Utterkatha: Opposition to cow-farmer hurts Yogi government: उत्तरकथा : गाय-किसान से विपक्ष ने किया योगी सरकार को हलकान

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यूपी में अरसे से सुस्त पस्त पड़ा विपक्ष इन दिनों सड़कें गरमा रहा है। देश व्यापी किसान आंदोलन की आंच सूबे में खासी महसूस की जा रही है तो योगी सरकार के ट्रंप कार्ड गौरक्षा को प्रियंका गांधी ने उन्ही के खिलाफ बड़ा हथियार बना लिया है। आए दिन अपने गुरिल्ला हमलों से सरकार के लिए मुसीबतें खड़ी करती रहीं प्रियंका गांधी ने इस बार गाय को मुद्दा बनाया है जो योगी सरकार की दुखती रग है। सरकारी गौशालाओं में हो रही गायों की मौत कांग्रेस के आंदोलन का मुद्दा है और हर रोज बुंदेलखंड के जिले जिले से कांग्रेस गौ अस्थियों के साथ यात्रा निकाल गिरफ्तार हो रहे हैं। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने किसानों के मुद्दे पर प्रदेश भर में आंदोलन छेड़ रखा है। सपा का आंदोलन भी जिलेवार हो रहा है और अब तक सैकड़ों कार्यकर्त्ता व नेता गिरफ्तारी दे चुके हैं। 
गौरक्षा आंदोलन की शुरुआत कांग्रेस के अध्यक्ष अजय लल्लू की गिरफ्तारी से हुयी और ये लगातार जारी है। कांग्रेस महासचिव और यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी किसी भी समय इस अभियान में शामिल हो सकती है। इस मुद्दे पर प्रियंका गांधी पहले और लगातार ट्वीट कर चुकी हैं। कांग्रेस का कहना है कि गौ हत्या पर प्रतिबंध से यूपी में किसान बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। पार्टी के नेताओं का कहना है कि आम तौर पर एक गाय तीन बछड़ों को जन्म तक ही अच्छा दूध देती है, इसके बाद उनका दूध का उत्पादन तेजी से गिरता है। गाय जब दूध देना बंद कर देती हैं तो किसान उन्हें छोड़ देते हैं। इसके साथ ही खेती के तरीकों में भी बदलाव आया है। पहले ही तरह अब बैलों से खेती नहीं की जाती है। बैलों की जगह ट्रैक्टर ने जगह ले ली है, इसलिए किसान तेजी से इन्हें छोड़ रहे हैं। किसान जब इन जानवरों को छोड़ देते हैं तो ये मवेशी सड़क पर घूमते रहते हैं और कई बार अमानवीय परिस्थितियों में पा जाते हैं। इसके साथ ही कई बार मवेशी खेतों में घुसने लगते हैं, जिसके कारण किसानों को कांटेदार तार की बाड़ लगानी पड़ती है। इसके कारण किसानों की लागत बढ़ जाती है।
उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के बीच ही रबी के सीजन में एक बार फिर से बड़े पैमाने पर सड़कों पर आवारा घूम रहे असंतोष का कारण बन रहे हैं। तमामा दावों के बाद और बड़े पमाने पर सरकारी गौशालाओं के निर्माण के दावों के बीच आवारा गौवंश सड़कों पर हैं और किसानों की खेती चर रहे हैं। धान की वाजिब कीमत न मिल पाने से नाराज किसानों की नाराजगी खेतों के चरे जाने से और बढ़ रही है।
दरअसल भारतीय जनता पार्टी  के हिंदुत्व  के मूल में गायों की सुरक्षा और हिंदुओं द्वारा पवित्र माने जाने वाले पशुओं के वध पर प्रतिबंध है। बीजेपी गायों को लेकर जहां पूरी तरह से संवेदनशील है, वहीं कांग्रेस हमेशा से इस मुद्दे पर मिली-जुली प्रतिक्रिया देती रही है। हालांकि अब कांग्रेस के पास एक मौका है, जिससे वह गायों के मुद्दे पर बीजेपी से एक कदम आगे निकलना चाहती है।  किसान आंदोलन ने कांग्रेस को गाय के साथ जोड़ने का मौका दे दिया है। आंदोलन का तरीका इस कदर प्रभावी है कि सरकार ने कांग्रेसियों को कहीं भी यात्रा निकालने का मौका तक नहीं दिया है। सर पर गाय की अस्थियों को रखे कांग्रेसी नेताओं की तस्वीरें सरकार की नींद उड़ा रहे हैं और वो लगातार बैकफुट पर आती जा रही है।
इन दिनो उत्तर भारत के कई सूबों की ही तर्ज पर नए कृषि कानूनों के खिलाफ उप्र के किसान भी आंदोलित हैं। यूपी कांग्रेस द्वारा कराए गए लगभग 50 लाख से अधिक किसानों के हस्ताक्षर इस बात के गवाह हैं। जाहिर की गाय के साथ किसानों को जोड़ते हुए कांग्रेस का आंदोलन उसे यूपी विधानसभा के आने वाले चुनावों में संजीवनी दे सकता है। किसान आंदोलन को लेकर अरसे बाद सपा प्रभावी तरीके से यूपी के सियासी मैदान में उतरी है।
जहां नए कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन बढ़ता ही जा रहा है। किसान संगठन संसद का विशेष सत्र बुला कर तीनों कृषि कानून वापस लेने की मांग पर अड़े हैं। वहीं यूपी में समाजवादी पार्टी किसानों के जरिए अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कवायद में है, जिसके लिए सपा किसानों के पक्ष में लामबंद हो गई है। कृषि कानून के खिलाफ बीते हफ्ते से ही सूबे के हर जिले में सपा कार्यकर्ता ‘किसान यात्रा’ निकाल रहे हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी अब लंबे समय के बाद जमीन पर उतरकर किसानों के हक में आवाज बुलंद कर रहे हैं।  
किसान हितैषी होने के दावों के बीच मोदी सरकार के खिलाफ अब तक किसान कई बार सड़क पर उतर चुके हैं, लेकिन इस बार किसानों की नाराजगी कुछ ज्यादा ही है. मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधार कानून को किसान अपने हित में नहीं मान रहे हैं। इसके खिलाफ किसान एकजुट होकर आवाज बुलंद करने लगे हैं। किसानों की सबसे ज्यादा नाराजगी भले ही हरियाणा और पंजाब में देखने को मिल रही है, लेकिन यूपी के किसानों में भी गुस्सा कम नहीं है। पश्चिमी यूपी के किसानों ने दिल्ली बॉर्डर को पिछले बीस दिनों से सील कर रखा है।
यूपी के विपक्षी दल किसान आंदोलन में खाद पानी भी देने का काम कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने किसान आंदोलन के बहाने किसानों की नाराजगी को लगातार उठा रही है। सपा के नेताओं का कहना है कि किसान यात्रा के जरिए उनकी  पार्टी केंद्र सरकार की नीतियों के बारे में किसानों को जागरूक करेगी। सपा नए कृषि कानूनों के खिलाफ सूबे के हर जिले में किसान यात्रा निकाल रही है और सरकार को घेर रही है।  यूपी के किसी जिले में साइकिल तो किसी में मोटरसाइकिल तो कुछ जिलों में बैलगाड़ी से सपा कार्यकर्ता और नेता यात्रा करते नजर आ रहे हैं।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में किसान किंगमेकर की भूमिका में हैं, सूबे की 300 विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाके की हैं। खासकर पश्चिम यूपी में तो किसान राजनीति की दशा और दिशा तय करते हैं। जबकि सूबे की प्रमुख विपक्षी पार्टी सपा का राजनीतिक आधार किसान और पशुपालक ही रहा है। हाल के दिनों में जिस तरह से बीजेपी ने ध्रुवीकरण के जरिए ग्रामीण इलाके में अपना राजनीतिक आधार बनाने में कामयाब हुई है और उपचुनाव में कांग्रेस जिस तरह से दो सीटों पर दूसरे नंबर पर रही है, उससे सपा की चुनौती खड़ी हो गई है। ऐसे में किसान आंदोलन के पक्ष में सपा का खड़ा होना एक मजबूरी बन गई है।
राजनैतिक जानकारों का कहना है कि यूपी में किसान एक अहम भूमिका अदा करते हैं। मौजूदा समय में किसान जिस एमएसपी गारंटी कानून की मांग कर रहे हैं, वो किसी एक प्रदेश के लिए नहीं बल्कि देश भर के किसानों के हित में है। यूपी में धान पर किसानों को एमएसपी नहीं मिल रहा है, जिसके चलते औसतन किसान 900 रुपये क्विंटल बेच रहे हैं। एमपी सरकार ने 128 लाख टन धान की खरीदारी की है जबकि यूपी सरकार ने 55 लाख टन की खरीदारी का लक्ष्य रखा था और अब तक सिर्फ 38 लाख ही टन खरीद सकी है। ऐसे में किसानों के अंदर गुस्सा बढ़ रहा है और 2022 के विधानसभा चुनाव में अब वक्त ज्यादा नहीं रह गया है, जिसके चलते सपा किसानों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए उनके पक्ष में खड़ी है।
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