When will the fire of death be extinguished in Delhi?: दिल्ली में कब बुझेगी मौत की आग?

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देश में केवल सरकारें बदलती हैं व्यवस्था नहीं बदलती और न इसकी कोशिश की जाती है। हमारे लिए इंसानों की कीमत कोई मतलब नहीं रखती है। मानव हमारी सामाजिक व्यवस्था की पूंजी है। लेकिन इसके हिफाजत और सुरक्षा के लिए हमने कोई तंत्र विकसित नहीं किया है। दुनिया भर में हम लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे अव्वल उदाहरण हैं। लेकिन आज तक हम कामगारों के लिए सुरक्षित महौल नहीं उपलब्ध करा पाए। दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में अग्निकांड की अनगिनत घटनाओं के बाद भी हमने सबक नहीं लिया। जिसका नतीजा है कि हम आए दिन बेगुनाह लोगों की लाशें गिनते हैं और चुनावी राजनीति करते हैं। करोड़ों रुपए मुआवजे में बहाकर सरकारें सवेंदना की घड़ियाली आंसू बहाते हैं। लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है। दिल्ली के फिल्मीस्तान यानी अनाजमंडी इलाके में हुआ अग्निकांड हमारे सड़े-गले सिस्टम का सबसे घटिया उदाहरण है। प्लास्टिक बैग और खिलौने बनाने वाली फैक्टी में शार्ट- सर्किट से लगी आग से 43 बेगुनाह लोगों को मौत की नींद सुला दिया। हादसे में दो दमकलकर्मियों के साथ 17 लोग घायल हुए हैं। अधिकांश लोगों की मौत दमघुटने से हुई । फैक्ट्री की सभी खिड़कियां बंद थी। लोग चाह कर भी बाहर नहीं निकल पाए। जहरीले धुंए की वजह से दम निकल गया।
फैक्ट्री में मजदूरों को कहीं से भी बाहर निकले का जरिया नहीं था। फैक्टी बेहद सकरी गली में थी। राहत एंव बचाव के दौरान अग्निशमन दल के कर्मचारियों को वहां पहुंचने में बेहद मुश्किल हुई। क्योंकि जिस जगह यह फैक्ट्री है वहां का रास्ता बेहद सकरा है। अग्नि की भयावहता का अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि 30 दमकल की गाड़ियों ने किसी तरह आग पर काबू पाया। चार मंजिल की फैक्ट्र को आग ने ऐसा निगला जिसकी किसी कल्पना तक नहीं की थी। लोग बचाओ-बचाओ चिल्लाते रहे, लेकिन कोई कुछ भी नहीं कर पाया। दिल्ली में हुए इस हादसे का जिम्मेदार कौन है। 22 साल पूर्व 1997 में उपहार सिनेमा कांड के बाद भी सबक क्यों नहीं लिया गया। इस हादसे में तकरीबन 59 लोगों की मौत हुई थी। आसपास के लोगों की शिकायत के बाद भी पुलिस और जिम्मेदार संस्थाओं ने कदम नहीं उठाया। हादसे के बाद घड़ियाली आंसू बहाना और मुआवजों की बरसात करना राजनैतिक दलों और सरकारों का चलन सा बनता जा रहा है। लेकिन समस्याएं नहीं सुलझ रही हैं। सकरी गलियों में अवैध तरीके से चल रहे कारखानों की स्थानीय लोग कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन सरकारों और प्रशासन पर जूं रेंगती नहीं दिखती है। इस घटना के बाद भी सबक नहीं लिया गया। दिल्ली में गैर कानूनी तरीके से अनगिनत फैक्ट्रियां चल रही हैं, लेकिन किसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की गयी है। जबकि बेगुनाह कामगारों की मौत की वजह यही फैक्ट्रियां हैं। इस घटना के बाद भी कुछ लोगों ने पुलिस से शिकायत की थी तो दूसरे मोहल्ले में चलने वाली फैक्ट्रियों के संचालकों ने लोगों से मारपीट भी की। फिर दिल्ली कैसे सुधरेगी। कभी पटाखे, कभी होटल तो कभी स्कूल और कंपनियों में आग लगने की घटनाएं आम हैं जबकि सुरक्षा के पुख्ता इंतजात नहीं हैं।
दिल्ली हो या देश का दूसरा हिस्सा हमने हादसों से सबक नहीं लिया। हम इंतजार करते हैं कि हादसे हों और उस पर राजनीति की जाय। राजनीति, राजनेता और सरकारें एक दूसरे पर कीचड़ उछाल लाशों पर सियासत चमकाती हैं। जब मौसम चुनावी हो तो यह मसला और अहम हो जाता है। इससे पूर्व अगर ऐसी अव्यवस्था पर गौर किया जाता तो इस तरह के हादसे नहीं होते। हादसा इतना भयानक था कि लोग अपनी जान बचाने के लिए चिल्लाते रहे। घरवालों और दोस्तों को फोन कर मौत की अंतिम सांस की दास्तां सुनाते-सुनाते मौत के आगोश में चले गए। परिजन घटना स्थल पर पहुंचने के बाद भी कोई मदद नहीं कर पाए। अस्पतालों के साथ लाशों के ढेर से लोग अपनों को खोजते रहें। फैक्ट्री में अग्निशमन विभाग से एनओसी तक नहीं ली गई थी। दिल्ली की इस अनाजमंडी में जिस जगह यह चार मंजिला फैक्ट्री स्थाापित थी वहां का रास्ता बेहद सकरा था। अग्निशमन विभाग की गाड़ियां भी नहीं पहुंच पा रही थीं। बेहद घनी आबादी के साथ बिजली के तारों से यह इलाका गूंथा है। गैर कानूनी तरीके से चल रही इस फैक्ट्री को बंद कराने के लिए दिल्ली सरकार और एमसीडी ने कारगर कदम नहीं उठाए। अब हादसे के बाद केंद्र और दिल्ली सरकारों ने एक दूसरे पर कीचड़ उछाल कर चुनावी जमीन तैयार करने में जुट गई हैं। लेकिन सड़ेगले सिस्टम की वजह से उन बेगुनाहों का भला क्या दोष जो बेमतलब मारे गए।
दिल्ली पुलिस ने फैक्ट्री के मैनेजर और मकान मालिक को गिरफ्तार किया है। इससे अधिक और कर भी क्या सकती है। अगर यही गिरफ्तारी पहले हो जाती और समय रहते इतनी घनी आबादी में गैर कानूनी और नियमों को ताख पर रख चल रही फैक्ट्री को बंद करा दिया जाता तो 43 बेगुनाह लोगों की जान बचायी जा सकती थी। मौत का यह आंकड़ा अभी बढ़ सकता है। जिस जगह यह हादसा हुआ वहां दो दिन कुछ दिन पूर्व एक अग्निकांड हादसा हुआ था लेकिन कोई सबक नहीं लिया गया। दिल्ली में कुछ माह पहले एक होटल में आग लगने से कई लोगों की जान चली गई थी। इसी साल मई में सूरत हादसे से भी सबक नहीं लिया गया। प्रधानमंत्री मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हादसे पर संवेदना जतायी है। लेकिन इस संवेदना से क्या होने वाला है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने मृतकों के परिवारवालों को 10-10 लाख और घायलों को एक लाख देगी। जबकि केंद्र सरकार दो-दो लाख के साथ घायलों को भी पैसा देगी। दिल्ली भाजपा मृतकों को पांच-पांच लाख और घायलों को 25-25 हजार रुपए देगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार राज्य के संबंधित मृतक के करीबियों को दो-दो लाख की आर्थिक मदद की घोषणा की है। अच्छी बात है, राजनैतिक दलों और सरकारों की यह संवेदना काबिले गौर है। लेकिन अगर वक्त रहते ऐसे अवैध कारखानों को बंद करा दिया जाता तो बेगुनाह लोग मरने से बच जाते। उनके परिवारों के सपने नहीं उजड़ते। करोड़ों रुपए आर्थिक मदद में बेमतलब नहीं बहाये जाते। बदले में इस पैसे से दिल्ली का विकास कर लोगों को दूसरी सहूलियतें दिलाई जा सकती थीं, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्योंकि दिल्ली में चुनावों का मौसम हैं लिहाजा ऐसी मौतों पर दंगल स्वाभाविक है। लेकिन आम आदमी का यहीं सवाल है कि क्या देश की राजधानी और दूसरे महानगर मौत के कब्रगाह कब तक बनते रहेंगे। हम ऐसे हादसों से मुक्ति कब पाएंगे। हमें शहर की घनी आबादी में चलने वाली इस तरह की वैध और अवैध सभी फैक्टीयों को बंद करना चाहिए। कम से कम इस हादसे से तो सरकारों को सबक लेना चाहिए। लेकिन दिल्ली में चुनाव है, फिलहाल ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। इसकी कोई उम्मीद भी नहीं दिखती है। जब तक सिस्टम नहीं सुधरेगा। हम लाशों को यूं ही गिनते रहेंगे और बेगुनाह लोग मरते रहेंगे। यह चेतने का वक्त है, महानगरों को इस तरह के हादसों से बचाना होगा। वरना लापरवाह सिस्टम की भट्ठी में इंसान झुलसता रहेगा।
प्रभुनाथ शुक्ल
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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