Budget support in comparison to farmer movement: किसान आंदोलन के मुकाबले बजट का सहारा

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दिल्ली में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन की आंच अब पश्चिम के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी महसूस की जा रही है। आंदोलन का फैलाव देखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी इससे निपटने की पूरी तैयारी कर ली है। योगी सरकार इस बार के सालाना बजट को तुरुप का इक्का मान रही है और ज्यादा से ज्यादा गावों में इसके प्रचार प्रसार के जरिए किसानों को समझाना व अपने पाले में जोड़े रखना चाहती है।
सरकार से लेकर संगठन तक जल्द ही इस काम में जुटेंगे। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में देश भर में अव्वल रहने, धान व गेंहूं की बंपर सरकारी खरीद के साथ ही अन्य सफल योजनाओं को लेकर योगी सरकार किसानों के बीच जाएगी और विरोधियों की काट करेगी। दरअसल कृषि कानूनों के खिलाफ बीते दस दिनों से लगातार पूर्वी उत्तर प्रदेश में किसान पंचायते हो रही हैं और उनमें भीड़ भी जुट रही है।
जाट किसानों के नेता माने जाने वाले नरेश टिकैत और राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी इन किसान पंचायतों को संबोधित कर रहे हैं। अब तक रालोद और भारतीय किसान यूनियन ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में लखनऊ, बाराबंकी, बस्ती, अंबेडकरनगर, संकबीरनगर सहित कई जिलों में किसान पंचायतें कर डाली हैं। अब तक किसान आंदोलन को लेकर पश्चिम में ही सक्रियता दिखा रही कांग्रेस व इसकी प्रभारी महासिचव प्रियंका गांधी भी आने वाले दिनों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में पंचायत का आयोजन करने जा रही हैं।
उत्तर प्रदेश में जल्द होने वाले पंचायत चुनावों को देखते हुए किसानों की पूर्वी हिस्से में उभार सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए परेशानी का सबब बन गया है। भाजपा जहां पश्चिम में अपने नेताओं व मंत्रियों को जाटों की खाप पंचायतों से मुलाकात के लिए भेज रही है वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए इस तरह की कोई रणनीति अभी तक नहीं बनायी गयी है। मंगलवार को लखीमपुर जिले के संपूर्णनगर में कृषि कानूनों के विरोध में हुयी पंचायत में रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने केंद्र व प्रदेश सरकार पर जमकर निशाना साधा। जयंत ने कहा कि आजाद भारत का यह पहला आंदोलन है जो जमीन से निकल कर आया है। किसान मतदाता बनकर सवाल पूंछ रहा है। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरनगर के गांव में नेता भेजे गए। वहां के सोरम गांव में ये नेता गए तो नारे लगे कि किसान एकता जिंदाबाद।
सोरम और भैंसवाल की घटना के बाद सतर्क हो भाजपा ने फिलहाल अपना खाप पंचायतों के चौधरियों से मिलने के कार्यक्रम को आगे न बढ़ाने या इसे जोरशोर से न करने का फैसला ले लिया है। दरअसल पार्टी फिलहाल पश्चिम में किसानों के साथ टकराव को टालना चाहती है। उसका मानना है कि किसान दोलन के एक बार खत्म होने के बाद उसके लिए फिर से खुद को जाटों, गुर्जरों और अन्य खेतिहर जातियों के बीच पैठ जमाना मुश्किल नहीं होगा। पार्टी को लगता है कि उसके संगठन की जड़ें इतना नीचे तक फैल गयी हैं कि बाद में डैमेज कंट्रोल करना उतना मुश्किल नहीं होगा बस फिलहाल लोहा गर्म है तो टकराव उचित नहीं होगा। गौरतलब है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी कृषि कानूनों के खिलाफ हो रही पंचायतों में किसानों की भीड़ आ रही है। बीते सप्ताह रेल रोको आंदोलन में भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों की भागीदारी रही थी।
पश्चिम में लगातार इस मुद्दे पर किसान पंचायत कर रही कांग्रेस भी अब पूर्वी हिस्सों में इनका आयोजन करने जा रही है जहां पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी किसानों को संबोधित करेंगी। भकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत पूर्वी उत्तर प्रदेश में अब तक आधा दर्जन किसान पंचायतों को संबोधित कर चुके हैं। मध्य उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच प्रभाव रखने वाले नेता वीएम सिंह ने एक बार फिर से आंदोलन खड़ा करने का एलान कर दिया है। पहले किसान आंदोलन में शामिल रहे वीएम सिंह ने 26 जनवरी को लालकिले पर हुयी घटना के बाद अपने कदम वापस खींच लिए थे।
अब वो नए सिरे से आंदोलन में जुटने जा रहे हैं। उधर अब तक किसानो के आंदोलन को पश्चिम के दस जिलों का बताने वाली भाजपा के सामने नयी चुनौती खड़ी हो गयी है। पार्टी का मानना है कि आने वाले पंचायत चुनावों में किसान आंदोलन के चलते परेशानी खड़ी होगी। जिस तरह से पश्चिम में पार्टी नेताओं के गांव में घुसने पर पाबंदी लगायी जा रही है वही सिलसिला पूर्व में शुरू हो गया तो खासी मुसीबत खड़ी होगी। कृषि कानूनों के विरोध में करीब ढाई महीने से चल रहे किसान आंदोलन से भाजपा में बेचैनी दिखने लगी है। पार्टी के रणनीतिकारों को इस बात का अंदेशा है कि कहीं यह आंदोलन जाट बनाम अन्य का न हो जाए? यदि ऐसा हुआ तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बाहुल्य मतदाताओं वाली 19 जिलों की 55 विधानसभा सीटें पार्टी के लिए चुनौती बन सकती हैं। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में एक बार से दमदार वापसी का प्लान बनी रही योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
जिस प्रकार से आंदोलन गांव में फैल रहा है और आरएलडी, कांग्रेस और सपा समेत अन्य राजनीतिक दल इस आंदोलन की आड़ में ग्रामीण क्षेत्र में बीजेपी के विरोध में माहौल बनाने के प्रयास में जुटे हैं, यदि इस पर पार्टी ने कोई विशेष प्लान तैयार न किया तो जिला पंचायत चुनावों में उतरने वाले पार्टी प्रत्याशियों को खामियाजा उठाना पड़ सकता है। ऐसा होने पर विधानसभा चुनाव में भी ग्रामीण क्षेत्र में बीजेपी के पक्ष में मतदान कराना चुनौती बन जाएगा। हालांकि इसकी काट के लिए भाजपा के संगठन और खुद प्रदेश सरकार में भी मंथन शुरू हो गया है। पंचायत चुनावों को देखते हुए प्रदेश भाजपा ने अब अपने नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है कि गांवों में जाकर बजट के बारे में किसानों व ग्रामीणों को बताएं। सरकार से लेकर संगठन यूपी सरकार के बजट को मास्टर स्ट्रोक मान रही है और उसका विचार है कि गांवों तक लोगों को बजट के बारे में सही जानकारी पहुंचाना उसके लिए राजनैतिक रुप से फायदे मंद हो सकता है। सरकार का मानना है कि बजट में गांव और किसान के लिए काफी कुछ है जिसकी जानकारी लोगों तक पहुंचाने के बाद कम से कम योगी सरकार के बारे में उसके दिल में जगह और पुखता होगी जिसका फायदा पहले पंचायत और उसके बाद विधान सभा चुनावों में मिलेगा। बहरहाल जिस तरह के हालात चल रहे हैं उसमें पहली बार भाजपा ने यूपी के लिए अपनी रणनीति में बदलाव किया और अब तक आक्रामक राजनीति करती आ रही पार्टी अब रक्षात्मक मुद्रा में है।
पार्टी की रणनीति अब देखो और इंतजार करो वाली है। आने वाले दिनों में किसान आंदोलन थमने के बाद भाजपा फिर से गांव गांव जाकर अपनी विकास की गाथा सुनाते लोगों को अपने पक्ष में लामबंद करने की कवायद करते नजर आएगी। योगी सरकार का मानना है कि अपने कामों व बेहतरीन बजट के बलबूते वह न केवल किसानों का असंतोष थामने में सफल होगी बल्कि उन्हें फिर से अपने पक्ष में गोलबंद कर लेगी। आने वाले दिनों में सरकार के मंत्री से लेकर भाजपा संगठन के नेता गांवों की खाक ही छानते नजर आएंगे।
(लेखक उत्तर प्रदेश प्रेस मान्यता समिति के अघ्यक्ष हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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