Take care of the mood of the elderly in lockdown: लॉकडाउन में बुजुर्गों की मनोदशा का रखें ख़याल 

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दुनिया भर में कोरोना संक्रमण की वजह से आपातकाल की स्थिति है। कोविड- 19 वायरस से तबाही मचा कर दिया है। महामारी ने इस तरह के हालात पैदा कर दिए हैं कि लोग घरों में बंद हैं। पूरा देश लॉकडाउन में हैं। अमेरिका और चीन जैसी महाशक्तियां इस वायरस के सामने घुटने टेक दिया है। सभ्यताओं पर संकट खड़ा हो गया है। संस्कृतियों पर ग्रहण लग गया है। इंसानों में मानवीयता का संकट खड़ा हो गया है। समाज के एक वर्ग के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। दुनिया वैश्विक मंदी की तरफ़ बढ़ रही है। कोरोना का भय इतना है कि लोग भयवश आत्महत्या कर रहे हैं। घरों में घरेलू हिंसा बढ़ रही हैं। बुजुर्गों की मनोदशा बिगड़ रही है। वह अकेलापन महसूस कर रहे हैं। जीवन को लेकर उनके भीतर डर पैदा हो गया है। समाज में नई प्रकार की हिंसा पनप रही है। लोग बगावत पर उतरने को बेताब दिखते हैं। आत्महत्या की प्रवित्ति तेजी से पनप रही है। आनेवाला वक्त भयावहता की घंटी बजा रहा है।
मुम्बई की एक महिला ने अस्पताल में आत्महत्या कर लिया। वह कोरोना संक्रमित थी। उसने अस्पताल के बाथरूम में अपने दुपट्टे से आत्महत्या कर लिया।
विकसित देशों में सरकारों के मंत्री और बौद्धिक लोग भी हताशा में आत्महत्या कर लिया। यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। लॉकडाउन होने से लोग अवसाद का शिकार बन रहे हैं। आमदनी ठप होने घरेलू हिंसा बढ़ रही हैं। सुरक्षा बलों पर हिंसक हमले हो रहे हैं। पंजाब में निहंग ने एक पुलिस वालों का हाथ ही काट दिया। मुम्बई में घर आने के लिए हजारों लोग बांद्रा स्टेशन पर उमड़ पड़े। कोरोना संक्रमण की वजह से लोग अंतिम संस्कार में भी नहीँ जा रहे हैं। महिलाओं को मुखाग्नि देनी पड़ी है। भारी तादात में डाक्टर, नर्स के साथ पुलिस अफसर और जवान संक्रमित हुए हैं। कई डाक्टरों की मौत हो चुकी है। स्थिति भयावह है। मानव जीवन के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है। यह ऐसा दौर है जिसे हम ‘भूतो न भविष्यति’ कह सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी ने लॉकडाउन को दूसरी बार 03 मई तक बढ़ा दिया है। जिसकी वजह से स्थिति और विकट होने वाली है। हालांकि सरकार के पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीँ है। सरकार देश की सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित है। लेकिन समस्याएं तो हैं, उसे हम इनकार नहीँ सकते हैं। लॉकडाउन की वजह से बुजर्गों की स्थिति बिगड़ रही है। घर में कैद होने से मनोरोगी होने की अधिक सम्भावना बढ़ गई है। इस हालत में हमें बुजुर्गों की हर सुविधाओं का ख़याल रखना होगा। क्योंकि हमारे पास  मन को बहलाने के लिए कई उपाय हैं। जिसमें टीवी, मोबाइल, पुस्तकें , वीडियो गेम, लूडो, गीत- संगीत के साथ दूसरे विकल्प भी हैं। आम तौर पर बुजुर्गों को परिवारों में अकेला देखा जाता हैं। उनसे कोई बात करना पसंद नहीँ करता। घर में सलाह टक नहीँ मानी जाती है। जिसकी वजह से स्थिति बिगड़ती है। लॉकडाउन यह स्थिति और बिगाड़ सकता है। आप इसका पूरा ख़याल रखें। घर में कोई बुजुर्ग माँ- बाप और भाई है तो  उसका विशेष ध्यान रखें। यह मेरा सामाजिक और पारिवारिक दायित्व के साथ नैतिक फ़र्ज भी है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एआरटी सेंटर में तैनात वरिष्ठ परामर्शदाता एवं मनोचिकित्सक डा. मनोज तिवारी लॉकडाउन में बुजुर्गों की मनोस्थिति का अच्छी तरह विश्लेषण किया है। इन सुझाओ के जरिये हम बुजुर्गों को  इस भय से निकाल सकते हैं। क्योंकि उनके अंदर कोरोना संक्रमण को लेकर काफी भय है। लॉकडाउन में बुजुर्गों को कभी अकेला न रहने दें। अकेलापन उनके भीतर निराशा और हताशा का भाव पैदा करता है। जिसकी वजह से जीवन में नैराश्यता का भाव पैदा होता है। उम्र दराज लोगों से हमेशा बातचीत करते रहिए। उनके भीतर संवाद शून्यता का भाव पैदा न होने पाए। उन्हें यह न महसूस हो कि वह परिवार में अलग- थलग हैं, उनकी चिंता किसी को नहीँ है। बुजुर्गो में जीवनसाथी की रिक्तता के बाद उदासीनता आ जाती है। वह अपनी पीड़ा और इच्छा किसी से व्यक्त नहीँ कर पाते उस स्थिति में उनका खास ध्यान दिया जाय। लॉकडाउन की वजह से ऐसी स्थित बन सकती है या बनी होंगी।
डा.तिवारी के अनुसार उपेक्षा की वजह से बुजुर्गों में आत्मविश्वास की कमी होने लगती है। जिसका असर उनकी जीवन शैली पर पड़ता है। उनके दिमाग में इस व्यवहार से यह भावना उभर आती है कि अब उनका जीवन किसी काम का नहीँ। परिवार के लिए उन्होंने ने जो बलिदान दिया ढलती उम्र में वह मूल्यहीन साबित हो रहा है। अगर बुज़ुर्ग किसी गम्भीर बीमारी जैसे कैंसर, सुगर, हार्ट , दमा या अपंगता के शिकार हैं तो मुशिकलें और बढ
जाती हैं। इसका सीधा असर उनके स्वस्थ्य पर पड़ता है। इसलिए उन्हें यह कभी भी महसूस न होने दिया जाय कि आपातकाल या सामान्य दिनों में वह अकेले हैं। अगर वह अपंग हैं तो उनकी भरपूर देखभाल की जानी चाहिए। हमें उनकी सुविधाओं का ख़याल रखते हुए खुद बैसाखी बन जाना चाहिए। अगर वह सरकारी सेवा से रिटायर हुए हैं और पेंशन पाते हैं तो उनके पैसे का उपयोग उनकी मर्जी से किया जाय। जहाँ वह कहें उसे खर्च किया जाय। अगर उन्हें पेंशन के पैसों की ज़रूरत है तो उन्हें दिया जाय। इससे बुजुर्गों के भीतर एक संतुष्टि का भाव उत्पन्न होगा और उनकी मनोस्थित पर प्रतिकूल प्रभाव नहीँ पड़ेगा।
परिवार में हम थोड़ी सी सतर्कता से बुजुर्गों की मनोदशा को जीत कर उनके जीवन को और खुशहाल बना सकते हैं। डा. तिवारी के अनुसार रोजमर्रा की जरूरतों को समय से एवं सही तरीके से पूर्ण किया जाए। हमें उनमें एकदम घुलमिल जाना चाहिए। घर के सदस्य बुजुर्गों से नियमित बात करते रहें। उनकी बातों को सुनने का प्रयास करें तथा यह प्रदर्शित करें की परिवार के सदस्य उनकी बातों को गंभीरता से लेते हैं। उनकी सलाह को प्रथमिकता भी दें। परिवार के बच्चों को बुजुर्गों के साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। बच्चों के साथ बुजुर्गों का मन खूब लगता है। उस स्थिति में बच्चों को उनके साथ रखना चाहिए। अगर वे पढ़े- लिखें हैं तो बच्चों के लिए सबसे अच्छे ट्विटर के साथ मार्गदर्शक भी बन सकते हैं। बच्चों के साथ बुजुर्गों का समय आनंद पूर्वक गुजरता है। बुजुर्ग बच्चों को कहानियां एवं किस्से सुना करके ना केवल अपना समय व्यतीत करते हैं बल्कि इससे बच्चों को भी नैतिक एवं संस्कार की शिक्षा का ज्ञान भी देते हैं।
परिवार में घर के जिस स्थान पर बुजुर्ग रहते हैं उसे हमेशा साफ सुथरा रखें। उनके कपड़ों की धुलाई नियमित करें। बिस्तर कभी गंदे ना रखें। अगर वह बीमार हैं तो विशेष सफाई रखें। कोशिश कर उन्हें बाई के सहारे न छोड़े। ओल्ड होम में उन्हें न ले जाएँ। समय निकाल कर यह जिम्मेवारी खुद निभाएं। अपनी जुबान से अपशब्द का प्रयोग बिल्कुल न करें। ढलती उम्र में मानसिक स्थिति कमजोर होती है, उस दौरान उनसे कई गलतियां स्वाभाविक हैं। उसे बिल्कुल नजरअंदाज करें। खानपान की सुविधा का भी ध्यान दीजिए। आम तौर पर बच्चों और बूढो में खाने- पीने की अधिक इच्छा होती है। घर में जो भी खाद्य वस्तु लाएं वह सबसे पहले बुजुर्गों को तक उपलब्ध कराएं। इस तरह की सुविधाअों का ख़याल रख हम उनकी जीवन आशा को और अधिक बढ़ा सकते हैं। लॉकडाउन जैसे भय और पैदा होनेवाले अवसाद से उन्हें निकाल कर सुखद जीवन शैल उपलब्ध करा सकते हैं।
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