महेंद्रगढ़ : हकेवि में आपदा मनो-सामाजिक संरक्षण विषय पर वेबिनार आयोजित

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नीरज कौशिक, महेंद्रगढ़ :
हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ में मंगलवार को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम), रोहिणी के सहयोग से आपदा मनो-सामाजिक संरक्षण विषय पर एक दिवसीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इस आयोजन में विशेषज्ञ वक्ता के रूप में राष्ट्रीय आपदा-प्रबंधन संस्थान शेखर चतुवेर्दी, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के विक्रम गुर्जर, और हकेवि की प्रो. सारिका शर्मा ने सम्बोधित किया।
विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग व एनआईडीएम के सहयोग से आयोजित वेबिनार की शुरूआत विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुई और इसके पश्चात मौलिक विज्ञान पीठ के अधिष्ठाता डा. विनोद कुमार ने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ का संदेश प्रस्तुत करते हुए विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला और बताया कि प्राकृतिक आपदा हो या फिर मानव द्वारा उपस्थित आपदा दोनों से निपटने के लिए आवश्यक है कि मानव समाज को मनोवैज्ञानिक व सामाजिक मोर्चे पर सबल व सुदृढ़ बनाया जाए। डा. विनोद ने कुलपति महोदय की ओर से सभी विशेषज्ञों का स्वागत किया और कहा कि अवश्य ही इस वेबिनार के माध्यम से प्रतिभागियों को आपदा प्रबंधन से जुड़े महत्त्वपूर्ण पक्षों को व्यावहारिक रूप से जानने समझने में मदद मिलेगी। इससे पूर्व आयोजन के संबंध में भूगोल विभाग के प्रभारी डा. मनीष कुमार ने बताया कि इस वेबिनार का आयोजन विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव अभियान की श्रृंखला के अंतर्गत किया गया है।
एनडीआरएफ के डिप्टी कमांडेंट विक्रम गुर्जर ने भारत में आपदा मनो-सामाजिक संरक्षण-मुद्दे एवं चुनौतियां विषय पर अपने विचार व्यक्त किए और विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से विषय पर प्रकाश डाला। इसी क्रम में एनआईडीएम के सहायक आचार्य शेखर चतुवेर्दी ने कोरोना काल में तनाव प्रबंधन में युवाओं की भूमिका विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि यह समय किस तरह से हर आयु वर्ग के लिए मुश्किल भरा रहा है और इस समय में एकाकीपन ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है। प्रो. सारिका शर्मा ने अपने सम्बोधन में आपदा मनो-सामाजिक संरक्षण तकनीक विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने आपदा के समय में मानसिक व सामाजिक मोर्चे पर आवश्यक प्रबंधन व उससे जुड़े महत्त्वपूर्ण व्यावहारिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। वेबिनार के अंत में प्रश्नोत्तर काल का भी आयोजन किया गया।

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