Khagan hi jaane Khagan ki bhasha – Delhi riots: खग ही जाने खग की भाषा –वाया दिल्ली दंगे

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  इतिहास विस्थापन के किस्सों से भरा पड़ा है | देश समाज व् कौम  सभी इस विभाजन विस्थापन के क्रूर के गवाह रहे हैं निकट भविष्य में यहूदियों के देश पलायन से लेकर विस्थापन का दर्द  भारत-पाकिस्तान, उत्तर और दक्षिण कोरिया और जर्मनी आयरलेंड तथा कुछ समय  तक वियतनाम को झेलना पड़ा  | विभाजन  पलायन या विस्थापन से केवल भू खंडों की सीमाए नहीं बदलती मानवता का इतिहास बदल जाता है | केवल मनुष्य ढोर डंगर नहीं मरते | एहसास रिश्ते दोस्ती रवायते व्यंजन तीज त्यौहार पहनावे न जाने कितनी मानवीय आस्थाएं इसकी चोट में आ जाती हैं |NRC क़ानून के बाद से आरम्भ तनाव ने दिल्ली को एक बार फिर जला डाला | इस अभागे शहर की किस्मत में इन्द्रप्रस्थ से आरम्भ होकर  नादिर शाह की कत्लोगारत आदि को झेलते हुए 1984 की तबाही भी झेलनी पड़ी थी | दोस्तों जब कभी शासकों के हित आड़े आये हैं तो आमजन को त्रासदी झेलनी पड़ी है |हमने भारत पाक विभाजन से भी कोई सबक नहीं सीखा |
भारत की धरती पर ब्रिटिश हूकूमत का यह अंतिम और बहुत ही शर्मनाक कार्य था। अंग्रेजों के लिए यह स्वाभाविक ही था कि भारत छोड़ने के बाद भी भारत से उन्हें अधिक से अधिक लाभ मिल सके इसलिए ऐसी योजनाएं बनाई और उसे लागू किया। विभाजन की इस योजना ने भारत को जितनी क्षति पहुंचाई उतनी दूसरी कम ही चीजों ने पहुंचाई होगी। अंत में उन्होंने इस समझौते पर भी दस्तखत कराएं कि हमारे जाने के बाद हमारे मनाए स्मारक और मूर्तियों को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाई जाएगी और इनका संवरक्षण किया जाएगा। भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए।
 विभाजन से पहले भारत की जनसंख्या 31.8 करोड़ ही थी। 1941 की जनगणना के मुताबिक तब हिंदुओँ की संख्या 29.4 करोड़, मुस्लिम 4.3 करोड़ और बाकी लोग दूसरे धर्मों के थे। मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के हित में अलग चुनावी क्षेत्र आदि  अधिकार मांगे जिसे कांग्रेस ने ठुकरा दिया। नतीजे में मुस्लिम लीग ने अलग राष्ट्र की मांग कर दी और उसे पाने में कामयाब हुए।
इस विभाजन के कारण लगभग 1.25  से 1.5 करोड़  लोग विस्थापित हुए ऐसा माना जाता है ।  इतिहासकार इसे दुनिया में सबसे बड़ा विस्थापन बताते हैं। मुसलमानों की बहुत बड़ी आबादी अपनी जन्मभूमि को छोड़ पाकिस्तान चली गयी। इसी तरह हिंदुओं ने भारत का रुख किया। लोगों के दल जब सीमा पार कर रहे थे तब ये कतारें कई कई किलोमीटर लंबी थीं।
विभाजन का एलान होने के बाद हुई हिंसा में कितने लोग मारे गये, इसे लेकर अलग अलग आंकड़े हैं। आमतौर पर इसकी संख्या 5 लाख बतायी जाती है। हालांकि ये संख्या सही सही नहीं बतायी जा सकती। माना जाता है कि दो लाख से 10 लाख के बीच लोगों की मौत हुई। इसके अलावा 75 हजार से 1 लाख महिलाओं का बलात्कार या हत्या के लिए अपहरण हुआ।
यहाँ यह भी समझना जरुरी है कि विभाजन विस्थापन की त्रासदी को किसी कौम ने सबसे अधिक झेला है तो वह सिख कौम रही है | यह भी नही भूलना चाहिये सिख कौम ने ही गुरु तेग बहादुर व गुरु गोविन्द सिंह के समय से विभाजन तक हिन्दू कौम की सुरक्षा भी की है |पंजाब उग्रवाद व उसके बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के व्यापक दंगो में अपने ही देश में जो नरसंहार इस कौम को झेलना पड़ा उसकी मिसाल केवल नाजियों द्वारा यहूदियों के संहार से की जा सकती है | यहूदी कौम ने जिस तरह विस्थापन की त्रासदी को समझा उसे इस बात से समझा जा सकता है की अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने जब 6 मुस्लिम देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर रोक लगाई तो 4 यहूदी बैरिस्टरों ने  अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ केस दर्ज क्र इस फैसले को निरस्त करवाया | आम आदमी इसे नहीं समझेगा कि इजराइल के साथ मुस्लिम देशो की कटुता के बाद ऐसा क्यों किया इन वकीलों ने | इनका तर्क था कि यह अमेरिकी संविधान की अवहेलना है जिसमे साफ़ लिखा है कि अमेरिका हर किसी प्रताड़ित को बिना रंग या धर्म  जाती देखे शरण देगा |
इसे अब आप शाहीन बाग़ के शान्ति पूर्ण विरोध के समय सिखों द्वारा धरने पर बैठी महिलाओं हेतु लंगर चलाने को तथा दिल्ली में भाजपा के कपिल मिश्र के आग उगलने वाले भाषणों से उतेजित भीड़ के कारण हुए दंगो में जल रही दिल्ली में मुस्लिमों की सहायता के देखें | जबकि  1947 में सिखों को ही पाकिस्तान में मुस्लिमो के हाथ बहुत कुछ झेलना  पड़ा था |
अब इस वक्त भारत के समाज में आ रहे परिवर्तन को मैं जिस तरह देख रहा हूँ वह मुझे आशंकित कर रहा है|
    बहु संख्यक हिन्दू जो सदा से सर्व धर्मे सम भाव में विशवास करते  आये हैं आज तीन भागों में बंट गए हैं |  एक मोदी समर्थक दूसरे मोदी विरोधी तीसरे जो इन दोनों से अधिक संख्या में वे हैं कन्फ्यूज्ड हिन्दू | दूसरी तरफ एक और ध्रुवीकरण भी बनता जा रहा है | मुस्लिम सिख व उत्तरपूर्व प्रदेशों के निवासी जो अधिकाँश इसाई समुदाय से हैं स्वयं को तथाकथित हिन्दुत्त्व वादी हिन्दुओं से अलग थलग पा रहें हैं साथ साथ इन्ही तथाकथित मात्र कुछ  हिंदुत्व वादी हिन्दुओं भाजपा नेताओं के बद्बोलेपन से आजिज हुए दलित समुदाय के लोग भी स्वयं को अलग थलग महसूस करने लगे हैं | बेशक दो लोक सभा चुनाव में प्राप्त जीत वह भी केवल गणित आधार सीट प्राप्ति पर मोदी समर्थक उछल रहे हैं लेकिन वे शायद यह नही देख पा रहे कि विधानसभाओं के चुनाव में भाजपा दिन ब दिन  नीचे आ रही है | बात अब यहाँ तक आ पहुंची है कि. आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में छपे लेख में दिल्ली चुनाव में भारतीय जनता पार्टी  की करारी शिकस्त के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सलाह दी है कि बीजेपी को दिल्ली में संगठन का पुनर्गठन करना चाहिए. इसके साथ-साथ उसने यह भी कहा कि नरेद्र मोदी और अमित शाह  विधानसभा स्तर के चुनावों में हमेशा जीत नहीं दिला सकते हैं | एक सौ पचास साल पुरानी कांग्रेस पार्टी  के बदहाली के कारण क्या हैं | श्रीमती इंदिरा  गांधी बेशक एक सफल सशक्त प्रधानमन्त्री थीं लेकिन उनके समय से ही पार्टी में सामान्य कार्यकर्ताओं की अनदेखी आरम्भ हो गई थीं  दस साल तक एक श्रेष्ठ अर्थ शास्त्री व् ईमान दार प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह व् राजनीति से दूर रही सोनिया गांधी के समय में तो जन नेताओं का अकाल पड़ गया था | कांग्रेस में कपिल सिब्बल हो या चिदम्बरम वे कभी जननेता न  रहे थे | जो  हाल 150 साल में कांग्रेस का हुआ वाही भाजपा का दस साल में होने जा रहा है | हर्षवर्धन जैसे नेता को नकार कर  किरणबेदी या मनोज तिवारी को थोपेंगे तो यही कुछ होगा  और यह केवल दिल्ली में नहीं सब जगह हो रहा है | केंद्र में भी मोदी शाह के अलावा कोई कद्दावर नेता नजर नहीं आता |
डॉ श्याम सखा श्याम
हरियाणा हिंदी  साहित्य अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष एवं चिकित्सक हैं।
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