How was FY 2021 amid Corona pandemic? कोरोना महामारी के बीच कैसा रहा वित्त वर्ष 2021?

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साल था 1979 का,भारत का  अधिकांश हिस्सा भयंकर सूखे की चपेट में था। दूसरी तरफ ईरानी क्रांति के कारण खाड़ी देशों में तनाव था। जिसके कारणवशआपूर्ति में व्यवधान ने कच्चे तेल की कीमतें लगभग दोगुनी कर दीं। उस वक्त भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में आजादी के बाद की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई थी। वित्त वर्ष 1980 में भारत के जीडीपी में 5.2 प्रतिशत की तीव्र गिरावट देखी गई थी।आज उस बात को चार दशक से भी अधिक का समय बीत चुका है और इन चार दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने कभी नकारात्मक जीडीपी वृद्धि दर नहीं देखी थी। लेकिन राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने जो 31 मई को वित्त वर्ष 2021 की अंतिम तिमाही के आंकड़े जारी किए उनसे हमे यह पता चलता है कि भारत के जीडीपी में पिछले एक साल में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह आजाद भारत की सबसे बड़ी गिरावट है। हालांकि यह आंकड़े अनुमानित आठ प्रतिशत की गिरावट से कुछ बेहतर हैं, लेकिन यह उस अर्थव्यवस्था के लिए शायद ही किसी राहत की बात होगी जिसके मौजूदा वित्त वर्ष के अनुमानित वृद्धि के आंकड़े कोविड की दूसरी लहर के करणवश घटाए जा रहे हैं। एनएसओ के मुताबिक वित्त वर्ष 2021 की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) में भारत का जीडीपी 1.6 प्रतिशत बढ़ा। यह अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भी 0.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा था।

वित्त वर्ष 2021 में स्थिर कीमतों (2011-12) पर भारत का जीडीपी अब 135.13 लाख करोड़ रह गया है, जो पिछले वित्त वर्ष में 145.69 लाख करोड़ रुपये था। गौर करने वाली बात यह है कि भारत जा जीडीपी इस वक्त 2018-19 वाले स्तर से भी नीचे है। दूसरी तरफ सकल मूल्य वर्धित (जीवीए), जो आपूर्ति में वृद्धि को दर्शाता है, उसने 2020-21 में 6.2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है। वहीं नॉमिनल जीडीपी (रियल जीडीपी माइनस मुद्रास्फीति) ने भी 3.0 प्रतिशत का संकुचन देखा है। हालांकि यह संकुचन दूसरे एडवांस अनुमान के अनुमानित 3.8 प्रतिशत के संकुचन से बेहतर है। लेकिन पिछले वर्ष के 7.8 प्रतिशत की वृद्धि से बेहद कम है।

विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रों के जीवीए में वृद्धि देखी गई है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर जनवरी-मार्च में 6.9 प्रतिशत बढ़ा, जो पिछली तिमाही में 1.7 प्रतिशत बढ़ा था और पिछले साल की अंतिम तिमाही में 4.2 प्रतिशत घटा था। वहीं निर्माण क्षेत्र में 14.5 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई जो पिछली तिमाही में 6.5 प्रतिशत और पिछले वर्ष की अंतिम तिमाही के 0.7 प्रतिशत की वृद्धि से बेहतर है। अन्य क्षेत्रों की बात करें तो जनवरी-मार्च में कृषि वृद्धि धीमी होकर 3.1 प्रतिशत रह गई, जो अक्टूबर-दिसंबर में 4.5 प्रतिशत और पिछले वर्ष की अंतिम तिमाही में 6.8 प्रतिशत थी। खनन और व्यापार, होटल एवं परिवहन क्षेत्रों में क्रमशः 5.7 प्रतिशत और 2.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।

अगर हम राजकोषीय घाटे पर नजर डालें तो पाएंगे पिछले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 9.3 प्रतिशत (18,21,461 करोड़ रुपये) जितना ज्यादा हो गया। सरकार को 2020-21 के दौरान 16,89,720 करोड़ रुपये की कुल प्राप्तियां हुईं। इस राशि में 14,24,035 करोड़ रुपये का कर राजस्व, 2,08,059 करोड़ रुपये गैर-कर राजस्व और 57,626 करोड़ रुपये गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियां (ऋण की वसूली और विनिवेश) शामिल हैं। 2020-21 के दौरान केंद्र सरकार द्वारा करों के हिस्से के रूप में कुल 5,94,997 करोड़ रुपये राज्य सरकारों को हस्तांतरित किए गए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 55,680 करोड़ रुपये कम है। केंद्र सरकार द्वारा किया गया कुल व्यय 35,11,181 करोड़ रुपये था। इस कुल राशि में से 30,86,360 करोड़ रुपये का खर्च राजस्व खाते पर हुआ और 4,24,821 करोड़ रुपये पूंजी खाते पर।

खर्च की बात करने पर हम पाएंगे कि कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2021 में घरेलू खर्च में रिकॉर्ड अंतर से कमी आने के बावजूद, सरकारी खर्च में वृद्धि हुई। जीडीपी में सबसे महत्वपूर्ण घटक, निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) वित्त वर्ष 2021 में 9.1 प्रतिशत गिरकर 75.6 लाख करोड़ रुपये रह गया जो वित्त वर्ष 2020 में 83.2 लाख करोड़ रूपए था। यह गिरावट भारत के इतिहास में सबसे बड़ी थी। पीएफसीई का भारत के जीडीपी में हिस्सा 56 प्रतिशत का रह गया जो पिछले वर्ष 57 प्रतिशत से ऊपर था। दूसरी ओर, सरकारी अंतिम उपभोग व्यय (जीएफसीई) 2.91 प्रतिशत बढ़कर वित्त वर्ष 2021 में 15.86 लाख करोड़ रुपये हो गया जो एक साल पहले 15.41 लाख करोड़ रुपये था। इसका मतलब सरकारी व्यय में वृद्धि तो हुई पर उतनी नहीं जितनी जरूरी थी। सकल अचल पूंजी निर्माण जनवरी-मार्च में 10.9 प्रतिशत बढ़ा है। सरकार का अंतिम उपभोग व्यय जनवरी-मार्च में 28.3 प्रतिशत बढ़ा। जबकि निजी उपभोग व्यय में 2.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

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