Will the battle of Rajasthan be the turning point of the country’s politics?: राजस्थान की लड़ाई क्या देश की राजनीति का टर्निग प्वाइंट होगी

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नई दिल्ली।राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गांधी गिरी दिखा ऐसी  लड़ाई जीती है जिसका दूरगामी असर देश की राजनीति पर पड़ सकता है।हालांकि अभी उनकी लड़ाई का अंत नही हुआ है,लेकिन विधानसभा सत्र आहुत करने के गतिरोध का टूटना भी बड़ी जीत मानी जा रही है।वह भी ऐसे समय मे जब केंद्र की बीजेपी की सरकार से कोई लोहा लेने की नही सोचता है।मुख्यमंत्री गहलोत ने गुरुवार को बड़ी बात कही कि अगर मीडिया साथ दे तो राजस्थान देश की राजनीति का टर्निंग प्वाइंट बन सकता है।एक तरह से उनका इशारा यही था कि कांग्रेस को राजस्थान ही ऐसी ताकत देगा कि जो देश के आने वाले चुनाव में  बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सके।इसमें कोई सन्देह नही है कि आज कांग्रेस जिस हालत में है उसे एक ऐसे डोज की तलाश है जो उसे खड़ा कर सके।गहलोत इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।उनके बयान का राजनीति के जानकारों ने मतलब निकलना शुरू कर दिया है। गहलोत आज बहुत रिलेक्स मूड में दिखे ओर उनका रुख भी पूरी तरह से बदला हुआ था।वह और दिनों की तरह हमलावर नही थे।उन्होंने हमला बोला लेकिन संयमित हो कर।उनके निशाने पर आज बीजेपी और उसका केंद्रीय नेतृत्व ही था।केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का उन्होंने नाम नही लिया लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनके बचाव का आरोप लगाया।खरीद फरोख्त पर भी वह बीजेपी पर हमलावर थे।बसपा नेत्री मायावती पर भी बीजेपी के दबाव में राजनीति करने का आरोप लगाया।
  पिछले दो दिन की राजस्थान की राजनीति में सबसे बड़ा बदलाव सचिन पायलट की तरफ से देखने को मिला।हालांकि गहलोत ने विधायको की एक बैठक में कहा था कि उनके विधायक जो मानेसर में वह आलाकमान से माफी मांग वापस आ सकते हैं।उनके इस बयान का पहला बड़ा असर गत बुधवार को देखने को मिला।जब नए प्रदेश अध्य्क्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कार्यभार संभाला तो सचिन पायलट ने तुरंत ट्वीट कर उन्हें बधाई दी।बदले में डोटासरा ने भी सचिन का धन्यवाद जताया और उम्मीद जताई कि जयपुर कांग्रेस के साथ आ कर खड़े होंगे।इसके बाद से ही अटकलों का बाजार गर्म हो गया।आज मुख्यमंत्री ने नाम लिये बिना फिर दोहराया कि उनके विधयकों को कोई शिकायत है तो वह दिल्ली एआईसीसी जा कर अपनी बात रख सकते हैं।उन्हें वापस आना चाहिये।इन बयानों के बाद यह माना जा रहा है कि बागी विधयक वापसी कर सकते हैं।सचिन पायलट भी खुद कहते आये हैं वह कांग्रेस नही छोड़ेंगे।ना ही वह सामने आ रहे हैं।समझा जा रहा है कि वह वापसी कर सकते हैं। जानकारों का भी मानना है कि सचिन ओर बागी विधायकों के लिए वापसी ही अब एक रास्ता बचा है।जिस योजना के तहत वे बागी हुए थे वह अब होता नही दिख रहा है।न सचिन मुख्यमंत्री बन रहे हैं और ना ही बीजीपी अब सरकार को अस्थिर करने में दिलचस्पी दिखा रही है।ऐसे में अगर पार्टी के खिलाफ जाएंगे तो सदस्यता जाना तय है।फिर चुनाव लड़ वापसी की गारंटी नही है।सूत्रों की माने तो कांग्रेस की भी एक रणनीति यही है कि 14 अगस्त से पूर्व बागियों की वापसी कराई जाए।
 इस बीच गहलोत के सामने अपने विधायको को भी एक जुट रखने की चुनोती है।इसलिये वह बराबर विधायको के सम्पर्क में बने रहते है।मंत्रियों को उन्होंने सचिवालय ओर कार्यलय में बैठने के निर्देश दे दिए है।गहलोत ने पहले दिन आक्रमक तेवर अपनाने के बाद गांधी गिरी का रास्ता अपना लिया था।गहलोत को राजस्थान का गांधी माना जाता है।उन्होंने पहले दिन रणनीति के तहत आक्रमक रुख अपनाया।बाद में उन्होंने ठकराव की रणनीति छोड़ राज्यपाल से संवाद बनाये रखा।गहलोत की इस रणनीति से आलाकमान भी खुश है।राजस्थान के राजनीतिक घटनाक्रम में यूपीए के सभी दल एक जुट हो गए थे। सूत्रों का कहना है कि राकांपा नेता शरद पंवार के सुझाव पर ही कांग्रेस ने दिल्ली की आगे की रणनीति तैयार कर ली थी।ऐसा माना जा रहा कि राजस्थान संकट के पूरी तरह समाप्त होने के बाद कांग्रेस फिर बड़े राष्ट्रव्यापी आंदोलन की रणनीति बना सकती है।समाप्त
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