किया था।

मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर विचार करने वाले फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश श्रीनिवास सुवर्णा ने आरोपी को दोषी करार देते हुए उसे 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई और 22,500 रुपये का जुर्माना लगाया।

कोर्ट ने सरकार को पीड़िता को 1.5 लाख रुपये मुआवजा देने का भी निर्देश दिया है। अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक वाई टी राघवेंद्र पेश हुए।

6. फैमिली कोर्ट में मध्यस्थता की अवधारणा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आयोजित की दो दिन की विशेष कार्यशाला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने “मध्यस्थता की अवधारणा और तकनीक” विषय पर इलाहाबाद क्लस्टर के पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए दो दिन की कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर के मार्गदर्शन में किया गया था।

कार्यशाला का उद्घाटन फैमिली कोर्ट मैटर्स की संवेदीकरण समिति की अध्यक्ष न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल ने किया।

न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने समिति की सदस्य माननीय श्रीमती न्यायमूर्ति साधना रानी ठाकुर के साथ अतिथि के रूप शामिल हुए। न्यायमूर्ति साधना रानी ठाकुर ने अपने संबोधन में परिवार न्यायालय के न्यायाधीशों को मध्यस्थता की अवधारणाओं और तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में हाईकोर्ट, इलाहाबाद के विभिन्न न्यायाधीशों ने भाग लिया। प्रतिभागियों में इलाहाबाद, बांदा, चित्रकूट, फतेहपुर, हमीरपुर, जालौन के उरई, झांसी, कानपुर नगर, कौशाम्बी, ललितपुर, महोबा, रायबरेली, रमाबाई नगर, उन्नाव के पारिवारिक न्यायालयों में तैनात प्रधान न्यायाधीश और अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश शामिल थे।

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