Festival Of Ideas: ‘भारत के कई विचार’ पर चर्चा, अपने अतीत को मिटाकर भविष्य की ओर नहीं बढ़ सकता भारत : पवन शर्मा

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‘भारत के कई विचार’ पर चर्चा, अपने अतीत को मिटाकर भविष्य की ओर नहीं बढ़ सकता भारत : पवन शर्मा

Aaj Samaj (आज समाज), Festival Of Ideas, दिल्ली: ITV नेटवर्क की तरफ से देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित फेस्टिवल आफ आइडियाज की कड़ी में आज भी कॉन्क्लेव शुरू हो गया है। पिछले कल यानी 24 अगस्त को आयोजित कॉन्क्लेव में देशभर के तमाम क्षेत्रों के दिग्गजों ने देश की जनता के साथ इस मंच पर अपने विचार साझा किए और आज भी कई दिग्गज देशवासियों के साथ अपने विचार साझा करेंगे। साथ ही वे लोगों के सवालों का जवाब भी देंगे। आप हमारे कार्यक्रम के साथ जुड़े रहें।

फेस्टिवल आफ आइडियाज के तहत ‘भारत के कई विचार’ मुद्दे पर चर्चा की गई और इसमें बीजेपी नेता विनय सहस्रबुद्धे, पूर्व जदयू नेता और राजनियक पवन वर्मा व लेखक विक्रम सम्पत शामिल हुए। सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार प्रिया सहगल की तरफ से किया गया।

जो पूरे चीज का कोर है वह नहीं बदला : सहस्रबुद्धे

विनय सहस्रबुद्धे से पूछा गया कि पुराने भारत में लिबरल होने पर बहुत अच्छा माना जाता था। आज लिबरल होने को बहुत बुरा माना है। आज भारत का विचार क्या है जो आप देखते है। इस पर सहस्रबुद्धे ने कहा, जो पूरे चीज का कोर है वह नहीं बदला, यह समझने (Festival Of Ideas) का तरीका है। कई बार नेता अपने हिसाब से समझते हैं। उन्हें जो अच्छा लगता है वह उस हिसाब से सोचते है। भारत के कई विचार हैं और उसे समझने का भी एक तरीका है, लेकिन एक लोकतंत्र में रहते है। लोकतंत्र किसी के लिए कुछ भी नहीं होता। हर बात का एक कोर होता है, इसलिए मैं समझता हंू कि भारत का विचार एक है।

भारत एक आधुनकि राष्ट्र, सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक : पवन वर्मा

पूर्व जदयू नेता और राजनयिक पवन वर्मा ने कहा, मैं नहीं समझता कि भारत के सभी लोगों का विचार एक है। उन्होंने कहा, हम सभी भारत के प्रति समर्पित हैं, लेकिन हमारा विचार अलग हो सकता है। भारत एक राष्ट्र है और एक सभ्यता भी है। भारत एक आधुनकि राष्ट्र और दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। भारत अपने अतीत को मिटाकर भविष्य की ओर नहीं बढ़ सकता।

हमारे देश में राजनीतिक व सांस्कृतिक रूप से कई विचार

लेखक विक्रम सम्पत ने कहा, हमारे देश में अलग-अलग विचार हैं। राजनीतिक रूप से कई विचार है व सांस्कृतिक रूप से कई विचार हैं। आजादी के बाद नेहरूवादी ने भारत का एक विचार थोपा। जो उस विचार में नहीं आया उसे प्रताड़ित किया गया। उदहारण के रूप में आरएसएस को देख सकते हैं। भारत का जन्म 1947 में नहीं हुआ न ही 1950 में। संविधान का निर्माण सभ्यता से प्रेरणा लेकर किया गया था। नेहरू तब भी खुश होते अगर सोमनाथ को संग्रहालय बनाते, एक जीवित मंदिर नहीं।

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