Utterkatha: Farmer Movement: UP’s barns are heating up too!: उत्तरकथा: किसान आंदोलन : गरम हो हैं  रहे यूपी के भी खलिहान !

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देश में चल रहे किसान आंदोलन में अब महज पंजाब ही नही, उत्तर प्रदेश के किसान भी बड़े पैमाने पर कूद पड़े हैं। दरअसल फसल दर फसल भरपूर उत्पादन के बाद खाली हाथ रहने वाले यूपी के किसानों के सब्र का बांध छलक उठा है। यही कारण है कि कृषि‍ कानूनों का विरोध कर रहे हरियाणा और पंजाब के किसानों के समर्थन में पश्चिमी यूपी के किसान भी आ गए हैं। भारत बंद के दौरान भी सबसे ज्यादा असर पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिलों में दिखा जहां किसान सड़कों पर उतरे।
यूपी में किसानों की परेशानी का आलम यह है कि रिकार्ड उत्पादन के बाद धान न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधे दाम पर बिक रहा है वहीं पेराई सत्र के शुरु होने के एक महीने से से भी ज्यादा बीत जाने पर भी अब तक योगी सरकार गन्ना मूल्य घोषित नहीं कर सकी है। यूपी के किसानों के लिए एकमात्र नकदी फसल गन्ना किसानों के खेतों से चीनी मिलों तक पहुंच जाने के एक महीने बाद भी अब तक भुगतान के नाम पर टका नसीब नही हुआ है।
सबसे बुरा हाल धान के किसानों का है। सरकारी दावों में धान की उचित कीमत के बाद भी उत्तर प्रदेश में किसानों को अपनी उपज के औने फौने दाम ही मिल  रहे हैं।  खरीफ सीजन में जहां धान की सरकारी खरीद अभी एक चौथाई पूरी हुयी है वहीं खुले बाजार में 70 फीसदी से ज्यादा धान बिक चुका है। हालात इतनी खराब है कि प्रदेश के किसी भी जिले में किसानों को 900 से 1000 रुपये से ज्यादा प्रति कुंतल धान की कीमत नहीं मिल पा रही है।
सरकारी खरीद केंद्रों पर धान बेंचने आने वाले किसानों को पंजीकरण, गुणवत्ता और तमाम कारण बता कर वापस कर दिया जाता है। किसानों को मजबून मंडी में सरकारी रेट से करीब पांच-छह सौ रुपये कम दाम पर धान बेचना पड़ रहा है। इस साल प्रदेश सरकार ने धान की सरकारी खरीद का लक्ष्य पिछले साल के 50 लाख टन से बढ़ाकर 55 लाख टन करते हुए 1868 रुपये कुंतल का मूल्य तय किया है। इस साल प्रदेश में कुल 4,150 क्रय केंद्र खोले गए हैं और 12 एजेंसियां धान खरीद रही हैं। प्रदेश के धान उत्पादक जिलों में किसानों का धान न्यूनतम समर्थन मूल्य से 50 फीसदी कम कीमत पर खरीदा जा रहा है। खरीद केंद्रों पर पंजीकरण, लंबी लाइन और तमाम दिक्कतों के चलते किसानों का धान आधी कीमत पर बिचौलिए और आढ़तिए खरीद रहे हैं।
इस बार धान बेंचने के लिए जरुरी आनलाइन पंजीकरण और खेत के सरकारी दस्तावेज जमा करने की बाध्यता के चलते न तो छोटे व मझोले किसान और न ही बंटाई पर खेती करने वाले सरकारी खरीद केंद्र जा पा रहे हैं। किसानों को ऑनलाइन पंजीकरण की व्यवस्था से भी परेशानी हो रही है। इनमें ज्यादातर वे छोटे किसान हैं या खेतिहर मजदूर हैं जो दूसरे के खेत पर बटाई लेकर खेती कर रहे हैं। इन किसानों को ऑनलाइन पंजीकरण की व्यवस्था में खेत का खसरा-खतौनी का इंतजाम करने में दिक्कतें आ रही हैं। इसके अलावा धान बेचने के बाद पैसा खेत के मालिक के खाते में भेजा जा रहा है।
सरकारी केंद्रों पर धान बेंचने में किसानों के सामने गुणवत्ता के नियम भी आड़े आ रहे हैं। किसान नेताओं का कहना है कि सरकारी गाइडलाइन के अनुसार, धान का रिकवरी रेट 67 प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए। यही नियम महीन धान की खरीद में आड़े आ रहा है। धान में 15 से 16 फीसदी की नमी चावल की रिकवरी के लिए अच्छी मानी जाती है। सरकारी क्रय केंद्र कम नमी की बात कहकर भी किसानों का धान खरीदने से मना कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में प्रदेश में हुई बारिश से धान भीगने की शि‍कायत आई थी। ऐसे में क्रय केंद्रों ने धान में नमी अधि‍क बताकर किसानों से धान खरीदने को मना कर दिया।
उत्तर प्रदेश में किसानों की राजनीति का केंद्रबिंदु रहे गन्ना की दशा बीते कई सालों से बदतर होती जा रही है। गन्ना बकाया भुगतान जहां राजनीति का शासवत मुद्दा बन चुका है वहीं तीन साल से उसी एक दाम पर गन्ना बेंच रहे किसानों का गुस्सा इस बार उबाल खा रहा है। किसान राजनीति करने वाले या किसानों का नाम लेने वाले दल इसकी आंच महसूस कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक गन्ना उत्पादक राज्य है। देश के गन्ने के कुल रकबे का 51 फीसद एवं उत्पादन का 50 और चीनी उत्पादन का 38 फीसद उत्तर प्रदेश में होता है। देश में कुल 520 चीनी मिलों से 119 उत्तर प्रदेश में हैं। करीब 48 लाख गन्ना किसानों में से 46 लाख से अधिक किसान मिलों को अपने गन्ने की आपूर्ति करते हैं। यहां का चीनी उद्योग करीब 6.50 लाख लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार देता है। प्रदेश में गन्ना किसानों की बड़ी संख्या होने के नाते राजनीतिक रूप से यह बेहद संवेदनशील फसल है। वर्ष 2017 में यूपी में भाजपा सरकार बनने के बाद गन्ने के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 10 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई थी। इसमें सामान्य प्रजाति के गन्ने का मूल्य 315 रुपये और अग्रिम प्रजाति का मूल्य 325 रुपये प्रति क्विंटल किया गया था। इसके बाद से गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ा है। अब जबकि अगला विधानसभा चुनाव नजदीक है तो किसान संगठनों ने प्रदेश सरकार पर गन्ना का दाम नहीं बढ़ाने पर आंदोलन को तेज करने का ऐलान किया है।
सरकारी उपेक्षा का आलम यह है कि गन्ना पेराई सत्र शुरू हुए करीब एक माह हो चुका हैं लेकिन प्रदेश सरकार ने अभी तक गन्ना मूल्य घोषित नहीं किया है। पश्च‍िमी यूपी में 55 से ज्यादा चीनी मिलें हैं और गन्ना की सियासत का मुख्य आधार है। कृषि‍ कानून और गन्ना भुगतान को लेकर भारतीय किसान यूनियन ने 25 सितंबर को प्रदेश भर में आंदोलन किया था। मेरठ मंडल में किसानों का करीब 1,500 करोड़ रुपए भुगतान बकाया है। पेराई सत्र से पहले से ही किसान पूर्ण गन्ना भुगतान की मांग कर रहे हैं।  वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव। में गन्ना किसानों का समर्थन पाने के लिए केंद्र सरकार ने भी राहत पैकेज का ऐलान किया था। योगी आदित्यनाथ सरकार ने भी चीनी मिलों से 14 दिन के भीतर किसानों को भुगतान करने का वादा किया था लेकिन यह पूरी तरह से अमल में नहीं लाया जा सका। हालांकि आंकड़ों के मुताबिक पहले की समाजवादी सपा सरकार ने पांच साल में 95 हजार करोड़ रुपए का भुगतान अर्थात 19 हजार करोड़ रुपए का भुगतान प्रतिवर्ष किसानों को किया था। दूसरी ओर योगी सरकार में किसानों को 1.12 लाख करोड़ रुपए यानी औसतन 37 हजार करोड़ प्रतिवर्ष दिए जा चुके हैं। लेकिन प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के सामने वर्ष 2022 की विधानसभा चुनाव से पहले गन्ना किसानों को साधने की एक बड़ी चुनौती आ गई है। गन्ना मूल्य बढ़ोतरी के मुद्दे को हवा देकर विपक्षी पार्टियां यूपी में किसानों में नाराजगी भरना चाहती हैं।
गन्ना से लेकर गेहूं व धान के किसानों की साल दर साल हो रही बदहाली के चलते ही कृषि‍ कानूनों के विरोध में हरियाणाM और पंजाब के किसानों के समर्थन में पश्चिमी यूपी में गन्ना बेल्ट के किसान भी आ गए हैं। किसानों का आंदोलन आगे खिंचा तो न केवल यह पश्चिम से निकल पूरे यूपी में फैलेगा बल्कि सरकार को भी बड़े पैमाने पर नाराजगी झेलनी पड़ेगी।
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