Hey ram how many forms of you: हे राम तुम्हारे कितने रूप

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रामायण अकेला ऐसा ग्रंथ है जो भारत से दूसरे देशों में गया और इतना लोकप्रिय हुआ कि अलग-अलग देशों ने अपनी अलग-अलग रामायण लिखीं। इनमें सबसे प्रमुख है इंडोनेशिया की रामकथा। इंडोनेशिया की रामायण की मानें तो राम की सेना सात डिवीजनों में बटी थी। इन डिवीजनों के प्रमुख स्वयं श्रीराम, लक्ष्मण, सुग्रीव, अंगद, हनुमान, नील तथा कपीश्वर थे। जैन विद्वान भी राक्षसों और वानरों को मानव ही मानते थे। विज्ञान और हवाई उड़ानों के तंत्र के उत्तम ज्ञाता होने के कारण जैन उन्हें विद्याधर कहा करते थे। आकाश में उड़ान भरने के कारण वे खेचर थे। खे यानी आकाश और चर यानी विचरण करने वाला अर्थात जो आकाश में विचरण करता हो। वानर सेना का ध्वज कपि चिन्ह से अंकित था। इसलिए वे वानर नाम से पुकारे जाते थे। हम कह सकते हैं कि यह एक किस्म की टाटम जाति थी जिसका ईष्ट वानर था। राम का ध्वज वीणांकित था क्योंकि वह संगीत का शौकीन था। इसी तरह समुद्री विद्वान का ज्ञाता नील नाम का एक वानर था जिसने लंका और धनुषकोटि द्वीप के बीच पुल बनाया था और जिसके अवशेष आज भी मिलते हैं। बड़े और ऊँचे पेड़ों के तने और बांस व ताड़ के पेड़ों के रस्से से उस पुल को हैंगिंग पुल की शक्ल दी गई थी। यह पुल इतना मजबूत था कि सुग्रीव वानर की पूरी सेना मय रथों व हथियारों के इस पुल से गुजर कर लंका पहुंच गई थी। इस इंडोनेशियाई रामायण के अनुसार जामवंत चिकित्सा विभाग के प्रमुख थे और सुषेण वैद्य उनका सहायक था।
इंडोनेशिया की रामायण पर यकीन करें तो यह बताती है कि राक्षस लोग इतने विज्ञान के बड़े आविष्कारक थे और ये दूरभाष के ज्ञाता थे इसीलिए इन्हें जब पकड़ा जाता था तो इनकी पहली सजा के तौर पर इनके कान काटे जाते थे ताकि ये केंद्र से संपर्क में न रह सकें। शूर्पणखा पर पहला यह प्रयोग हुआ था। इस यंत्र का शोधकर्ता कुंभकर्ण था। रावण की सेना के दस डिवीजन थे। लंका की सुरक्षा हेतु हवाई यंत्रों की देखरेख वह स्वयं करता था। उसकी हवाई सेना वानरों की हवाई सेना की तुलना में ज्यादा मजबूत और सिद्घ थी। इसलिए लंका पर हवाई हमला करना या थल मार्ग से हमला करना आसान नहीं था। यही कारण है कि राम ने लंका पर हमला करने के लिए छापामार युद्घ की तकनीक अपनाई। यहीं रावण की सेना चूक गई क्योंकि राक्षस इस छापामार व्यूह रचना से अनभिज्ञ थे। रावण की परंपरागत सेना राम की गुरिल्ला नीति से घबरा गई। राम की सेना के वानर जाते और रावण की सेना में पलीता लगाकर चले आते। इससे रावण की सेना को बहुत नुकसान हुआ। यूं राक्षस राज रावण की सेना इतनी बहादुर थी कि राम के लिए यह आसान नहीं था कि वे रावण की सेना को परास्त कर सकें। इसीलिए उन्होंने रावण को पराजित करने के लिए छल, छद्म, भय और प्रीति का संबल लिया। रावण के भाई विभीषण को अपनी तरफ मिला कर राम ने वह दांव फेका जो रावण ने कभी सोचा तक नहीं था। राम अगर कूटनीति और कपट नीति का सहारा नहीं लेते तो रावण को हराना असंभव था। लेकिन रावण ने अपने अनाचार और आततायी होने के कारण अपने ही घर में अपने भाई तक को उसने अपना शत्रु बना लिया था। यही कारण था कि भाई विभीषण रावण से मुक्ति पाने के लिए राम की मदद को राजी हो गया। जाहिर है लंका में विभीषण अकेले नहीं रहे होंगे बल्कि असंख्य विभीषणों की मदद राम को रावण के विरुद्घ मिली होगी।
राम कालीन युद्घ कला पर अगर हम पौराणिक ग्रंथों का अवलोकन करें तो कई बातें पता चलती हैं। मसलन उस समय ऋषि-मुनियों के जो आश्रम थे उनमें निरंतर शोध होता रहता था। ये शोधकेंद्र युद्घ कौशल को उन्नत करने हेतु खोले गए थे। रामकथा में एक उद्घरण है कि राम की सेना ने लंका को चारों तरफ से घेरा हुआ है पर सूर्य व्यूह के चलते लंका की सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद थी और राम की सेना लाख कोशिश करने के बाद भी लंका में प्रवेश नहीं कर पा रही थी। तब अगस्त्य मुनि ने आकर राम को स्वयं आदित्य द्वारा रचा गया हृदय स्रोत सिखाया था। प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में जो मंत्र-तंत्र का जिक्र मिलता है वह दरअसल युत्र कला ही है। अब सोचिए अगर सूर्य व्यूह को भेदने की कला स्वयं भगवान सूर्य द्वारा रचित हृदय स्रोत से राम को न पता चलती तो रावण को मार कर भी उनकी सेना लंका में प्रवेश नहीं कर पाती। इसके पहले रावण को मारना भी आसान नहीं था। लंका नरेश रावण को तमाम सिद्घियां प्राप्त थीं इसी के तहत अगर उनके सारे शीश काट दिए जाते फिर भी उनका प्राणांत मुश्किल था। तब विभीषण ने ही राम को वह मंत्र बताया था कि प्रभु रावण की नाभि पर वार करें क्योंकि उसे अमरत्व की विद्या आती है। ये सब बातें आज कालातीत और अविश्वसनीय लगती हैं लेकिन पुराण काल में कई ऐसी बातें थीं जिनका ज्ञान हम कालांतर में विस्मृत कर गए। अब इसमें कितना सच है यह तो साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता लेकिन लोक में और पुस्तकों में जो वर्णन और गाथाएं हैं उनमें ऐसा वर्णन है। यहां तक कि भारत के बाहर की रामायणों में भी।
दक्षिण पूर्व के सभी देशों में रामकथा के अनगिनत रूप मिलते हैं। इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा और बाली द्वीप में तो रामायण लोकप्रिय थी ही मलयेशिया और हिंदचीन तथा थाईलैंड में भी रामकथा के आख्यान मौजूद हैं। रामकथा ने सबको लुभाया इसीलिए चाहे वह तिब्बत हो या चीन रामकथा अपने मूल रूप को लेकर पहुंची। पूर्वी तुर्किस्तान में भी राम पहुंचे। राम सीता और लक्ष्मण सभी जगह हैं बस उनके अन्य रिश्ते भिन्न हैं। मसलन तिब्बती रामायण में सीता को रावण सुता माना गया है। यही हाल खोमानी रामायण का है जो तुर्क रामायण कहलाती है। पर राम हैं एक राजा जिसने भारत को एक नई दिशा दी थी। इसीलिए बाबा तुलसी कह गए हैं कि राम तमाम मौजूद हैं भले उनके रूप अलग-अलग हों। यह तो बस उनकी आराधना करने वाले लोगों पर निर्भर करता है कि वे राम के किस रूप को पसंद करते हैं।

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