Indian generosity flourished in disaster: आपदा में निखरी भारतीय उदारता

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भारत का वैक्सीन मैत्री अभियान हाल के समय की सबसे महत्वपूर्ण पहल में से एक है। अपने पड़ोसी देशों और अन्य जरूरतमंद देशों को वैक्सीन देकर भारत विदेश नीति के उद्देश्यों को पूरा कर रहा है। यह दुनिया में विज्ञान और तकनीक का लाभ लेने की बिल्कुल सही कोशिश है।
भारत से टीका मिलने पर ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो व कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जैसे नेताओं द्वारा भारत की सराहना ने बहुत ध्यान खींचा है। स्वास्थ्य आपातकाल के इस कठिन दौर में नई दिल्ली के उदार प्रयासों को डोमिनिकन गणराज्य और बारबाडोस जैसे जरूरतमंद देशों से भी मुखर सराहना हासिल हुई है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की वैश्विक प्राथमिकताएं प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा 21 जनवरी, 1959 को देश के विज्ञान कांग्रेस में दिए गए भाषण में साफ तौर पर जाहिर हो गई थीं। नेहरू विज्ञान की रचनात्मक और विनाशकारी शक्तियों, दोनों के बारे में अच्छी तरह से जानते थे। यह समझ लिया गया था कि भारत की तरक्की के लिए विज्ञान का विकास बहुत जरूरी है। बीसवीं सदी में परमाणु और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे क्षेत्रों में भारत को रोकने की अमेरिकी महत्वाकांक्षाओं के बावजूद इन क्षेत्रों में भारत का विकास मिला-जुला रहा।
अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद भारत विज्ञान और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एशिया, अफ्रीका व सुदूर दक्षिण विश्व के अपने भागीदार देशों की मदद करने में कामयाब रहा है। पिछली सदी के अंतिम दशक के दौरान देश का राष्ट्रीय आत्मविश्वास भी बढ़ा, क्योंकि आर्थिक गतिशीलता ने भारत की ज्यादा सक्रिय भागीदारी का नेतृत्व किया। नवंबर 1999 में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय की स्थापना हुई।
21वीं सदी के शुरूआती वर्षों में विदेश पर अपनी निर्भरता कम करने के साथ ही भारत ने दूसरे देशों के विकास में मददगार बनकर विश्व व्यवस्था में उभरने की कोशिश की। 21वीं सदी की विश्व व्यवस्था देश के विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के ज्यादा अनुकूल थी। भारत-अमेरिका रिश्तों में हुए सुधार से परमाणु व अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की तरक्की सबसे खास रही है। आज ब्रिटेन, जापान, इजरायल, जर्मनी, यूरोपीय संघ, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, कनाडा, दक्षिण कोरिया और आॅस्ट्रेलिया जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत जुड़ा है। फ्रांस और रूस के साथ भी पारंपरिक साझेदारी मजबूत हुई है।
भारत की महत्वाकांक्षाएं उसकी नीतियों से भी स्पष्ट होती हैं। विज्ञान व प्रौद्योगिकी नीति 2003 और विज्ञान, प्रौद्योगिकी व नवाचार नीति 2013 साफ तौर पर राष्ट्रीय हित के साथ ही अंतरराष्ट्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी सहयोग से संबंधित हैं। हाल ही में, हमने देखा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विज्ञान और प्रौद्योगिकी को देश के राजनयिक प्रयासों में सबसे आगे रखकर चल रहे हैं।
उन्होंने पहले ही पहचान लिया कि भारत टीका निर्माण और वितरण में विशेष भूमिका निभा सकता है। भारत की विश्वव्यापी छवि फामेर्सी आॅफ द वर्ल्ड अर्थात दुनिया का दवाखाना के रूप में मजबूत हुई है। भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक है। वैश्विक दवा उत्पादन का 20 प्रतिशत यहीं होता है और दुनिया में टीके की 62 प्रतिशत मांग की पूर्ति यहीं से होती है। भारत ने वैश्विक स्वास्थ्य और अंतरराष्ट्रीय संबंधों, दोनों को बेहतर बनाने के लिए अपने ढंग से पहल की है। भारत ने लगातार प्रयास किए हैं कि कोविड वैक्सीन को बौद्धिक संपदा अधिकार से रियायत दी जाए और संयुक्त राष्ट्र के संकल्प के तहत विश्व के कोने-कोने तक टीके की पहुंच सुनिश्चित हो। यहां पर दुनिया का सबसे बड़ा कोविड-19 टीकाकरण अभियान पहले से ही चल रहा है। देश की अनेक कंपनियां टीके विकसित कर रही हैं। यदि सरकार सुनिश्चित कर पाती है कि उसकी घरेलू जरूरतों को पर्याप्त रूप से पूरा किया जा रहा है, तो दुनिया को टीका देने में कोई हर्ज नहीं।
किसी मामले में पहली बार ऐसा हो रहा है, जब भारतीय नीति का ध्यान दक्षिण एशिया और हिंद महासागर के देशों पर है। जाहिर है, इस क्षेत्र का अहम सैन्य महत्व है। इसके अलावा महामारी के शुरूआती दिनों में भारत ने जिस तरह दवाओं का निर्यात किया, उससे भी देश की विश्वसनीयता में इजाफा हुआ और अब टीके के लिए अनेक देश भारत से उम्मीद लगाए हुए हैं। कई देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत हुए हैं। भारत को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन, पेरासिटामोल और अन्य दवाओं की आपूर्ति के लिए 100 से भी अधिक देशों से अनुरोध प्राप्त हुए।
ब्राजील, अमेरिका और इजरायल जैसे देशों को भी दवाएं आपूर्ति की गईं। मई 2020 में ही भारत लगभग 90 देशों के लिए दवाओं, परीक्षण किट और अन्य चिकित्सा उपकरणों पर 160 लाख डॉलर खर्च कर रहा था। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में अपने श्रीलंका दौरे के दौरान यह कहा है कि भारत अंतरराष्ट्रीय सहयोग को अपने कर्तव्य के रूप में देखता है। दूसरी ओर, चीन ने इसमें कोई रहस्य नहीं छोड़ा है कि वह टीके का वितरण अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए कर रहा है। ऐसे में, भारत को तुलनात्मक लाभ है और वह दुनिया के व्यापक हित में हरसंभव प्रयास कर रहा है। ध्यान रखना है, जब बाजार में अनेक उत्पाद होंगे, तब प्रतिस्पर्द्धा भी होगी। परीक्षण के आंकड़ों को छिपाने और पारदर्शिता की कमी के चलते चीनी टीकों की गुणवत्ता पर सीधे-सीधे सवाल उठे हैं। ब्राजील तो शुरूआत में चीन से टीके लेने की योजना बना रहा था, लेकिन उसे टीके की गुणवत्ता को लेकर चिंता हुई, और तब उसने भारतीय टीका चुनने का फैसला लिया। वर्तमान गंभीर स्वास्थ्य संकट के समय में भारत का यह कदम न केवल उसे वैश्विक नेतृत्व की भूमिका का अनूठा अवसर देता है, बल्कि दुनिया में बीजिंग की आक्रामक मुर्द्रा का प्रभावशाली जवाब भी देता है।
भू-राजनीतिक विचारों को एक तरफ रखते हुए यह समझना अनिवार्य है कि वैक्सीन कूटनीति रणनीतिक रूप से भारत के एक जिम्मेदार वैश्विक नेता के रूप उभरने का मौका है। फिर भी, अभी चीन को सबसे बड़ा फायदा यह है कि वह महामारी को नियंत्रित करने में सक्षम है और उसकी अर्थव्यवस्था भी बहुत हद तक पटरी पर है।
 दूसरी ओर, भारतीय अर्थव्यवस्था को संभलने में अभी वक्त लगेगा और यहां घरेलू स्वास्थ्य मुद्दे अभी भी हावी हैं। मतलब, कूटनीतिक बढ़त के साथ आर्थिक सुधार भी जरूरी है।

हर्ष वी पंत
(लेखक लंदन में किंग्स कॉलेज के प्रोफेसर हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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