कर्म का फल  ही मोक्ष की प्राप्ति है Karma Is The Attainment Of Salvation

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आज समाज डिजिटल, अम्बाला:
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कर्म शब्द अलग-अलग जगहों पर अलग तरीके से किया जाता है। कर्म शब्द का अर्थ हर इंसान जानना चाहता है । हमारे जीवन में इरादे, इच्छाएँ और भावनाएँ, आचरण को और क्रियाओं को प्रभावित करते हैं और कैसे इन सब का सम्बन्ध कर्म से है। संस्कृत भाषा में कर्म  का अर्थ है कार्य या क्रिया। वे क्रियाएँ जो न सिर्फ हम शरीर द्वारा करते हैं लेकिन मन और वाणी द्वारा भी करते हैं, उसे कर्म कहते हैं।

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कर्म को भूतकाल और भविष्यकाल भी कहा जाता है

रोजमर्रा क्रियाएँ जैसे – अच्छे काम करना, दया भाव आदि काम पर जाना, सामान्य तौर पर इन सब को भी कर्म ही कहा जाता है। आत्मज्ञानी परम पूर्वजो द्वारा कहा गया है कि आज जो भी है पूर्व जनम का फल है पिछले जन्म के कर्मों के फल हैं। इसलिए जीवन में जो कुछ भी दिखाई देता है, वह सब हमारे पहले के अभिप्राय का फल है।

Fruit Of Karma Is The Attainment Of Salvation
Fruit Of Karma Is The Attainment Of Salvation

 कर्मों का परिणाम हैं सुख और दु:ख

कर्म  ही लगातार हमें जन्मोंजन्म के चक्कर में आते हैं। सुख और दु:ख के अनुभव हमारे पूर्व जन्मों में चार्ज या इकट्ठे किए गए कर्मों का परिणाम हैं। कभी भी नकारात्मक, अन्य सकारात्मक क्रिया द्वारा मिटाई नहीं जा सकतीे हमें इन दोनों के अलग-अलग परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

 कर्म के विज्ञान को समझने की सभी चाबियाँ दी हैं

कर्म का फल सामान्य तौर पर वह हमारे भीतर के ही अभिप्रायों का फल है। जो कर्मबीज पिछले जन्म में बोये थे, उन कर्मों के फल इस जन्म में आते हैं। तो यह फल कौन देता होगा? भगवान? नहीं, जब उपयुक्त परिस्थितियाँ परिपक्व होती हैं तब प्राकृतिक रूप से हमें कर्मफल का अनुभव होता है।

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कर्मों का फल  3 प्रकार के होते है 

1 क्रियमाण कर्म: मानव जीवन में नित्य प्रति जो कर्म सुबह उठने से लेकर दिन भर कुछ भीक्रिया-कलाप या कर्म किये जाते हैं। उन्हें क्रियमाण कर्म कहा जाता है। क्योंकि इन कर्मो के करने सेमानव जीवन गतिमान रहता है।  जैसे यदि आप भोजन को ग्रहण कर लेंगे तो आपकी भूख स्वतः ही शांत  हो जायेगी।

2 संचित कर्म: यह बात तो निश्चित हो चुकी है कि आपको कर्म तो करने ही पड़ेंगे। कुछ ऐसे कर्म भी होते हैं जोकि हम करते तो हैं, लेकिन हमें उस समय यह ज्ञात नहीं हो पाता कि इन कर्मों का परिणाम क्या होगा।

साथ ही उन कर्मो का फल भी चित्त में ही विद्यमान हो जाता है। जब तक हमें अपने इन कर्मो का फल प्राप्त नहीं हो जाता। तब तक वह कर्म हमारे चित्त में भी समाहित रहते हैं।

3 प्रारब्ध कर्म :जब हमारे कर्म हमें उस दिशा की और ले जाते हैं, जहाँ हमारे कर्म हमें पूर्ण रूप से फल देने को परिपक्व हो चुके होते हैं। तब ही इन कर्मो का फल हमें मिलता है।

इस प्रकार के कर्मों को प्रारब्ध कर्मकहा जाता है।  इन कर्मो में अच्छे एवं बुरे दोनों ही प्रकार के कर्मों का समूह होता है। यदि हम विचार करें तो पायेंगे कि हम अपने एक मानव जीवन में लाखों संचित कर्मों को एकत्रित कर लेते हैं।

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