Will the Congress take a lesson from the election results? क्या चुनाव परिणामों से कांग्रेस सबक लेगी?

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एक इन्दिरा गाँधी थी वही जिनसे आरएसएस के चीफ और लाखो सन्घियो ने माफी मांगा था, वही जो दुनिया के 120 देशो की नेता थी नान एलायन मूवमेंट संगठन के कारण और फिर भी रुस सच्चा दोस्त था पर दुश्मन भी कोई नही था,वही जिन्होने 1974 मे परमाणु विस्फोट कर दुनिया को चौंकाया था और चौंकाया तो सिक्किम के विलय से ,पाकिस्तान के दो टुकडे कर नया देश बंगला देश बना कर और अमरीका की धमकी और सातवे बड़े को हुह कह कर परवाह ना करने के कारण।ऐसा बहुत कुछ है जो एक  किताब बन जायेगी।
उनके घर के बाहर सिर्फ एक सिपाही खड़ा होता था जैसा छोटे छोटे अफसरो के यहाँ भी होता है पर रोज सुबह 9 बजे उनका बाहरी दरवाजा खुल जाता था और जितने लोग मिलना चाहते थे सब अन्दर जाते थे बिना भय और लिहाज के और अंदर जाने के लिये नेता होना जरूरी नही था ,कांग्रेसी होना जरूरी नही था, मिलने का समय तय होना जरूरी नही था और किसी की पहचान भी जरूरी नही थी। इसलिए वो इन्दिरा गांधी थी पर आज की कांग्रेस डब्बे मे बंद। आज की कांग्रेस जिसे लगातार सबक मिल रहे है और हर सबक पर चर्चा होती है कि अब बदलेगा सब ,चिंतन और मंथन होता है,वही पुरानी घिसी पिटी सोच के लोगो की चिंतन मंथन कमेटियां बनती है और फिर वो अपने ढर्रे पर ही चलती है।
कांग्रेस मे जितने नाम वाले नेता है और जितने अनुभवी है उतने सब दलो मे मिलाकर भी नही है पर लम्बी सत्ता के कारण जहा अहंकार से ग्रस्त है वही जंग भी लग गई है और अपनी पूरी ऊर्जा तथा ज्ञान विरोधी को परास्त करने मे इस्तेमाल करने के बजाय पार्टी के अन्दर ही खर्च कर देते है। इधर कांग्रेस सिर्फ वहां जीतती है जहा कोई स्थानीय नेता बड़े कद का हो और जनता उसे अपना नेता समझती हो और वहां कांग्रेस तथा दूसरे दल की सीधी लडाई है तथा नेता अधिक समय प्रदेश के लोगो के बीच मे देता हो, शर्त ये भी है की वहा कोई तीसरी शक्ती खडी न हो रही हो क्योंकि तीसरी शक्ती को देखते ही कांग्रेस के नेता उससे अन्दर से हाथ मिला लेते है की उनकी सीट किसी तरह बच जाये और बदले मे वो तीसरी शक्ती की इच्छानुसार उसकी मदद करते है पार्टी की पीठ मे छुरा घोप कर और नेतृत्व को भी मजबूर करते है की तीसरी शक्ती से बना कर चलना फायदेमंद होगा। कांग्रेस गठबंधन धर्म मे भी अक्सर फेल हो जाती है। गोवा जैसे प्रदेशो मे सरकार गवा देना इसके नेताओ की अदूरदशीर्ता तथा अहंकार दशार्ता है तो कर्नाटक और मध्य प्रदेश की आई सरकार गवा देना अहंकार और अव्य्हारिक राजनीति की निशानी है। राजस्थान बाल बाल बच गया पर पाइलट की अभी भी उपेक्षा समझ से बाहर है।पंडीचेरी मे मात्र 16 विधायक भी सम्हाल कर न रख पाने वाला नेता तो नही हो सकता है।
ममता ही जब कांग्रेस मे थी तो नेतृत्व से मिलने को तरस जाती थी और बाहर जाकर सबको परास्त कर तीन बार सरकार बना उन्होने सिद्ध कर दिया की सचमुच की नेता वो थी जिनकी उपेक्षा हुयी जगन मोहन रेड्डी भी खुशी से नही बल्कि अपमानित होकर गये और सच्चे नेता साबित हुये।असम के शर्मा से लेकर लम्बी फेहरिश्त जो चक्कर काटते रहे की नेत्रत्व मिल कर बात सुन ले पर नही मिल पाये।
ममता जी ने एक बार किसी से दर्द बयान किया था तो ये भी कहा था की पहले जो लोग संमय माँगने पर कहते थे टॉक टू  जोर्ज , टॉक टू माधवन अब मिलने का इन्तजार करते है, क्या हम लोग चपरासीयो और बाबुओ के यहा हजिÞरी लगाने को नेता बने है।कांग्रेस मे चंद को छोड कोई ये दावा नही कर सकता की वो नेत्रत्व से जरूरत पर मिल सकता है या उसकी कोई जायज बात मानी जायेगी। एक काल्पनिक स्वरूप का शिकार है कांग्रेस की बिना परिवार के जिन्दा नही रहेगी और न जितेगी तो नरसिंहा राव के समय कैसे चली ? जगजीवन राम, बरुवा से लेकर शंकर दयाल शर्मा तक कैसे चली और जमीन पर शुन्य न शक्ल न आवाज उस सीताराम केसरी के समय भी शायद 116 सीट जीत गई थी दूसरी तरफ पूरा परिवार मिल कर भी अमेठी की अपनी ही सीट नही बचा पाया तो रायबरेली और अमेठी की अपनी नीचे की विधान सभा सीट नही जीता पाता।
सारे प्रचार के बावजूद सब जगह हार केवल वहाँ जीत जहा स्थानीय नेता मजबूत है और प्रदेश मे जुडा है।नेत्रत्व अपने खास लोगो को भी पार्टी मे रोक नही पाता है और अगर उसकी चलती तो पंजाब मे अमरेंद्र सिंह शायद बाहर होते और हरियाणा मे हुडा भी फिर इन प्रदेशो मे भी क्या होता। मान लीजिए किन्ही नेताओ ने सवाल खड़ा किया तो क्या उन 23 और और भी लोगो को 6 महीने पहले से इन प्रदेशो की जिम्मेदारी नही देनी चाहिए थी उल्टे चमचो से उन्हे पार्टी द्रोही सिद्ध करवाया गया।
क्यो परिवार ही नेतृत्व करे ? जाती धर्म और क्षेत्र इस देश की सच्चाई है और उन आकांक्षाओं पर खरा उतरने वाले लोग भी है क्यो उन लोगो को सबसे बड़ी जिम्मेदारी नही दी जा सकती? क्यो और भी लोग प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नही हो सकते और प्रतियोगिता के लिये भी नयी ऊर्जा, नयी समझ तथा नयी रणनीति के लिये क्यो बाहर के लोगो को नही लिया जा सकता ? क्यो सीट और जिलो के तथा प्रदेश के हिसाब से राजनीति और राजनीति के बाहर के लोगो को नही जोडा जा सकता है ,क्यो एक एक सीट एक एक जिला और एक एक ओर प्रदेश पर लगातार मंथन कर लोगो को जोड़ते कुन्बा बढ़ाते,रूठो को मना कर लाकर विस्तार नही किया जा सकता?
क्या पहले नही हुआ है पर पहले तो खुद को ही इकट्ठा रख सके।कांग्रस अब भी जीत सकती है पर इतिहास मे जीने और इस सम्भावना से बैठने से नही जीतेगी कि कभी तो सबसे निराश होकर जनता आयेगी।ऐसा नही होता वो जगह दूसरा सक्रिय और समझदार तथा व्यव्हारकुशल व्यक्ति भर देता है जैसा कई जगह हुआ। आज भी कांग्रेस पूरे देश की पार्टी है और खडी हो सकती है पर व्यवहारिक होना होगा, जीत के जज्बे से आक्रमक राजनीति करनी होगी, धर्मस्थलो के इवेंट के बजाय कांग्रेस की मूल प्रगतिशील सोच को उभारना होगा ,कल कारखानो और रोजगारपरक पीछे के कर्मो को आधार बना कर भविश्य के भारत की तस्वीर तय करनी होगी और भी बहुत कुछ।अगर कांग्रेस को जिन्दा रहना है बल्कि तो पूरी तरह बदलना होगा।

डॉ. सीपी राय (लेखक स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक और पूर्व मंत्री  हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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