Trump is Clinton’s way on Taliban: तालिबान पर क्लिंटन के रास्ते चले ट्रम्प

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क्या अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप  काबुल में तालिबान का खात्मा करने में कामयाब हुए हैं। ये कट्टरपंथी अफगानिस्तान को वैश्विक आतंक का पनाहगाह बनाने में सफल हो सके हैं। शपथ ग्रहन के बाद क्लिंटन प्रशासन के कार्यों को डोनाल्ड जे ट्रम्प आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटे थे, ताकि वह अपने पद पर रहने के दौरान महाभियोग को हटा सके और 2020 के चुनावों में अपनी जीत को सुनिश्चित कर सकें। इससे संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के भावनात्मक स्वास्थ्य पर असर पड़ा और लगता है कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के समग्र हितों के अनुरूप चुनिंदा नीतियों में उनके निर्णय को प्रभावित किया है।
उदाहरण के लिए उन्होंने जिस तरीके से युद्ध की नीति अपना कर पीठ में छुरा घोपा है (इसके लिए और कोई दूसरा शब्द नहीं था) वे कुर्दों के खिलाफ लगातार लड़ रहे थे, इन्होंने बड़ी मात्रा में इराक में आईसिस को नष्ट करने में उनकी सहायता की थी और सीरिया में लगातार तबाही के विरुद्ध लड़ रहे थे।इसमें ट्रम्प ने जार्ज एच. डब्ल्यू. बुश का उदाहरण दिया जो सद्दाम हुसैन की घातक बमबारी से सैनिकों को उड्डयन क्षेत्र से दूर रखते थे, ताकि इराकी तानाशाह के हवाई प्रांत कुर्डिश (शिया) के गांवों को तबाह कर सके। दलदार और चेम्बरलेन की सेना ने चेक को हिटलर जर्मनी के साथ सीमा पर अपने किले को छोड़ने के लिए मजबूर किया और बाद में डोनाल्ड ट्रम्प ने खुद ही कुर्डिश सेना को धोखा दिया और उनके विध्वंसक हथियार को नष्ट किया। वर्तमान राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का नेतृत्व व्यापक अतिवाद द्वारा हमारे हितों के लिए किए गए खतरे के बारे में किया गया था और इसके बारे में बराक ओबामा ने अटलांटिक से इंडो-पैसिफिक तक धुरी बनाने का प्रयास किया था।
महाभियोग प्रक्रिया की हवा और अमेरिका के ज्यादातर मीड़िया ने उनके खिलाफ जारी दुर्व्यवहार के चलते उनके कई जर्नलों रोजर स्टोन या जनरल फ्लाएन जैसे लोगों को बंगले में कैद कर दिया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इस बात से उनकी प्रतिक्रिया पर बुरा असर हुआ है जिसमें कि एफ. बी. आई के एंड्रयू मैककेब जैसे सिविल सेवकों की पेंशन काट दी गई और अन्य लोगों की जानकारी तक पहुँच से वंचित कर दिया गया, जैसे कि जेम्स क्लेपर के साथ राजनीतिक कारणों से किया गया। अफसरशाही (अभी भी काफी हद तक प्रभावी) के कामकाज से हटकर तो कइयो ने क्लिंटन का समर्थन किया है, मगर उन्हें इस तरह सजा देने की मिसाल कायम कर दी है।डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल को दो कालों में विभाजित किया जा सकता है। पिछले वर्ष की दूसरी शुरूआत में अमेरिका के 45 वें राष्ट्रपति के उत्पीड़न और अत्याचार के भीषण तूफान ने अपने कुछ निर्णयों के बारे में स्पष्ट रुप से कहा कि डोनाल्ड ट्रम्प का कार्यकाल दो चरणों में विभाजित किया जा सकता है। यह समय अप्रत्याशित नीतिगत आपदाओं विशेषकर आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक युद्ध के समय रहा है। यह जिमी कार्टर थे जिनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ेु्रॅल्ल्री६ इ१९ी९्रल्ल२‘्र ने साउदियों रॉयल्स को स्टीरॉयवाद में शामिल करने के लिए उकसाने की योजना तैयार की ताकि अफगानिस्तान में सोवियत आकाओं से युद्ध करने वाले उग्रवादियों के एक स्वयंसेवी पूल का निर्माण किया जा सके।
अगर कार्टर या रीगन ने सोवियत जनता के खिलफ वहाबी उग्रवादियों की बजाय पश्टुन और दूसरे उदार अफगान राष्ट्रवादियों की जिम्मेदारी मान ली होती तो दुनिया उन समस्याओं और असुरक्षाओं से बचे रहती जो अब तक इसे झेलनी पड़ी हैं। प्रसन्नता को देखते हुए कहा जा सकता है कि अटलांटिस्टिस्ट विश्व की विशेषता है। कार्टर रीगन ने कभी भी वैश्विक धरातल पर तार्किक अतिवाद के प्रसार के अमूल्य योगदान की निंदा नहीं की थी वरन जिमी कार्टर के मामले में उन्हें 2002 में नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था। राष्ट्रपति क्लिंटन द्वारा अपनाई गई नीतियों ने चीन के अंतगर्त महाशक्ति बनने की दिशा में कदम बढाए हैं। इससे अमेरिका के वित्तीय और विनिर्माण क्षेत्रों को गिराने के लिए भी कारण बन गये और इसलिए यह एक आश्चर्य की बात थी कि जब क्लिंटन की नीतियों का कुल मिलाकर जार्ज डब्ल्यू बुश का पालन उस ढंग से हुआ जो राष्ट्रपति अल गोर द्वारा की गई होती। बुश ने पाकिस्तान की सेना को अफगान नीति की आउटसोर्सिंग में कार्टर, रीगन और किलटन का इस्तेमाल किया, ठीक उसी तरह जैसे चीन ने भारत के प्रति अपनी सीमा नीति आउटसोर्स की है।
ओबामा ने अमरीका को ऐसे विषैले रास्ते से दूर रखने की कोशिश की थी लेकिन क्लिंटन के दबाव ने उन्हें अपने प्रशासन की नीति में रोक दिया था।राष्ट्रपति ट्रम्प ने इसके सुधार की मांग की लेकिन उनकी “दुरुपयोग के आघात” के बाद के चरण में फिर से चालबाज रावलपिंडीको न केवल उग्रवादियों में रक्षक माना गया है बल्कि तालिबान के डरावनी दिनों से लेकर अब तक के अफगान लोगों में जिन्होंने अपनी पूर्व की उदारवादी रसायन शास्त्र की ओर लौटते देखा है। बेहतर होता कि इंक्लटन काबुल में तालिबान को स्थापित करने में, विशेष भूमिका निभाते। लेकिन तेजतर्रार ग्रुप ने अफगानिस्तान को अतिवाद के उसी प्रजनन स्थल में बदल दिया जो पहले उसी समूह के अधीन था। तेल की कीमतें कम करने की एक वजह हो सकती थी। अब संभावना नहीं है की जल्द ही तेल की कीमत कम हो जाएगा। यह अधिक से अधिक 50 डॉलर प्रति बैरल स्थिर हो जाएगा। इससे जीसीसी के सत्तारूढ़  के लिए चुनौती सामने आएगी और यह निश्चित है कि उन्हें काफी आर्थिक पीड़ा होगी तथा इसके परिणामस्वरूप समाज की कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। राष्ट्रपति ट्रम्प (उनके नये सलाहकार एडोर्गान) द्वारा अब वहाबी इंटरनेशनल को दिए जाने वाले प्रोत्साहन के कारण आर्थिक संकट के कारण सशस्त्र उग्रवादियों की भर्ती हो सकती है जो यूरोप, मध्य पूर्व और अफगानिस्तान के कुछ भागों सहित अनेक देशों में शामिल हो सकते हैं।यह दुनिया भर के ऐसे तत्वों के लिए एक स्वागत स्थल होगा। घंटो उनकी मदद के लिए वहाबी, जमलंबे अरसे से अपने को छिपाने में माहिर हैं।  इस बार उन्होंने 1979 के बाद खुले तौर पर इसका विरोध किया था और उस समय मुशर्रफ को पंचभुज के लिए राजी करने में सफल नहीं हुए थे। मध्य-पूर्व में चल रहे उथल-पुथल से तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान आतंक के विश्वव्यापी कारखाना बन जाएगा। इससे जाहिर हो रहा है की क्या डोनाल्ड ट्रम्प तालिबान पर क्लिंटन के रास्ते पर जा रहे हैं? इसका दुनिया पर क्या असर होगा?

-एमडी नलपत
(लेखक द संडे गार्डियन के संपादकीय निदेशक हैं। )

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