Chhath Mahaaparv: जानें छठी मैया कौन हैं, छठ महापर्व पर क्यों करते हैं इनकी पूजा?

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Chhath Mahaaparv: जानें छठी मैया कौन हैं, छठ महापर्व पर क्यों करते हैं इनकी पूजा?
Chhath Mahaaparv: जानें छठी मैया कौन हैं, छठ महापर्व पर क्यों करते हैं इनकी पूजा?

छठ को कहा जाता है महाव्रत
Chhath Mahaaparv, (आज समाज), नई दिल्ली: दीवाली के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को छठ महापर्व मनाते हैं। 4 दिनों के इस त्योहार से पहले घर की खूब साफ-सफाई की जाती है। क्योंकि इस पर्व में शुद्धता और पवित्रता को बहुत महत्व दिया गया है। 4 दिन तक चलने वाले छठ पर्व की विभिन्न रस्मों, पूजा-पाठ से लेकर प्रसाद बनाने तक में गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती है।

36 घंटे का लंबा व्रत रखना होता है इसलिए छठ व्रत को काफी कठिन माना जाता है। इसलिए छठ को महाव्रत कहा गया है। छठ व्रत में सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है, साथ ही छठी मैया की पूजा की जाती है।

कौन हैं छठी मइया?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए, उन्हें धन्यवाद करने के लिए छठ पर सूर्य देव और छठी मइया की पूजा की जाती है। छठ की पूजा पवित्र नदी या जलाशय के किनारे पानी में खड़े होकर करने का विधान है। छठी मइया संतान की रक्षा करने वाली देवी हैं। इसलिए बच्चे के जन्म के बाद छठवें दिन छठी देवी की ही पूजा की जाती है।

जिससे बच्?चे को सफलता, अच्छी सेहत और लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि जब सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया तो उनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना गया, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।

छठ व्रत कथा

छठ कथा के अनुसार, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं।

नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र जन्?मा। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं।

देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया।

राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि-विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।

छठ व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया

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