An epidemic on one side and black marketing on the other side: एक तरफ महामारी तो दूसरी तरफ कालाबाजारी

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कोरोना की दूसरी लहर पहली से कहीं अधिक व्यापक, घातक तथा रहस्यमय है। इसको जूझने में और इसका मुकाबला करने में जहाँ एक तरफ स्वयंसेवी संगठन तथा धर्मार्थ संस्थाएँ मानवीय आधार पर आगे आकर मरीजों और उनके तीमारदारों के कष्ट को कम करने के प्रयास कर रही हैं जैसे कि कई गुरद्वारे तथा सिख संस्थाओं ने आॅक्सीजन लंगर लगाए हैं।
दिल्ली में रकाबगंज गुरूद्वारे में बहुत बड़ा अस्थायी अस्पताल गुरुद्वारे में ही खोल दिया है। रोटरी क्लब अंबाला जैसे क्लबों ने क्वारंटाइन हुए कोविड मरीजों को उनके घरों पर मुफ़्त दोपहर और रात का खाना पहुँचाने का जिÞम्मा लिया है। कुछ अन्य गैर सरकारी संस्थाएं लोगों में पी पी ई किटस, मॉस्क तथा सैनीटाईजर आदि को मुफ़्त बाँट रही है।कई चैरिटेबल ट्रस्ट लोगों को आनलाइन योग सिखा रहे हैं और योगा अभ्यास करा रहे हैं ताकि उनकी इस रोग से लड़ने की क्षमता बड़े जैसे की प्राणायाम करने की ट्रेनिंग देना आदि। वहीं दूसरी तरफ कुछ स्वार्थी लोग इस महामारी को कमाई का धंधा बना रहे हैं। चाहे समाचार पत्रों, तो चाहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या सोशल मीडिया ऐसे लोगों की कारस्तानियों से भरे पड़े हैं। कुछ व्यापारियों और व्यवसायियों ने तो इस महामारी को लाभ कमाने का एक बहुत बड़ा अवसर मान लिया है। ये लोग मानवता की सारी हदों को पार कर लूट खसोट और चोर बाजारी में लगे हैं।
ऐसा लगता है कि ये मानव ना होकर दानव है, इनमें हमदर्दी ना होकर खुदगर्ज़ी है। ये मौत के सौदागर आपदा में अवसर ढूंढ रहे हैं। लूट मचाने वालों में सबसे पहले प्राइवेट अस्पताल हैं जिन्होंने मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाकर अपने यहाँ मरीजों से प्रतिदिन एक लाख रुपया ऐंठा था।दिल्ली का एक बहुप्रसिद्ध अस्पताल तो गेट पर ही मरीजों को कह देता था कि यदि आप एक लाख रुपया रोज का खर्च कर सकते हो तो ही यहाँ आना अन्यथा कहीं और चले जाओ। ऐसी स्थिति लगभग सभी शहरों में देखने को मिली और प्राइवेट अस्पतालों ने अपना खून धंधा चमकाया। इनके राक्षसी व्यवहार को देखकर सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा और उन्होंने एक रात कोरोना मरीज को ठहराने और इलाज के दाम निश्चित कर दिए। लेकिन अब भी कई अस्पताल नए नए बहाने बनाकर और तरकीबें निकाल कर कोरोना मरीजों को लूट रहे हैं। अप्रैल में जब दूसरी लहर ने जोर पकड़ा था तो प्राइवेट एंबुलेंस वालों ने भी खूब लूट मचाई। उन्होंने सामान्य रेट से पाँच से दस गुना ज्यादा मरीजों से वसूला। एक एम्बुलेंस वाले ने तो 325 किलोमीटर दूर मरीज को लेकर जाने के लिए 25 हजार रुपये कोरोना मरीज से ऐंठे।
अभी कुछ दिन पहले ही अंबाला में एक एम्बुलेंस वाले ने तीमारदारों के साथ झूठ बोलकर कि मेरी एम्बुलेंस में आक्सीजन का प्रबंध है, 4 हजार रुपये में एक मरीज को चंडीगढ़ ले जाना तय किया लेकिन जब रास्ते में मरीज का साँस उखड़ने लगा तो एम्बुलेंस वाला आॅक्सीजन नहीं दे पाया क्योंकि वह उसके पास थी ही नहीं, जिसके कारण मरीज की मृत्यु हो गई।एंबुलेंस चालकों पर नकेल कसने के लिए जब सरकार ने इनके रेट भी तय कर दिए तो गुरुग्राम में एंबुलेंस चालकों ने हड़ताल कर दी जो उनकी असंवेदनशीलता और क्रूरता का प्रतीक है। कोरोना के मरीजों के जले पर नमक छिड़कने में सिलेंडर का कारोबार करने वालों ने भी कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने जमकर इसकी कालाबाजारी की और लोगों को ठगा।
अभी दो दिन पहले ही फरीदाबाद से एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया है जिसके कब्जे से 50 आॅक्सीजन सिलेंडर बरामद किए गए जो इनकी ब्लैक करता था। पकड़े जाने से पहले न जाने इस व्यक्ति ने कितने बेबस मरीजों और उनके घर वालों को लूटा होगा। सिलेंडर को अस्पताल तक ले जाने या लाने के लिए वाहन चालकों ने भी मनमाने दाम वसूल किए। कुछ दिन पहले शामली उत्तर प्रदेश में सरकारी अस्पताल के एक कर्मचारी ने रिश्वत लेकर खाली आॅक्सीजन का सिलेंडर कोरोना मरीज को लगा दिया जिससे उसकी मौत हो गई। बाद में कर्मचारी को गिरफ़्तार कर लिया गया।
ये सच्चे उदहारण देकर मैं यह बताना चाहता हूँ कि कुछ लोग पैसा कमाने के लिए निर्दयता और अमानवता को किस हद तक अपना लेते है। मरीजों के प्रति क्रूरता दिखाने में दवाइयाँ तथा मेडिकल उपकरण बनाने और बेचने वाली कंपनियों तथा व्यापारियों ने भी खूब लूट मचाई। बीमारी के बढ़ने तथा माँग और पूर्ति के असंतुलन के कारण दवाइयों, मेडिकल उपकरणों जैसे की आॅक्सीमीटर, सिलेंडर, वेंटिलेटर, बेडस आदि की कमी होना स्वाभाविक था। लेकिन कृत्रिम अभाव या कमी पैदा करने की भारतीय व्यापारियों और दुकानदारों की पुरानी आदत है।
कोरोना के इलाज में काम आने वाले सभी उपकरणों और दवाइयां दुकानों से एकदम गायब हो गई है। लेकिन ब्लैक में ये सब उपलब्ध हैं। रेमडसिविर के इंजेक्शन है और अन्य दवाइयों की खूब कालाबाजारी हुई। ब्लैक में ऊँचे दामों पर खरीदने पर भी इन दवाइयों की शुद्धता और वास्तविकता की गारंटी नहीं है क्यूँकि ये सब नकली भी बननी शुरू हो गई है। अभी कुछ दिन पहले लगभग पौने तीन करोड़ रेमडेसिविर नकली इंजेक्शनों की एक खेप पकड़ी गई जो की सोशल मीडिया पे खूब वायरल हुई। कुछ दिन पहले रोपड़ के पास भाखड़ा नहर में भी रेमडेसिविर इंजेक्शेन की ही डेढ़ हजार नकली शीशियां बरामद की गई है जो किसी नकली दवाइयों की कालाबाजारी करने वाले ने पकड़े जाने के डर से नहर में फेंक दी थी। श्मशान घाटों पर लकड़ी बेचने वाले ठेकेदारों ने भी लकड़ी की कीमत में पचास से सौ गुना की वृद्धि कर दी। इतना ही नहीं संस्कार करने वाले आचार्यों तथा पंडितों ने भी संस्कार के दाम बढ़ाकर लोगों के दुखों को इस महामारी में कम करने की बजाय बढ़ाया।
जब ये सब लोग काफी लूट मचा चुके, मुनाफा खोरियाँ कर चुके है तो सरकारें होश में आयी और इन पर पाबंदियां लगानी शुरू की और सभी के दाम निश्चित कर दिये गये। लेकिन इन पर नकेल कसने में अभी भी सरकार पूरी तरह से सफल नहीं हुई है और ये स्वार्थी लोग अभी भी लूट मचाने और कालाबाजारी करने से बाज नहीं आ रहे। हरियाणा के गृह मंत्री श्री अनिल विज ने तो इन पर कार्रवाई और इनकी शिकायत करने के लिए निम्नलिखित हेल्प लाइन नम्बर दिया है-1800 180 1314, इसका इस्तेमाल कर के हरियाणावासियों को ऐसे लोगों के खिलाफ शिकायत करनी चाहिए ताकि इन के गलत कार्यों पर रोक लग सके।

डॉ. विनय कुमार मल्होत्रा
(लेखक स्तंभकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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