Will help in strengthening the capacity of the economy: अर्थव्यवस्था की क्षमता को फिर से मज़बूत बनाने में मिलेगी मदद

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अगर संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने की प्रबल क्षमता हो तो बड़े पैमाने पर निर्माण और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को जारी रखने की स्थिति को भी बल मिलता है।

24 मार्च, 2020 को संक्रमण, रोकथाम, नियंत्रण और बीमारी के इलाज के तरीके के बारे में बहुत कम जानकारी के साथ, भारत ने 21 दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की, जो कई चरणों में समाप्त होने से पहले अंततः 31 मई, 2020 तक जारी रहा। इस लॉकडाउन की कीमत भले ही बहुत अधिक थी लेकिन यह जरूरी था। लेकिन जब हमने इस दौरान वायरस और उसके संक्रमण के तौर-तरीकों के बारे में काफी कुछ सीखा, तो उससे यह स्‍पष्‍ट हो गया कि संक्रमण को फैलने से रोकने में सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही लॉकडाउन लागू करना समान रूप से कारगर साबित हो सकता था। यही नहीं, देशव्यापी लॉकडाउन की तुलना में आर्थिक गतिविधियों और लोगों की आजीविका पर इसका बहुत कम प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता।

पहली लहर के अंत तक यह साफ हो गया था कि इस विशाल और विविधता वाले देश में, विभिन्न राज्य महामारी को लेकर उनकी तैयारी की स्थिति और जीवन एवं आजीविका के बीच संतुलन के मामले में अलग-अलग चरणों में थे। वायरस से निपटने के लिए राज्यों के लिए अपनी स्थानीय रणनीतियों को निर्धारित करने का एक विकल्प था परन्तु अप्रभावित जिलों में स्थित उद्यमों को बंद करने के लिए मजबूर करना सही नहीं था।

वाणिज्यिक बैंकों से गैर-खाद्य ऋण में 5 प्रतिशत से कम की वृद्धि की तुलना में बैंक जमाराशि की दो अंकों की वृद्धि कमजोर मांग को दर्शाती है। उद्योग में अभी भी 70 प्रतिशत से कम क्षमता का उपयोग किया जा रहा है जो कि निवेश के चक्र को दोबारा से मजबूत करने के लिए आवश्यक 80 प्रतिशत की उत्पादन क्षमता की सीमा रेखा से काफी कम है। नकद हस्तांतरण से विकास को बल मिलता है, जो अभी पर्याप्त और दीर्घकालिक नहीं है। यह फिलहाल अल्पकालिक ही होंगे, भारत को स्थायी लाभ दिए बिना उच्च सामान्य सरकारी ऋण की स्थिति बनी रहेगी।

इस स्थिति में सुधार के लिए भारत ने राजकोषीय विस्तार का रास्ता छोड़ते हुए अपेक्षाकृत कई गुणा उच्च आर्थिक प्रभाव और रोजगार सृजन क्षमता वाले क्षेत्रों पर व्यय के माध्यम से अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने का विकल्प चुना, जो भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाएगा।

अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में निवेश की प्रति इकाई पर किए गए खर्च से सृजित होने वाले रोजगार की तुलना में बुनियादी ढांचे और रियल एस्टेट के निर्माण के जरिए लगभग पांच गुना अधिक रोजगार का सृजन होता है। इन क्षेत्रों के सबसे बड़े उद्यमों में अपने कार्यबलों के बीच संक्रमण के प्रसार को कम करने की भी क्षमता है। विनिर्माण और सेवाओं में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता और आजीविका सृजन में सुधार के द्वारा आर्थिक विकास के समर्थन करने के लिए, शहरी क्षेत्रों के कायाकल्प और विकास सहित देश में बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक में निवेश में तेजी लाने के साथ-साथ स्टॉक निर्माण की सलाह भी लाभप्रद होगी।

यह तर्क देना गलत है कि निर्माण या बुनियादी ढांचे के संसाधनों का वैकल्पिक रूप से अस्पतालों में निवेश किया जा सकता है। भारत को निश्चित रूप से अधिक और बेहतर अस्पतालों की आवश्यकता है। लेकिन इन परिव्ययों का उपयोग स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की आवश्यक संख्या को बढ़ाने की अत्यंत धीमी गति के साथ ही किया जा सकता है। यह ध्यान देने योग्य है कि सरकार ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर विशेष रूप से ध्यान दिया है, पिछले वर्ष की तुलना में स्वास्थ्य और देखभाल के लिए कुल परिव्यय में 135 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की गई है। 2014 के बाद से, एम्स परिसरों की संख्या 267 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ छह से 22 हो गई है, मेडिकल कॉलेज 48 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 381 से बढ़कर 565 हो गए हैं, स्नातक सीटों की संख्या में 58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और यह 54,348 से बढ़कर 85,726 हो गई हैं और स्नातकोत्तर सीटों की संख्या 80 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 30,191 से बढ़कर 54,275 हो गई हैं। देश में स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या को बढ़ाने की गति भी इतिहास में अभूतपूर्व है।

यह तर्क भी गलत है कि निर्माण या बुनियादी ढांचे पर होनेवाला खर्च ऑक्सीजन, दवाओं या टीकाकरण की व्यवस्था को प्रभावित करता है। खर्च न हो पाने वाले आवंटन विभिन्न स्तरों पर आपूर्ति, समन्वय और निष्पादन समेत विविध किस्म की बाधाओं को दर्शाते हैं।

उदाहरण के तौर पर, पिछले अक्टूबर में, केन्द्र ने विभिन्न राज्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए 162 ऑक्सीजन संयंत्रों की आपूर्ति वर्ष 2020 में करने का आदेश दिया। हालांकि, तब दैनिक संक्रमण में पहले से ही कमी आ रही थी। अप्रैल के मध्य तक मात्र 33 संयंत्र ही स्थापित किए गए। लेकिन शुरुआती आदेश पिछले महीने की तुलना में तिगुने से अधिक थे। स्पष्ट है कि वित्तीय संसाधनों के अलावा कई और बाधाएं हैं। यहां एक बार फिर से इस तथ्य पर जोर देना जरूरी है कि इस महामारी का मुकाबला करने के उपायों को किसी भी समय जरा सी भी वित्तीय समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा है।

 

इसलिए यह दावा कि नई दिल्ली के सेंट्रल विस्टा का पुनर्विकास एक महत्वकांक्षी परियोजना के लिए स्वास्थ्य सेवाओं और प्रदूषण जैसी महत्वपूर्ण समस्याओं के समाधान में लगने वाले संसाधनों को छीनने जैसा है, बिल्कुल ही अनुपयुक्त और वास्तव में गलत नीयत से प्रेरित है। दिल्ली में शहरी क्षेत्रों के पुनर्विकास की परियोजनाओं की शुरुआत इस महामारी के उभरने से काफी पहले ही हो गई थी। इन परियोजनाओं को बीच में ही धीमा करना या उन्हें पूरी तरह से रोकना इस अर्थव्यवस्था, खासकर उस समय जब इसे रोजगार की जरूरत है और इन सार्वजनिक खर्चों से उत्पन्न हुई मांग के साथ वास्तव में एक मजाक होगा। यह उस संदर्भ में विशेष रूप से सच है जब इन परियोजनाओं की प्रभारी प्रतिष्ठित कंपनियों ने संक्रमण के प्रसार को कम से कम रखने की अपनी क्षमता को प्रदर्शित किया है।

केन्द्रीय मंत्रालयों और विभागों को एक ही स्थान पर एकत्रित किये जाने से निश्चित रूप से वर्तमान में असमान रूप से फैले केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की कार्यकुशलता और उनके बीच का आपसी तालमेल बेहतर होगा। इन कार्यालयों को आधुनिक साझा परिवहन व्यवस्था के जरिए बेहतर ढंग से जोड़ने से समय की बचत होगी, सड़क पर भीड़भाड़ कम होगी और प्रदूषण में कमी आएगी। आज इन भवनों में जाने वाले लोग यह जानते हैं कि इन इमारतों की जीवन-क्षमता काफी पहले समाप्त हो चुकी है। खासकर ऊर्जा दक्षता और श्रम-दक्षता की दृष्टि से डिजाइन किए गए कार्यस्थलों की जरूरत को ध्यान में रखने पर यह तथ्य और भी स्पष्ट होता है। इन कार्यालय के भवनों में से अधिकांश पिछले कुछ वर्षों में लगातार रेट्रोफिटिंग और एक्सटेंशन के पैचवर्क बनकर रह गए हैं।

पूरी सरकार का ध्यान संक्रमणों के दोबारा उभार की गति को धीमा करने और उनसे उपजे नतीजों से निपटने के प्रयासों की ओर लगा हुआ है। इसके साथ ही, भारत में बुनियादी ढांचे और निर्माण परियोजनाओं को समय पर पूरा करने से भारत की पूंजी की लागत में कमी आएगी, पूंजी के दोबारा उपयोग की गति तेज होगी, और हमारी अर्थव्यवस्था के विकास एवं रोजगार सृजन की गति में तेजी आएगी। संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए उचित उपायों को जारी रखने के साथ-साथ बुनियादी ढांचे से जुड़ी और बड़ी निर्माण परियोजनाओं को जारी रखने से हमारी अर्थव्यवस्था को पहले वाली सेहतमंद स्थिति में पहुंचाने में मदद मिलेगी

राजीव कुमार

उपाध्यक्ष, नीति आयोग

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