गीता का उपदेश पूर्ण व्यवहार है

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geeta manishi gyananand ji
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गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज
कहीं इधर-उधर भटकने या कुछ सोचने की आवश्यकता नहीं है; अपने मन को दुविधा में न डालकर इस अचूक औषधि का सेवन कीजिए। निश्चय ही यह आपको त्रितापों से मुक्ति कर देगी। कृष्णम् वन्दे जगद्गुरुम् कहकर उनके समक्ष अपने को नतमस्तक करते हुए उनसे शक्ति माँगिए- गीतानुसार जीवन – यापन करने की।
इसमें तनिक भी संदेह की गुंजाइश नहीं है कि साधकों को साधन पथ में उत्तरोत्तर अग्रसर होने और निर्विघ्न रूप से अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, वह संक्षिप्त परन्तु अत्यन्त प्रभावी ढंग से गीता में वर्णित है। गीतोक्त तीन योग (कर्म, भक्ति और ज्ञान) गीता की अपनी अद्वितीय विशेषता है। प्रत्येक योग कल्याण की पूरी सामर्थ्य रखता है। अपना स्वभाव देखिए और तदनुसार जो भी योग आपको रुचिकर लगे, श्रद्धापूर्वक उसके क्रियान्वयन में अविलम्ब अपने को नियुक्त कर दीजिए। इसके अत्यंत उपयोगी, हितकारी एवं प्रभावशाली परिणाम आपको बाध्य कर देंगे- गीता की सर्वोत्कृष्ट शिक्षाओं के प्रति अपने को समर्पित करने के लिए।
गीता का उपदेश पूर्ण व्यवहार्य है।

यह एकदम स्पष्ट और बिना किसी मत-मतांतर या सम्प्रदाय को दृष्टि में रखकर सीधा कल्याण पथ पर अग्रसर करने वाला है। इसे एक बार अंगीकार करके आप अपने जीवन को प्रत्येक रूप में पूर्णत: सुरक्षित अनुभव कर सकते हैं। यह निर्विवाद है कि गीतोपदेश का एकमात्र उद्देश्य मानव कल्याण है और वह भी अत्यन्त सरल, स्पष्ट, युक्तियुक्त तथा तर्कसंगत साधनों द्वारा आप किसी भी जाति से सम्बन्ध रखते हों, किसी भी सम्प्रदाय के हों, किसी भी वर्ण -आश्रम के हों- छोड़िए ये सब मिथ्या आरोप और एक बार अपने को गीता की शरण में मनसा-वाचा-कर्मणा आने दीजिए। बस… अब वह स्नेह एवं वात्सल्यमयी माँ की भाँति आपको अपने अंक में ले लेगी यह कहते हुए- ‘चिन्ता मत कर! मैं तुझे सभी पापों-तापों से सदा सर्वदा के लिए मुक्त कर दूंगी!’ गीता की उदारता पर निष्ठा लाइए। यदि इसमें कुछ संदेह है तो भी एक बार इसे आजमाकर देखिए। आपको अपने अनमोल -देवदुर्लभ जीवन की सौगंध! बस एक बार ऐसा करके तो देखिए- गीता आपके जीवन को सुंदर, सुखद एवं आनंदमय बना देगी। यह आपको उन ऊचाइयों की ओर ले जाएगी, जहाँ सदैव शाँति और मस्ती की शीतल वायु का प्रवाह सतत आपके तन मन को रोमांचित करता रहेगा। दु:खों और चिंताओं की उष्णता नाममात्र को भी नहीं रह जाएगी। फिर क्यों नहीं, आप अभी-इसी समय कटिबद्ध हो जाते- ऐसा जीवन बनाने के लिए।

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