Bengal politics and lessons of this election: बंगाल की राजनीति और इस चुनाव के सबक

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पर पहले बंगाल की बात-
बंगाल का चुनाव राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के लिये समन्वित रूप से अध्ययन और शोध का बहुत अच्छा विषय है ।इसका जितना सरलीकरण किया जा रहा है दर असल ये उतना ही पेचीदा है ।पहले 2019 का लोक सभा चुनाव जिसमे भाजपा 18 सीट पा गई ।दर असल वो भाजपा नही पायी बल्कि साम्यवादी पार्टियो के लोगो ने जितवा दिया क्योकी उनकी बड़ी दुश्मन ममता बनर्जी थी जिसने उनसे सत्ता और उनका सुख चैन छीना था । साम्यवादी नीचे का नेता और कार्यकर्ता भाजपा मे चला गया की ममता को कमजोर कर ले और राष्ट्रीय पार्टी जिसकी केंद्र मे सत्ता है उसमे रहने का भी लाभ मिलेगा तथा भाजपा यहा  जमीन पर है नही तो हम फिर वापस आ जायेगे  और बिल्कुल ही शुन्य भाजपा उतनी सीट पा गई ।
इस बार 140 से ज्यादा तृणमूल के लोगो को भाजपा ने टिकेट दे दिया क्योकी उसके पास देश के बहुत बड़े हिस्से मे लोग ही नही है और बड़ी संख्या मे उनके साथ वो स्थानीय नेता भी भाजपा मे आ गये जिनसे लडाई के कारण साम्यवादी भाजपा के साथ गये थे तो वो उस खाली जगह को भरने के लिये तृणमूल मे आ गये ।इस चुनाव मे तृणमूल का कुछ वो वोट जो उन नेताओ से जुडा था जो भाजपा मे गये और कुछ ऐसा वोट भी जो उत्तर प्रदेश बिहार और भाजपायी राज्यो की कहानी नही जानते और उनके जुमलो मे और आक्रमक प्रचार के प्रभाव मे आ गये जैसा की हर जगह करीब 20 %लोग किसी दल से बंधे नही होते और नयी आशा के साथ नया प्रयोग करते रहते है और ऐसे लोगो ने सोचा की एक बार भाजपा को भी देख ही ले इन वोटो ने भाजपा को ये सीटे जीता दिया ।
जबकी तृणमूल का अपना खुद का मजबूत आधार, अविवाहित बच्चियो और महिलाओ के लिये योजनाये , ममता की लोक प्रियता ,ममता का जुझारु तेवर जिसने मेरी निगाह मे  दिशा उसी दिन तय कर दिया था जिस दिन ममता ने मोदी जी के मंच पर ही उनके कार्यकर्ताओ की हरकत का विरोध कर बोलने से इंकार कर दिया था प्रोटेस्ट मे ,भाजपा का अहंकार और बंगाल को यू पी बिहार समझने की भूल ,साम्यवादी दलो का जीत के लिये आक्रमक न होना और कांग्रेस नेतृत्व का प्रारम्भिक लम्बे समय तक प्रचार से गायब रहने के कारण उसका वोट ममता की ऐतिहासिक जीत का कारण बना और साम्यवादी तथा कांग्रेस दोनो मे मारक नेतृत्व के अभाव ने उन्हे रसातल मे पहुचा दिया । मेरे इस चिंतन पर चिंतन कर बंगाल के चुनाव पर अध्ययन हो सकता है ।
मैं दो बाते मानता हूँ की यदि ये वोट की अदला बदली नही होती और कांग्रेस तथा साम्यवादी पूरी ताकत से प्रारंभ से ही लड़े होते तो भाजपा अधिक से अधिक 30 के आसपास सीटे पाती सब कुछ कर के भी , कांग्रेस और साम्यवादीयो की थोडी बढत हो सकती थी पर फिर भी ममता 170 से 180 सीट लाकर सरकार बनाती ।
दूसरा आरएसएस और भाजपा ने इस चुनाव मे अपने सारे शस्त्र प्रयोग कर लिये और बंगाल ने देख लिया ,बहुत सी बाते जिसके प्रचार मे आकर कुछ प्रतिशत ने भाजपा को वोट दिया अब उनकी बातो को कसौटी पर कसेगा इसलिए भाजपा की ये चरम स्थिति है और अब उसके लिये आगे कोई गुंजाइश नही है बशर्ते ममता इनसे सावधान रहे और इनके वत्सप ज्ञान और अफवाहो से बचा कर रखे और अपने नीचे काडर तथा तंत्र को सम्हाल कर रखे ।साम्यवादियो को तो 50 के दशक की तरह फिर से शुरू करने की जरूरत है और अपनी पुरानी घिसी पिटी सोच और भारत के बजाय अमरीका और रुस चीन को देख कर कार्यक्रम और भाषण से बचना होगा ।
भाजपा को और आरएसएस को सबक है की पुराने जुमले और हथकंडे जितना चलना था चल चुके अब वो देश और समाज को ही खायेंगे और दुनिया बहुत आगे जा रही है अब 5000 साल पीछे देख कर भविष्य तय करना बंद करना होगा तो अपनी पुरानी सोच देश पर लादने से बाज आना होगा वर्ना ये लोग तो घरो मे घुस जायेंगे सरकार से बाहर होकर पर देश को बहुत भुगतना होगा । कश्मीर पर निर्णय के बाद लोक सभा मे गृह मंत्री का अहंकार पुर्ण बयान हमे कितना भारी पड गया ये कम से कम सत्ता चलाने वाले लोग तो जान ही गये ।मुस्लिम के सवाल पर अरब की राजकुमारी के मुखर होते ही वहा रहने वाले भारतीयो को क्या क्या भुगतना पड़ा और वहा से सिर्फ पेट्रोल नही बल्कि सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भी आती है ।भारत के वहा के राजदूत से लेकर दिल्लो पी एम तक को सफाई देनी पडी थी और भागवत जी को नयी थ्योरी देनी पडी की भारत मे पूरे 130 करोड लोग हिन्दू है जिनकी मान्यताये अलग अलग है ।अपनी खराब विदेश नीति से और सत्ता के मूल संगठन की हरकतो से हमने बहुत कुछ बिगाडा और बहुत कुछ खोया ।अभी हाल मे अचानक पाकिस्तान से प्रेम का व्यव्हार यूँ ही नही है और हमारे उच्च लोगो और उनके उच्च लोगो की लगातार बात हमारे और उनके लोगो की दुबई मे मुलाकात (ऐसा बताया जाता है ) सब यू ही नही है ।वर्ना तो मुसलमान और पकिस्तान ही संघ भाजपा इनकी भक्त मंडली और सुपारी मीडिया का दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया था । अब विश्व राज नीति बदल रही है और अरब देश से लेकर तुर्की तक एक नयी धुरी बन रही है ।चीन से हमारे विवाद है ,लाल आंख का सवाल था ,साम्यवाद से घृणा के कारण सबसे विश्वसनीय दोस्त रुस के साथ अब वो रिश्ता नही रहा ,अमरीका व्यापारी है और कभी भी बहुत विश्वसनीय नही रहा, वर्तमान सत्ता समूह इस्राइल की तरफ झुका हुआ है पर इस्राइल खुद संकट मे है ,सारे पडोसी जो हमारे लिये छोटे भाई थे और हम पर आश्रित थे उनको हमने सामने खड़ा कर लिया ।
ऐसे मे उम्मीद सिर्फ अरब देशो की नयी धुरी से बचती है जो संघ के सोच और हरकतो से तो नही होने वाला है ।
डा सी पी राय
(लेखक स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक
और पूर्व मंत्री  हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
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