Fiery hero Netaji understand the relevance: अग्निमय नायक नेताजी प्रासंगिकता समझें

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भारतीय युवाओं के सिरमौर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की नीतियां हमेशा प्रासंगिक थी और रहेंगी। अग्निमय नायक सुभाष बोस राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन की कड़ियल छाती का लावा हैं। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा और गुलामी के घी से आजादी की घास बेहतर है जैसे पौरुषपूर्ण नारों के साथ सुभाष बाबू कांग्रेस के कथित क्लैव्य के बरक्स चुनौतीपूर्ण मुद्रा में खड़े हुए थे। तरुणाई ने स्वतंत्रता आन्दोलन में मध्यप्रदेश की त्रिपुरी में 1939 में अपना विजयी मुकाम पाया था। सदाबहार नौजवान ने गांधी के प्रतिनिधि पट्टाभि सीतारामैया को कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में मुकम्मिल तौर पर परास्त किया था। बीमार सुभाष को देखकर भी अच्छे-अच्छे हुक्काम सूरमाओं को बुखार चढ़ जाता था।
कालजयी नायक सुभाष केन्द्रीय भूमिका से बेदखल कर सरकारी इतिहास ने हाशिए पर खड़ा कर दिया। कोलकाता के एल्गिन रोड स्थित सुभाष-स्मृति-केन्द्र में जाते ही इतिहास गर्म सांसें लेता है। वह राज्य और केन्द्र सरकारों की उपेक्षा का यह आत्मा-केन्द्र नवयुवकों को ललकारता है। उनके चरित्र की आग से कलंक की कालिखें भस्म होती रहीं। वह स्मृति-केन्द्र अशेष जननेता के अनुपात का नहीं है। सुभाष बोस जैसा भूकम्प पारम्परिक इतिहासकारों और राजनेताओं की जड़ता को हिला नहीं पाया । उन पर ह्यजापानियों का एजेन्टह्य और ह्यतोजो का कुत्ताह्य जैसी फब्तियां तक कसी गईं। उनके चरित्र तक पर लांछन लगाए गए। त्रिपुरी में भी उनकी स्मृति का रखरखाव सम्मानजनक नहीं है।
सुभाष बोस जनशताब्दी में मैंने उनके द्वारा स्थापित आजाद हिंद फौज के कौमी तरानों का एक श्रव्य कैसेट भोपाल में मूल धुनों के रचनाकार आजाद हिन्द फौजियों से तैयार कराया। दर्शकों, श्रोताओं की आंखों में आंसू छलक उठे। उसमें सुभाष बाबू की ओजमय आवाज दर्ज है। सुभाष  की देन गिरे टूटे भारतवासियों में पौरुष भरना था। देश की तरुणाई को उन्होंने मातृभूमि की बलिवेदी पर मर मिटने की हुंकार लगाई। लगा दुर्गा सप्तशती की विद्रोहिणी भाषा बीसवीं शताब्दी का इतिहास बदल देने गरज उठी हो।
एक गुलाम, दहशतजदा कौम की धमनियों में लावा भरना असम्भव कार्य रहा था। वह चमत्कार सुभाष ने कर दिखाया। उनका ह्यदिल्ली चलोह्य का नारा फिजा में ह्यइन्कलाब जिन्दाबादह्य की तरह गूंजता रहा है। उनका यश भारतीयों के लिए संचित निधि है। उसके ब्याज से ही हमारी पीढ़ियों का काम चलता रहेगा। सुभाष बोस आई.सी.एस. की परीक्षा पास कर श्रेष्ठ नौकरशाह बन सकते थे। उन्होंने अंगरेजों का रबर स्टाम्प बनना स्वीकार नहीं किया। काजी नजरुल इस्लाम के धर्म निरपेक्ष छंद, रवीन्द्र संगीत और विवेकानन्द के शौर्य के साथ सुभाष बोस का आह्वान बंगाल के मार्फत भारत का जीवन है। गांधी से असहमति के बावजूद आजाद हिन्द फौज में ह्यगांधी ब्रिगेडह्य नाम उदार नेता ने रखा। उनके सहायक कर्नल गुरदयाल सिंह ढिल्लन और कैप्टेन लक्ष्मी सहगल सहित कई सैनिकों का सम्मान समारोह मैंने आयोजित किया था।  उनकी आंखों में सुभाष बाबू की चमक दिखी थी। बड़प्पन के बावजूद सुभाष देश की जिन्दगी का सोमवार से शनिवार अर्थात जीवित एजेण्डा नहीं बनाए गए। वे अपने जन्मदिन और पुण्यतिथि पर बमुश्किल याद किए जाने के मोहताज हैं।
नेताजी जनवादी सम्बोधन लोकतांत्रिक, संवैधानिक और जनपदीय अभिव्यक्ति है। केन्द्र और राज्य सरकारें अभियुक्त भाव से नेताजी की याद करती हैं। कालजयी विचारक का फलसफा बूझे बिना देश में नेताजी के रूमानी एडवेंचर और खाकी सैनिक वर्दी में लैस एक क्रांतिकारी की छवि प्रचारित करते रहने में नेताजी का ज्यादा नुकसान हुआ। संदेहास्पद स्थितियों में उनकी मृत्यु को भी खूब भंजाया गया। उन्हें मिथकों, रहस्यों और किंवदन्तियों का चरित्र बनाकर भारतीय पत्रकारिता सनसनी फैलाती रही। वह गवेषणात्मक दृष्टि खो दी जो नेताजी के यश से ज्यादा उनके विचारों को भारतीय संविधान, प्रशासन और राजनीति के लिए कारगर बनाती। सुभाष इतिहास निमार्ता थे। उनके योगदान को जांचने पश्चिम प्रगतिशील चश्मे की जरूरत नहीं है। सुभाष को दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादियों की काठी पर भी नहीं चढ़ाया जा सकता। महान जननायक में भारत ही भारत कुलबुलाता था। जर्मनी और जापान तक का उनका सफल यश आर्य नस्लवाद या एशियाई मुल्कों की एकजुटता के लिए नहीं था। उन्हें रूस और चीन से मदद नहीं मिली। सुभाष भारत को आजाद कराने के मिशन के लिए जीवन होम करते रहे।
केन्द्रीय और प्रादेशिक सरकारों के पाठ्यक्रम में सुभाष बाबू की हिस्सेदारी नहीं है। सुभाष बोस, भगतसिंह, मानवेन्द्रनाथ राय, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, मदनमोहन मालवीय, राजगोपालाचारी, लोकमान्य तिलक, अरविन्द घोष जैसे प्रखर बुद्धिजीवी राजनीतिक विचारधाराओं की फिक्स्ड डिपॉजिट पूंजी नहीं हैं। पार्टियों को स्पष्ट करना होगा कि वे किसके कितने विचारों का समर्थन करती हैं या आचरण कर सकती हैं। महापुरुष  बनकर उन पर फूल चढ़ाए जाने के लिए जन्म नहीं लेते। उनके विचारों की स्याही यदि किसी देश का भाग्य-लेख लिख सकती है।  महानता का अन्यथा अर्थ क्या है? अवाम के लिए वे मरे, खपे।  क्यों नहीं है कि उनके विचारों पर अमल हो? सुभाष बोस बिजली या बैटरी से चालित झुनझुना नहीं हैं जिसे बजाने का काम प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अन्य नेता करें और भावी इतिहास टुकुर टुकुर देखता रहे।
भारत में पैदा होना सुभाष बाबू का  संयोग था। भारत के लिए मर जाना उनका फैसला था। मरते मरते बचे शिशु सुभाष की एक कथा के अनुसार स्वामी विवेकानन्द  का आभास उनको उनके  आंगन तक हुआ था। अपनी आभा उन्होंने सुभाष के जीवन पर उलीच दी थी। सुभाष बोस के यश का प्रचार उनके वंशजों को करना पड़ा है।
-कनक तिवारी
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