Will the cleanness of the Ganges be inaccessible? गंगा की निर्मलता क्या आचमन योग्य रहेगी?

0
281

गंगा सफाई के नाम पर परियोजनाएं करोड़ों की तैयार होती हैं, लेकिन समय के साथ संबंधित फाइलें भी धूल फांकने लगती हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बाद अब इस ओर भारत के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान गंगा उद्धार की ओर गया है। लेकिन नमामि गंगे योजना भी जिस गंगा को साफ नहीं कर पाई, उसे कोरोना काल में लॉकडाउन ने कर दिया। अब देखना है कि यह मिशन कितना कामयाब होता है। क्या गंगा की अविरलता बनी रहेंगी या फिर गंगा मैली हो जाएंगी। गंगा सफाई के लिए 2,000 करोड़ की व्यवस्था की  गंगे नमामि में की गई थी। इलाहाबाद से हल्दिया तक जलमार्ग विकसित कर माल ढुलाई की भी योजना थी।
उत्तर भारत के लिए गंगा जलदायिनी ही नहीं, जीवनदायिनी भी हैं। उत्तर भारत के विशाल मैदानी भू-भाग के 40 करोड़ लोगों के सरोकार सीधे गंगा से जुड़े हैं। गंगा का महत्व मानव जीवन से अधिक जलीय जंतुओं के लिए भी है। 2007 में जारी संयुक्त राष्ट्र संघ की वैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया था कि बदले पर्यावरण के चलते 2030 में हिमालयी हिमनद जिसे हम ग्लेशियर कहते हैं, खत्म हो जाएंगे और गंगा सूख जाएगी। गंगा नदी जड़ी-बूटियों और मानव जीवन को संरक्षित करती है। पर्यटन और आस्था से जुड़ी होने के नाते लाखों लोगों की आजीविका का साधन और साध्य भी गंगा है, लेकिन बढ़ती आबादी और अंतरविरोधी विकास ने गंगा के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। गंगा सिमट रही हैं। गंगा गोमुख यानी उत्तराखंड से निकल कर बंग्लादेश तक का सफर तय करती हैं। भौगोलिक आंकड़ों में समझे तो गंगा की लंबाई 2510 किमी है। 2071 किमी भारत की सीमा में और बाकी हिस्सा बंग्लादेश में आता है। यह 100 मीटर गहरी हैं। 3,50196 वर्ग मील के विस्तृत भू-भग पर गंगा फैली हैं।
गंगा के उद्गम स्थल की ऊंचाई 3140 मीटर है। इसकी गोद में सुंदरवन जैसा डेल्टा है। कृषि के लिए लंबा भू-भाग उपलब्ध कराया है, लेकिन बढ़ती आबादी और प्रदूषण के चलते पर्यावरण का असंतुलन भी खड़ा हो गया है। जिससे गंगा का पानी अब आचमन करने योग्य भी नहीं रहा। वैज्ञानिक भविष्यवाणियों को माने तो गंगा का अस्तित्व खतरे में है। पर्यावरण असंतुलन और तापमान में वृद्धि के चलते ग्लेशियर अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। 2007 में जारी संयुक्त राष्ट्र संघ की वैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया था कि बदले पर्यावरण के चलते 2030 में हिमालयी हिमनद जिसे हम ग्लेशियर कहते हैं, खत्म हो जाएंगे और गंगा सूख जाएगी।  गंगा में प्रतिदिन 2 लाख 90 हजार लीटर कचरा गिरता है। जिससे एक दर्जन बीमारियां पैदा होती हैं। सबसे अधिक कैंसर जैसा खतरनाक रोग भी पैदा होता है। गंगा के किनारे खड़े होकर इसकी दुर्दशा को देखा जा सकता है। गंगा का निर्मलीकरण अभियान तभी सफल होगा, जब इससे सीधे लोगों को जोड़ा जाएगा। इस अभियान को पूरा आंदोलन बनाना होगा। लोगों को यह बताना होगा कि गंगा मानव जीवन के लिए कितनी उपयोगी हैं। इनका अस्तित्व में रहना हमारे लिए अपने अस्तित्व बचे रहने जैसा होगा।
गंगा में प्रतिदिन 2 लाख 90 हजार लीटर कचरा गिरता है। जिससे एक दर्जन बीमारियां पैदा होती हैं। सबसे अधिक कैंसर जैसा खतरनाक रोग भी पैदा होता है। कैंसर के सबसे अधिक मरीज गंगा के बेल्ट से संबंधित हैं। इसके अलावा दूसरी जलजनित बीमारियां हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार गंगा में हर रोज 260 मिलियन लीटर रासायनिक कचरा गिराया जाता है, जिसका सीधा संबंध औद्योगिक इकाइयों और रासायनिक कंपनियों से हैं। इस अभियान में सबसे बड़ी बाधा होगी गंगा में गिरने वाले शहरी और औद्योगिक कचरे को रोकना। यह समस्या हमारी सरकार और वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती है।  गंगा के किनारे परमाणु संयत्र, रासायनिक कारखाने और शुगर मिलों के साथ-साथ छोटे-बड़े कुटीर और दूसरे उद्योग शामिल हैं। कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा को आंचल करने में सबसे अधिक भूमिका निभाता है। वहीं शुगर मिलों का स्क्रैप इसके लिए और अधिक खतरा बनता जा रहा है। गंगा में गिराए जाने वाले शहरी कचरे का हिस्सा 80 फीसदी होता है। जबकि 15 प्रतिशत औद्योगिक कचरे की भागीदारी होती है। गंगा के किनारे 150 से अधिक बड़े औद्योगिक इकाइयां स्थापित हैं।  वैसे आम बजट में गंगा सफाई के लिए 2,000 करोड़ की व्यवस्था की गई है। गंगे नमामि नाम से इस अभियान को चलाया जाएगा। इसके साथ ही इलाहाबाद से हल्दिया तक जलमार्ग विकसित कर माल ढुलाई भी की जाएगी। इससे जहां सस्ते और त्वरित परिवहन की सुविधा उपलब्ध होगी। वहीं पटना, वाराणसी, इलाहाबाद समेत दूसरे छोटे नगरों में जलपोत बना कर व्यवसाय किया जा सकता हैं।  गंगा सफाई अभियान की सफलता के लिए सबसे पहला और प्रभावी कदम शहरी और औद्योगिक कचरे को गंगा में गिरने से रोकना होगा।
इसके लिए कानपुर, वाराणसी, पटना और दूसरे शहरों के नालों के पानी के लिए जल संशोधन संस्थानों की स्थापना करनी होगी। कचरे का रूप परिवर्तित कर उसके उपयोग के लिए दूसरा जरिया निकालना होगा।  राजीव गांधी की मंशा गंगा को पूरी तरफ साफ-सुथरा करना था, लेकिन नौकरशाही की अनिच्छा और उदासीनता के चलते यह योजना अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकी। 1985 में राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान की शुरूआत की थी।  पहले चरण में 25 शहरों में 261 परियोजनाओं को संचालित किया गया था। इसकी शुरूआत 2001 में की गई थी। जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के शहर शामिल थे। इस योजना पर 452 करोड़ रुपए खर्च हुए। दूसरा चरण 2010 में चलाया गया। इसमें 319 परियोजनाएं संचालित की गई। गंगा सफाई अभियान पर 2000 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन गंगा का मैला आंचल साफ सुथरा नहीं हो सका है। इसके पीछे जहां सरकारी उदासीनता रहीं, वहीं इस अभियान को राजनीति से जोड़कर भी लाभ लेने की कोशिश की गई, जिससे यह अभियान सफल नहीं हो सका। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया। उसी समय इलाहाबाद और हल्दिया के मध्य राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया। मार्ग 1600 किमी लंबा है। इसी जलमार्ग पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मालवाहक जलपोत चलाने की घोषणा की है, लेकिन इसके लिए गंगा का सतत वाहिनी और गहरी होना जरूरी होगा। गंगा की खुदाई अपने आप में लंबी प्रक्रिया होगी। गर्मी में गंगा में कितना पानी रहता है, यह बताने की जरूरत नहीं है। गंगा निर्मलीकरण को एक सतत आंदोलन बनाना होगा। हर व्यक्ति जब तक अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूक नहीं होगा तब तक गंगे नमामि और गंगा एक्शन प्लान जैसी परियोजनाएं सफल नहीं हो सकती हैं। दिल्ली में जब से मोदी सरकार अस्तित्व में आई तभी से संत समाज की ओर से गंगा सफाई चर्चा में थी। लेकिन कोरोना  काल में गंगा बगैर किसी प्रयास के साफ हो गई। गंगा जल आचमन योग्य हो गया। लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद गंगा निर्मल रह पाएंगी। अपने आप में यह बड़ा सवाल है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

SHARE