EU-Vietnam Trade Deal: Have We Chipped Again? ईयू-वियतनाम ट्रेड डील: क्या हम फिर से चूंक गए?

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कोविड-19 महामारी से प्रभावित भारतीय निर्यातक (विशेषकर श्रम प्रधान क्षेत्रों में) अपने भाग्य के सुधरने की उम्मीद कर रहे हैं, इन निर्यातकों के साथ समस्याएं पहले से थीं लेकिन अब इस क्षेत्र में भारत के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी वियतनाम के यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करने से ये समस्याएं और भी बढ़ गई हैं। ईयू एशियाई देशों के लिए एक आकर्षक बाजार रहा है, ऐसे में यह समझौता जूते, समुद्री उत्पाद, प्लास्टिक, रबर, चमड़ा और कॉफी जैसे उत्पादों में एशियाई प्रतिद्वंद्वियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाएगा। समस्या यह है कि वियतनाम के अब से 71% निर्यात और सात साल के बाद 99% निर्यात को ईयू में ड्यूटी-फ्री एक्सेस मिलेगा, लेकिन भारतीय निर्यात 9.6% तक के शुल्क को आकर्षित करता रहेगा। विश्लेषकों के अनुसार इसका भारत पर एक नकारात्मक प्रभाव यह भी होगा कि चीन और अन्य देश वियतनाम में भारी निवेश करेंगे जिससे वो ईयू में वियतनाम की शुल्क मुक्त पहुंच का लाभ उठा सकें। जैसा कि पिछले साल की नोमुरा रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल 2018 से अगस्त 2019 के बीच चीन से बाहर जाने वाली 56 कंपनियों में से 26 ने वियतनाम को अपना नया घर चुना। भारत के लिए यह झटका ज्यादा बड़ा इसलिए भी है क्योंकि भारत के कुल निर्यात का लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा ईयू पर आश्रित है और इस तरह यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। हालांकि, कपड़ों जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में तो ईयू में भारत के कुल निर्यात का हिस्सा (यूके सहित) लगभग 30 प्रतिशत जितना ज्यादा है। यह समझौता भारत के लिए विभिन्न श्रम प्रधान निर्यात क्षेत्रों में अपनी बाजार हिस्सेदारी को बचाए रखने की चुनौती को और बढ़ा देगा। भारत के लिए राहत की बात यह है कि यूरोपीय संघ एक कम-टैरिफ वाला बाजार है- जिसमें मोबाइल फोन, लोहा और इस्पात, फर्नीचर और काजू सहित कई प्रमुख उत्पादों पर शून्य या न्यूनतम आयात शुल्क है, जो वियतनाम के लाभ को थोड़ा कम जरूर करेगा। इसके अलावा, एफटीए संधि के अनुसार, परिधानों और फुटवियर पर यूरोपीय संघ में अधिक संवेदनशील वस्तुओं के लिए पांच से सात साल और कम संवेदनशील सामानों के लिए शून्य से तीन साल तक की अवधि का विस्तार रखा गया है। यह भारतीय निर्यातकों को विकल्प खोजने के लिए कुछ समय जरूर देगा, लेकिन यह मात्र अल्पकालीन राहत है। इसी कड़ी में, भारत का माल निर्यात 2019 में (साल-दर-साल) मामूली रूप से घटकर $324 बिलियन रहा, लेकिन यूरोपीय संघ के साथ यह 3% की तेज गति से गिरा है। सवाल यह है कि इससे वियतनाम को आखिर कितना फायदा होगा? अलग-अलग आंकलन बताते हैं कि इस साल वियतनाम का ईयू में निर्यात तकरीबन 20 प्रतिशत तक की बढ़त देख सकता है और 2030 तक इसके 44 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है। इसके अलावा वर्ल्ड बैंक ने मई के महीने में कहा था कि इस एफटीए से वियतनाम में हजारों लोग गरीबी रेखा के ऊपर आ जाएंगे। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक इस ट्रेड डील से वियतनाम की जीडीपी में 2030 तक 2.4 प्रतिशत तक की बढ़त होने की उम्मीद है। साउथईस्ट-एशिया में सिंगापुर के बाद वियतनाम ऐसा दूसरा देश है जिसका ईयू के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) है। सवाल यह भी है कि भारत आखिर कहां चूंक गया? 2007 से ही भारत बीटीआईए समझौते के जरिए ईयू के साथ एक एफटीए करना चाहता है। 2007 से 2013 के बीच भारत-ईयू एफटीए पर16 दौर की वार्ता के बाद, नई दिल्ली द्वारा आॅटो उपकरण और शराब सहित अन्य चीजों पर टैरिफ में भारी कटौती की मांगों के कारण समझौता थीमा हो गया। इसके बाद 2014 में आई
नई सरकार ने एक नए सिरे से समझौते पर बात करने कि पेशकश की लेकिन ईयू ने बीटीआईए के अंतर्गत सब-एग्रीमेंट बीआईपीपीए पर पहले बातचीत करने को कहा। इसके बाद2018 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने ईयू के साथ चल रहे तकरीबन 50 छोटे समझौतों को रद्द कर दिया और बीआईटी समझौते की पेशकश की जिसे यूरोपियन कमीशन ने खारिज
कर दिया। हालांकि, दोनों पक्ष इस साल की शुरूआत में व्यापार वार्ता को फिर से शुरू करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कोविड-19 ने उसे भी अटका दिया। ईयू में भारत के फ्रÞांस और जर्मनी से हमेशा से ही अच्छे रिश्ते रहे हैं लेकिन हाल के सालों मे इटली उतना सकारात्मक नहीं रहा है। लगबघ 13 सालों से हम लगातार ईयू से समझौता करने में विफल रहे हैं जबकि वियतनाम ने यह समझौता 7 सालों में ही कर लिया। जरूरी है हम अपनी क्षमताओं को समझें और हर चीज का रोडशो ना कर देश की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करें।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं)

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