High Court: राम मंदिर की तर्ज पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में तय होगा मथुरा के कृष्णजन्मभूमि-ईदगाह विवाद? फैसला रिजर्व* 

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हाई कोर्ट में तय होगा मथुरा के कृष्णजन्मभूमि-ईदगाह विवाद
हाई कोर्ट में तय होगा मथुरा के कृष्णजन्मभूमि-ईदगाह विवाद
Aaj Samaj, (आज समाज),High Court,नई दिल्ली:
*इलाहाबाद हाईकोर्टः कार्यकारी निर्देश नियमों के पूरक हो सकते हैं, लेकिन वैधानिक नियमों की जगह नहीं ले सकते* 
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ उत्तर प्रदेश सरकार के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में क्षेत्र राशनिंग अधिकारियों की दिनांक 31.3.2016 की वरिष्ठता सूची को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि कार्यकारी निर्देश नियमों के पूरक हो सकते हैं, लेकिन वैधानिक नियमों की जगह नहीं ले सकते।
इस मामले में, याचिकाकर्ताओं की सेवाएं उत्तर प्रदेश खाद्य और नागरिक आपूर्ति (आपूर्ति) सेवा नियम, 1981 द्वारा शासित हैं। सेवा नियम, 1981 के नियम 5 में प्रावधान है कि क्षेत्र राशनिंग अधिकारी के पदों को दो द्वारा भरा जाना था। भर्ती के स्रोत अर्थात 50% वरिष्ठ आपूर्ति निरीक्षकों में से पदोन्नति द्वारा और 50% सीधी भर्ती के माध्यम से होना चाहिए।
सेवा नियमावली, 1981 में प्रथम संशोधन द्वारा क्षेत्र राशनिंग अधिकारी के पद पर सीधी भर्ती उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षा के माध्यम से की जानी थी।
एरिया राशनिंग ऑफिसर और सीनियर सप्लाई इंस्पेक्टर के पदों पर भर्ती सेवा नियमों के दो सेटों यानी सर्विस रूल्स, 1980 और सर्विस रूल्स, 1981 द्वारा शासित थी। एरिया राशनिंग ऑफिसर का पद आयोग के दायरे में है, जबकि पद वरिष्ठ आपूर्ति निरीक्षक का पद तृतीय श्रेणी का पद है।
आयोग द्वारा एरिया राशनिंग ऑफिसर के 12 पदों के लिए जारी विज्ञापन, जिसके लिए राज्य सरकार द्वारा दिनांक 10.3.2010 को मांग पत्र भेजा गया था, के अनुसरण में याचिकाकर्ताओं का चयन आयोग द्वारा एरिया राशनिंग अधिकारी के पद पर किया गया। चयन के बाद याचिकाकर्ताओं ने मार्च 2013 में एरिया राशनिंग ऑफिसर के पद पर ज्वाइन किया।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने पत्र द्वारा राज्य सरकार को सूचित किया है कि क्षेत्र राशनिंग अधिकारी के रिक्त पदों पर पदोन्नति, जिसके लिए अधियाचना भेजी गई थी, में शासनादेश के अनुपालन में किया जाना उचित नहीं होगा। क्यों कि सेवा नियमों में अपेक्षित संशोधन का अभाव है।
इसके बाद राज्य सरकार ने शासनादेश में लिये गये निर्णय को क्रियान्वित करने हेतु प्रारूप नियम अर्थात् उत्तर प्रदेश खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति (आपूर्ति) (चतुर्थ संशोधन) नियमावली, 2012 तैयार किया।
चतुर्थ संशोधन नियमावली के उक्त प्रारूप नियमों को राज्य सरकार द्वारा अनुमोदन के लिए आयोग को भेजा गया था और आयोग ने पत्र द्वारा पूर्वोक्त प्रारूप चतुर्थ संशोधन नियमावली तथा चतुर्थ संशोधन नियमावली, 2013 को अपना अनुमोदन दिनांक 6.9.2013 को अधिसूचित किया था।
पीठ के समक्ष विचार के लिए मुद्दा था कि क्या दिनांक 30.06.2011 के कार्यकारी निर्देशों द्वारा वैधानिक नियम अर्थात सेवा नियमावली, 1981 के नियम 5 में संशोधन के बिना क्षेत्र राशनिंग अधिकारी के पद पर भर्ती के स्रोतों को बदला जा सकता है?
पीठ ने कहा कि वैधानिक नियमों को कार्यकारी निर्देशों द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है। कार्यकारी निर्देश नियमों के पूरक हो सकते हैं, लेकिन वैधानिक नियमों की जगह नहीं ले सकते। सरकारी आदेश दिनांक 30.6.2011 एक नीतिगत निर्णय के अलावा और कुछ नहीं है, जो स्वयं निर्धारित करता है कि नियमों में आवश्यक संशोधन तत्काल किया जाए।
भीख मांगने वाले बच्चों का पुनर्वास न करने पर हिमाचल हाईकोर्ट सख्त, पूछा सरकार ने क्या-क्या कदम उठाए* 
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में भीख मांगने वाले बच्चों का पुनर्वास न करने पर संज्ञान लिया है। अदालत ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग सहित राज्य सरकार से इनके पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी तलब की है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई तीन हफ्ते के बाद निर्धारित की है। भीख मांगने वाले बच्चों का पुनर्वास के मामले पर अदालत इस बात पर नाराजगी जताई कि संवेदनशील मामले में केंद्र और राज्य सरकार ने चार माह बीत जाने के बाद भी जवाब दायर नहीं किया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने दोनों सरकारों से भिखारियों और सड़कों पर दयनीय स्थिति में जीने वाले बच्चों से जुड़े 10 बिंदुओं पर जानकारी तलब की है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में खोले गए आश्रयों की संख्या, पहचान के बाद स्कूलों में भर्ती करवाए गए बच्चों की संख्या बतानी होगी। इसके अलावा भीख मांगने को मजबूर बच्चों और उनके परिवार वालों को दी गई काउंसलिंग की संख्या, ऐसे बच्चों की संख्या जिनकी चिकित्सा जांच की गई है, ऐसे बच्चों की संख्या जिन्हें भीख मांगने अथवा बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर किया जा रहा हो, संस्थागत देखभाल में रखे गए बच्चों की संख्या और उन बच्चों की संख्या जिन्हें उनके माता-पिता अथवा अभिभावकों को सौंपा जा चुका है, इन सभी बिंदुओं पर सरकार को जानकारी देने के आदेश दिए गए हैं।
अदालत ने ऐसे बच्चों की संख्या भी बताने के आदेश दिए हैं जो पहचान हो जाने के बाद प्रदेश से चले गए हैं अथवा उनके वास्तविक राज्यों में भेजा जा चुका है।
राम मंदिर की तर्ज पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में तय होगा मथुरा के कृष्णजन्मभूमि-ईदगाह विवाद? फैसला रिजर्व* 
मथुरा के श्री कृष्ण जन्मभूमि बनाम ईदगाह मामला भी अयोध्या के राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद की तरह गरम होने लगा है। अभी हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस विवाद को नए सिरे से सुनने का आदेश मथुरा की जिला अदालत को दिया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश पर एक समुदाय में प्रतिक्रिया थी लेकिन बनारस के श्रंगार गौरी मंदिर और आदिदेश्वर शिवलिंग के मुद्दे को विश्वपटल पर लाने वाले वकील विष्णु शंकर जैन कहा है कि इस मुद्दे की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही होनी चाहिए।
इस मामले को लेकर रंजना अग्रिहोत्री सहित पांच याचिकाकर्ताओं ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक नई याचिका डाली थी। जिसमें राम मंदिर मुद्दे की तर्ज पर सुनवाई करने की मांग की थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से हरिशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने दलील दी कि चूंकि राष्ट्रीय महत्व का ये मामला बेहद संवेदनशील और दो समुदायों से जुड़ा है। लिहाजा हाईकोर्ट ही सीधे ह इस मामले की सुनवाई करे। इस मामले में आठ दिन तक सुनवाई होने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा (प्रथम) की एकल पीठ ने इस ट्रांसफर याचिका पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया।
हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है लेकिन लोगों में सुगबुगाहट है कि मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में ही होनी चाहिए।
 राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द किए जाने के बहाने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम को चुनौती, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकारा, पिटीशन खारिज* 
वायनाड से पूर्व सांसद राहुल गांधी की संसद की सदस्यता रद्द किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए पूछा आप कौन हैं जो याचिका दायर कर रहे हैं। आप राहुल गांधी की सदस्यता रद्द किए जाने से कैसे प्रभावित हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आप याचिका वापस लेते हैं या हम खारिज करें। अदालत का यह रुख देखकर याचिकाकर्ता के वकील ने तत्काल याचिका वापस लेली।
दरअसल,  केरल निवासी आभा मुरलीधरन ने राहुल गांधी के मामले का हवाला देते हुए एक  याचिका दाखिल की थी। आभा मुरलीधरन ने राहुल गांधी की सदस्यता भंग किए जाने के बहाने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) की संवैधानिकता को चुनौती दे डाली। इस पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा, आप कौन हैं? क्या आपकी सदस्यता रद्द हुई है?
यहां यह बताना आवश्यक है कि कोलार में  राहुल गांधी ने एक जनसभा में कुछ नामों का उदाहरण देते हुए कहा था कि सभी चोरों का नाम मोदी ही क्यों होता है। राहुल गांधी के इस बयान को पूरे मोदी समाज की मानहानि बताते हुए  भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था।
इस मुकदमे की सुनवाई करते हुए  गुजरात के सूरत की एक अदालत ने 23 मार्च को आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत राहुल गांधी को दोषी ठहराते हुए दो साल की जेल की सजा सुनाई थी। जिससे उनकी संसद सदस्यता चली गई। राहुल गाँधी ने सूरत के जिला और सत्र न्यायधीश के यहां से भी कोई राहत न मिलने पर गुजरात हाई कोर्ट में अपील की थी। गुजरात हाईकोर्ट ने भी राहुल गांधी को तत्काल कोई राहत न देते हुए फैसला सुरक्षित रख दिया है।
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