Three new laws related to agriculture are becoming the problem of farmers: किसानों की समस्या बन रहे कृषि से जुड़े तीन नए कानून

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हाल ही में, हरियाणा में किसानों के एक आंदोलन पर पुलिस द्वारा बर्बर लाठीचार्ज किया गया है। किसान सरकार द्वारा पारित तीन नए अध्यादेशों या कानून का विरोध कर रहे थे। किसानों से जुड़े तीनो नए कानून देखने मे भले प्रगतिशील लगें बल्कि असल मे, वे प्रतिगामी सोच के साथ ड्राफ्ट किये गए हैं और धीरे धीरे किसानों को, जमाखोर व्यापारियों और कॉरपोरेट, मल्टीनेशनल कंपनियों के रहमोकरम पर छोड़, अंतत: किसान विरोधी ही साबित होगे। एक पुराना वादा है सरकार का कि, 2022 तक किसानों की आय दुगुनी कर दी जाएगी।
2014 का एक और बहुत मशहूर वादा है, जो सरकार के संकल्पपत्र, यानी चुनावी घोषणापत्र में, दर्ज है,  न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी, स्वामीनाथन कमेटी की अनुशंसा के अनुसार कर दिया जाएगा। पर 6 साल में से 6 महीने कोरोना के घटा दीजिए, तो भी, इस वादे पर सरकार ने कोई काम नहीं किया। यह वादा भी जुमला और धोखा ही रहा। कोरोना एक बड़ी समस्या है, पर कोरोना के पूर्व सरकार ने किसान हित मे जो कदम उठाए हैं उन्हें भी तो सरकार बताये।
यह नए अध्यादेश, धीरे धीरे एमएसपी की प्रथा को खत्म कर देंगे, कांट्रेक्ट फार्मिंग के रूप में एक नए प्रकार के जमीदारवाद को जन्म देंगे और आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के साथ जमाखोरों की एक नयी जमात पैदा कर देंगे, और किसान, प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यास के पात्र सरीखे बन कर रह जायेंगे। मंडियां अप्रासंगिक हो जाएंगी। धीरे धीरे, किसान, आढ़तिया और जमाखोर व्यापारियों के रहमोकरम निर्भर हो जाएंगे। यह सेठ साहूकार के घृणित संजाल में फंसने जैसा होगा। कॉरपोरेट अगर इस क्षेत्र में घुसा तो, खेती ही नहीं, किसानों की अपनी अस्मिता का स्वरूप ही बदल जायेगा। यह अध्यादेश कियानो के हित मे नहीं है। इसका विरोध उचित है। सरकार को किसानों की शंकाओं का समाधान करना चाहिए। आप सब से अनुरोध है कि नए कानून पढें और उनका विश्लेषण करें। इन्ही नए कानूनो को लेकर किसानों में जबरदस्त आक्रोश है और इसकी अभिव्यक्ति भले ही अभी हरियाणा औ? पंजाब में दिख रही हो, पर विरोध की सुगबुगाहट हर जगह है।
यह आक्रोश जब सड़को पर उतरेगा तो इसका समाधान, केवल पुलिस के बल पर ही सम्भव नहीं है और बलप्रयोग हर असंतोष, प्रतिरोध, विरोध और आंदोलनों का समाधान होता भी नहीं है। इन तीनों अध्यादेशों के बारे में किसानों के नेता और राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने एक वेबसाइट पर एक लंबा लेख लिखा है, जिंसमे, उन्होंने अपनी अपनी शंकाएं और आपत्तिया स्पष्ट की हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिंसमे, एक तरफ सरकार व अनेक अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि कोरोना काल में सिर्फ कृषि क्षेत्र ही देश की आर्थिकी को जिंदा रखे हुए हैं, दूसरी तरफ केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद बन्द कर के किसानों का शोषण करने का आधार तय कर रही है।
आज भी किसानों को उनकी फसलों का उचित एमएसपी नहीं मिल पा रहा है। यदि सरकार ने एमएसपी पर किसानों की उपज खरीदना बंद कर दिया तो खेती-किसानी के साथ-साथ देश की खाद्यान सुरक्षा भी बड़े संकट में फंस जाएगी। कृषि अर्थशास्त्र के जानकर और किसानों की समस्याओं का नियमित अध्ययन करने वालों का यह मानना है कि, इन अध्यादेशों के द्वारा, भविष्य में, सरकार एमएसपी की प्रथा को ही धीरे धीरे  खत्म कर देगी।
हालांकि, केंद्र सरकार यह दावा कर रही है कि इन अध्यादेशों के किसानों का हित होगा, लेकिन यह कैसे होगा, यह, बता नहीं पा रही है। इन कानूनों के आलोचकों का मानना है कि, इससे कॉरपोरेट और बड़ी कम्पनियों को ही लाभ पहुंचेगा।   एमएसपी के खिलाफ, पूंजीवादी लॉबी शुरू से ही पड़ी है और वह लॉबी देश के कृषि का स्वरूप बदलना चाहती है। यह तो जगजाहिर है कि सरकार चाहे यूपीए की हो, या एनडीए की, दोनो ही सरकारोँ का आर्थिक दर्शन और सोच उद्योगों के प्रति झुका हुआ है और खेती की उपेक्षा दोनो ही सरकारों के समय की गयी है। केंद्र सरकार के ऊपर विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ का दबाव निरन्तर पड़ता रहता है कि, किसानों को मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य और हर प्रकार की सब्सिडी केंद्र सरकार समाप्त करे।
इन सब्सिडी और सुविधाओं को जानबूझकर एक फिजूलखर्ची के रूप में पूंजीवादी लॉबी प्रचारित करती रही है। पहले भी यूपीए और एनडीए की सरकारों ने एमएसपी को खत्म करने की तरफ कदम बढ़ाने की असफल कोशिश की थी, लेकिन किसानों के दबाव के सामने उन्हें अपने कदम पीछे खींचने पड़े। अब सरकार ने कोरोना आपदा में एक अवसर की तलाश कर लिया है और लॉकडाउन का अनैतिक तरीके से लाभ उठाकर उसने यह तीनों अध्यादेश जारी कर दिए। सरकार को यह उम्मीद थी कि, इस लॉकडाउन काल मे इन कानूनों का विरोध नहीं होगा, पर सरकार का यह अनुमान गलत साबित हुआ और हरियाणा में जबरदस्त विरोध हुआ।
किसानों के संघ के एक पदाधिकारी, के अनुसार,
” किसानों के विरोध को भांपने के लिए अब की बार मक्के और मूंग का एक भी दाना एएसपी पर नहीं खरीदा गया, आगे आने वाले समय में केंद्र सरकार गेहूं और धान की एमएसपी पर खरीद भी बन्द करने की दिशा में बढ़ रही है।” अब उन तीन कृषि अध्यादेशों की एक संक्षिप्त चर्चा करते हैं।
पहला अध्यादेश है फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स ( प्रोमोशन एंड फेसिलिटेशन ) आॅर्डिनेंस.
इस कानून के अंतर्गत ‘एक देश, एक कृषि मार्केट’ बनाने की बात कही गयी है और कोई भी पैन कार्ड धारक व्यक्ति, कम्पनी, सुपर मार्केट, किसी भी किसान का माल किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं। कृषि माल की बिक्री कृषि मंडी समिति  में ही होने की अनिवार्य शर्त के हटा ली गयी है।
कृषि माल की जो खरीद कृषि मंडी मार्केट से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स या शुल्क नहीं लगेगा। एपीएमसी मार्केट व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी क्योंकि इस व्यवस्था में टैक्स व अन्य शुल्क लगते रहेंगे।
किसानों का माल खरीद सकने वाले लोग, तीन दिन के अंदर किसानों को भुगतान करेंगे।
सामान खरीदने वाले व्यक्ति या कम्पनी और किसान के बीच विवाद होने पर इसका समाधान एसडीएम करेंगे।
एसडीएम, द्वारा सम्बन्धित किसान एवं माल खरीदने वाली कम्पनी के अधिकारी की एक कमेटी बना के आपसी बातचीत के जरिये समाधान के लिए 30 दिन का समय दिया जाएगा।
अगर बातचीत से समाधान नहीं हुआ तो एसडीएम द्वारा मामले की सुनवाई की जाएगी।
एसडीएम के आदेश से सहमत न होने पर जिला अधिकारी के पास अपील का प्राविधान है। एसडीएम और जिला अधिकारी को 30 दिन में समाधान करना होगा।
किसान व कम्पनी के बीच विवाद होने की स्थिति में इस कानून के अंतर्गत अदालत में कोई बाद दाखिल नहीं किया जा सकेगा।
अब इस कानून से किसानों के समक्ष क्या समस्याएं आ सकती है, उसका भी विवरण पढ़े।
आपसी विवाद होने की स्थिति में, न्यायालय का कोई विकल्प नहीं रखा गया है।
प्रशासनिक अधिकारी अक्सर सरकार के दबाव में रह सकते हैं और यदि, सरकार का झुकाव व्यापारियों व कम्पनियों की तरफ होता है तो न्यायोचित समाधान की संभावना कम हो सकती है।
न्यायालय सरकार के अधीन नहीं होते हैं और न्याय के लिए अदालत में जाने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। जिसका ध्यान इस कानून में नहीं रखा गया है।
सरकार ने इस बात की कोई गारंटी नहीं दी है कि प्राइवेट पैन कार्ड धारक व्यक्ति, कम्पनी या सुपर मार्केट द्वारा किसानों के माल की खरीद एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर ही होगी।
(लेखक यूपी कैडर के पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)

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