प्रखर बुद्धि के धनी व युग दृष्टा थे आचार्य तुलसी

0
771
acharya tulsi
acharya tulsi

भारत भूमि युग पुरुषों की भूमि है। यहाँ प्रत्येक कालखंड में किसी न किसी ऐसे सनातन व्यक्तित्व ने जन्म लिया, जिसके बोध पाठ ने उस युग को सँवारा, अपनी शाश्वत उपस्थिति से समग्र मानवता का मार्गदर्शन किया और उनका अवबोध समग्र मानव जाति के लिए सनातन मार्गदर्शन बन गया।
विभिन्न युग पुरुषों की श्रृंखला में ऐसे ही एक युग पुरुष हुए हैं- आचार्य श्री तुलसी। वे परम आध्यात्मिक, मानवता के मसीहा, एक संपूर्ण विभूति थे। यदि कृष्ण की अनासक्ति, राम की मयार्दा, महावीर की मैत्री, बुद्ध की करुणा, कबीर का अंतर्दर्शन, सूफियों सा प्रेम, गाँधी के जनवादी दृष्टिकोण का समन्वित रूप में साक्षात्कार करना है तो आचार्य श्री तुलसी का जीवन और जीवन दर्शन उसका सम्यक समन्वित स्वरूप प्रस्तुत करता है। जैन तेरापंथ सम्प्रदाय में मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में दीक्षित तथा मात्र 22 वर्ष की उम्र में इस धर्मसंघ के नवम आचार्य के रूप में पद प्रतिष्ठित होकर आचार्य तुलसी संपूर्ण मानवता के प्रति आजीवन समर्पित रहे। एक सम्प्रदाय विशेष के धर्मगुरु तथा उसकी सभी साम्प्रदायिक जिम्मेदारियों, औपचारिकताओं, नियमों का पालन करते हुए भी सम्प्रदायातीत व्यक्तित्व एवं कृतित्व उनकी विशेषता थी।
विभिन्न युग पुरुषों की श्रृंखला में ऐसे ही एक युग पुरुष हुए हैं- आचार्य श्री तुलसी। वे परम आध्यात्मिक, मानवता के मसीहा, एक संपूर्ण विभूति थे। यदि कृष्ण, राम, महावीर, बुद्ध, कबीर और गाँधीजी के जनवादी दृष्टिकोण का साक्षात्कार करना है।  प्रखर बुद्धि के धनी, युग दृष्टा आचार्य तुलसी आचरण व व्यवहार को उतनी ही प्राथमिकता देते थे जितना कोई संत अध्यात्म को देता है। वे व्यावहारिक जीवन की कठिनाइयों को पहचानते थे अत: कभी अव्यावहारिक नहीं बने।
धर्म और व्यवहार को उन्होंने कभी एक तराजू में सम नहीं रखा। वे सदैव सचेत करते थे कि व्यवहार में धर्म सम्मत्तता ऊर्ध्वगामी बने यह प्रयोग होना चाहिए, किंतु सामान्य व्यवहार को धर्म मान लेना उन्हें अभीष्ट नहीं था।

SHARE