Is this the time to live only for yourself? यह वक्त क्या सिर्फ अपने लिए जीने का है?

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हम टीम के साथ खबरों की प्राथमिकता पर चर्चा कर रहे थे। एक खबर थी कि कोरोना के इलाज में लगे डाक्टर को उसके मकान मालिक ने घर से निकल जाने को कहा क्योंकि वह लोग कोरोना फैलने के डर से भयभीत थे। मुंबई के सैफी अस्पताल के डाक्टर बहरीनवाला की कोरोना से जूझते हुए मृत्यु हो गई। एक अन्य समाचार आया कि लाकडाउन के कारण बेरोजगार हुए कुछ लोग पैदल और रिक्शों से अपने गांव लौट रहे हैं, पैदल जाते हुए आगरा के सिकंदरा में एक गरीब की मौत हो गई। एक मित्र ने बताया कि कुछ मजदूर लाकडाउन के कारण दो दिनों से भूखे फंसे हुए हैं, उनके साथ बच्चे भी हैं। यह खबर भी सामने आई कि कुछ व्यापारी मास्क, सेनेटाइजर और आवश्यक सामान कई गुना महंगे बेच रहे हैं। कुछ दवायें और डेटाल-सेवलान आदि मेडिकल स्टोर से गायब हो गये, उनकी कालाबाजारी हो रही हैं।अस्पतालों में भी जरूरी सुरक्षा संसाधन नहीं हैं। सफाईकर्मी बगैर सुरक्षा उपकणों के काम को मजबूर हैं। एक खबर यह भी थी कि लाकडाउन के कारण तमाम लोग अपने घरों में बोर हो रहे हैं, वो मनोरंजन के लिए किस्म-किस्म के तरीके अपना रहे हैं। कुछ लजीज खाना बना रहे हैं तो कुछ लोग लजीज व्यंजनों का आनंद उठा रहे हैं।देखने सुनने में यह खबरें सामान्य सी लगती हैं मगर इनके भीतर छिपी सच्चाई सामान्य नहीं है क्योंकि इन सभी में एक बात आम है, सिर्फ अपने लिए जीने की सोच।
दो घटनाओं का जिक्र करना चाहूंगा। कोरोना के खौफ से दुनिया जूझ रही है, देश लाकडाउन है। हमारे घर की सहायक का पति प्रकाश सब्जी की रेहड़ी लगाता है। सुबह उसके फोन पर पीजीआई के एक डाक्टर का काल आई कि आप हमारे घर सब्जी पहुंचा देंगे, उसने कहा जी। डाक्टर ने कहा बैंक खाते का नंबर बताइये,मैं रुपये ट्रांसफर कर देता हूं। प्रकाश ने कहा कि खाता तो है नहीं, आप नकद दे देना। डाक्टर ने कहा अभी नकद नहीं हैं, तो प्रकाश ने कहा कि हफ्ते, महीने में जब हों तब दे दीजिएगा और मैं सब्जी पहुंचाता रहूंगा।न प्रकाश पहले से डाक्टर को जानता था और न डाक्टर उसे। प्रकाश हमारे पास आया और बोला, भइया डाक्टर अपनी जान खतरे में डालकर लोगों को बचा रहे हैं, उनके घर सब्जी पहुंचानी है,भाभी वाली स्कूटी दे दीजिए। दूसरी घटना, हमारे फोटोग्राफर सुनील शर्मा का फोन आया कि बैंक स्क्वायर के फुटपाथ पर सोने वाले 30-35 रिक्शे वाले दो दिनों से भूखे हैं। चाय-खानाकुछ नहीं मिला है। गुरुद्वारे भी बंद करवा दिये गये हैं। हमनेअपने मित्ररेस्टोरेंट संचालक प्रवीण दुग्गल को फोन किया कि कुछ मदद करें। उन्होंने बताया कि सभी काम करने वाले नहीं आ रहे हैं। कुछ देर में प्रवीण का फोन आया कि वह अपने परिवार के साथ मिलकर 100-150 लोगों का खाना बनाने को तैयार हैं बस आप साथ दीजिए।उन्होंने खाना बनाया और न सिर्फ बैंक स्क्वायर में भूखों को खिलाया बल्कि हमारी मुहिम से जुड़कर तमाम बेबस लोगों को इस संकट की घड़ी में रोजाना खाना खिलाने की योजना बनाई।अब पूरा दुग्गल परिवार मिलकर करीब दो सौ लोगों का खाना और दो वक्त की चाय इन बेचारों को दे रहा है।
कोरोना से लड़ाई के से पूरा देश और विश्व जूझ रहा है। हमारे प्रधानमंत्री ने कोरोना से लड़ने के लिए पूरे देश से खुद को लक्ष्मण रेखा में बंद करने का आह्वान किया, लोगों ने खुद को बांध लिया। उन्होंने इस बीमारी से लड़ने वाले डाक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस, सफाईकर्मियों और मीडिया के लिए ताली और थाल बजाने का आग्रह किया, लोगों ने उसे भी जश्न की तरह मनाया। इसी बीच केंद्र सरकार के कनाट प्लेस स्थित लेडी हार्डिंग मेडिकल कालेजके डाक्टर देबब्रत महापात्रा ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख अस्पतालों में सेवा करने वाले स्टाफ की व्यथा बताई। उनके पास पर्याप्त सामान्य मास्क भी नहीं हैं, जबकि जरूरत एन95 मास्क की है। इससे लड़ने के लिए गाउन तक नहीं हैं, दो तीन गाउन से ही सभी डाक्टर कैसे काम करेंगे। सुरक्षात्मक उपकरणों की बेहद कमी है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब राष्ट्रीय राजधानी के केंद्रमें स्थित अस्पताल के ये हाल हैं, तो बाकी जगह क्या उम्मीद करें। प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में बीएचयू मेडिकल संस्थान में भी कमोबेश यही हालात हैं। डाक्टरों को बगैर मास्क के आपरेशन करना पड़ रहा है।बदतर हालात देख,बीएचयू के एक शोधार्थी जीतेंद्र ने अपनी स्टाइपेंड के आठ हजार रुपये मास्क के लिए दिये। कई डाक्टर कोरोना ग्रसित पाये गये। एक डाक्टर की पत्नी और बच्ची तक उनके सेवाभाव का शिकार हो गए।हमारे पास उनको देने के लिए न तो अच्छी स्वास्थ सेवा है और न संसाधन। जिनके पास संसाधन हैं, वो कुछ करना नहीं चाहते। सीएसआर के नाम पर करोड़ों रुपये का खेल करने वाली कंपनियों के खाते से ऐसे कठिन वक्त में भी धन नहीं निकल रहा।इसके उलट वो खुद सरकार के राहत पैकेज से अरबों रुपये हड़पने को तैयारबैठी हैं। खुद को बड़ा आदमी कहने वाले धनाड्यों की तिजोरी की चाबी ऐसे वक्त में गुम है, वह सिर्फ उनके ऐश ओ आराम और जश्न के लिए ही मिलती है। यही कारण है कि न तो वह बेबसों को खाना खिला सकते हैं और न आसरा देने को आगे आ सकते हैं। महिंद्रा एंड महिंद्रा और टाटा समूह से ऐसे लोगों को सीखना चाहिए।
हमारे प्रधानमंत्री ने 19 मार्च की रात जब 14 घंटे के जनता कर्फ्यू का फैसला किया तो सबने दिल से निभाया। उन्होंने तालियां और थालियां बजवाईं फिर अगले दिन से 21 दिनों का कर्फ्यू, सभी ने स्वीकारा। विपक्ष की नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित पूरे देश ने इसे कोरोना की लड़ाई के लिए जरूरी कदम माना। बेबस, बेरोजगार देशवासी कैसे जीवन यापन करेंगे और अर्थव्यवस्था कैसे संभलेगी इस पर राहुल ने सवाल किया। हालांकि राहुल ने डेढ़ महीने पहले ही कोरोना के भावी संकट को गंभीरता से लेने की मांग कई बार सरकार से की थी मगर तब सत्तारूढ़ दल और उसके मंत्रियों ने उनका मजाक बनाया था। उस वक्त देश में कोरोना से ग्रसित एक भी मरीज नहीं था। अगर सरकार ने उसी वक्त एहतियाती कदम उठा लिया होता तो शायद इतने बुरे हालात से न गुजरना पड़ता। बहराल, मोदी सरकार ने राहत पैकेज की भी घोषणा कर दी। उसकी भरपाई भी संवेदनशील आमलोग पीएम-सीएम रिलीफ फंड में धन देकर करने में लगे हैं।बेमौसमी तबाही और 21 दिनों के लाकडाउन में किसान की रीढ़ टूट गई। रिक्शा चालक, मजदूर, रेहड़ी-पटरी और खोमचे वालों का एक बड़ा वर्ग बुरे हालात में फंस गया है। उसके लिए कोरोना से ग्रसित होकर मरने से बड़ा संकट कोरोना कर्फ्यू है। वो अपने बच्चों को बचायें या खुद को।सरकारी पैकेज में किसानों को जो दो हजार रुपये अप्रैल में देने की बात है, असल वो तो पहले से ही पांचवी किस्त के रूप में मिलनी तय थी। किसान क्रेडिट कार्ड का लोन भी माफ नहीं किया गया। दूसरी तरफ जिन मजदूरों बेबसों को मदद की बात की गई है, उसमें पांच सौ रुपये महीने और आधा पेट खाना भी नहीं मिल सकता है। मेडिकल सुविधाओं के लिए सिर्फ 15 हजार करोड़ की व्यवस्था है। बहराल, कदम सही दिशा में उठाया गया है मगर नाकाफी है।
सरकार ने पैकेज और सुधारों के लिए धन की व्यवस्था की घोषणा कर दी मगर उसको पारदर्शी तरीके से खर्च करने और तत्काल प्रभावित लोगों को लाभ देने की कोई कारगर योजना नहीं दिखी। नतीजतन गरीब-बेबसों और मरीजों के हक का बड़ा हिस्सा अफसरशाही के गाल में समाने की आशंका है। वहीं कारपोरेट और धनाड्य वर्ग के अधिकांश लोग ऐसे वक्त में भी मुनाफाखोरी की योजना गढ़ रहे हैं जबकि देश का बड़ा वर्ग अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है। वह लोग इस महामारी के संकट से भी यह नहीं सीख रहे कि धन संपत्ति उनके साथ नहीं जाएगी। कभी भी कोई भी इसका शिकार हो सकता है। उदाहरण ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और अमेरिका जैसे ताकतवर देश का हाल है। ऐसे में सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी कुछ अच्छा करने का सोचिये और कीजिये।

जयहिंद!

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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)

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