Supreme Court: हत्या से पूर्व रिकॉर्ड या शूट किए गए मैसेज को डाइंग डिक्लरेशन माना जाए? सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर

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तलाक के बोझ तले कब तक दबी रहेंगी मुस्लिम औरतें
तलाक के बोझ तले कब तक दबी रहेंगी मुस्लिम औरतें

Aaj Samaj, (आज समाज),Supreme Court ,नई दिल्ली:

दिल्ली आबकारी नीति:सीबीआई के बाद ईडी ने पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ आरोप पत्र किया दाखिल

दिल्ली आबकारी नीति से जुड़े कथित घोटाला मामले में अब सीबीआई के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया है। मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में प्रवर्तन निदेशालय मनीष सिसोदिया को आरोपी बनाया है। आबकारी नीति मामले में मनीष सिसोदिया 29 वें आरोपी हैं। ईडी ने मनीष सिसोदिया के खिलाफ दिल्ली के राउज एवेन्यु कोर्ट में ढाई हजार पेज से ज्यादा का आरोपपत्र दाखिल किया है।

ईडी ने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसोदिया को 9 मार्च को तिहाड़ जेल से गिरफ्तार किया था, जहां उन्हें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा जांच की जा रही एक अलग मामले के सिलसिले में रखा गया था। वही सीबीआई ने 2021-22 के लिए अब रद्द की जा चुकी दिल्ली आबकारी नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित भ्रष्टाचार के सिलसिले में 26 फरवरी को आम आदमी पार्टी (आप) के नेता को गिरफ्तार किया था।

*तलाक के बोझ तले कब तक दबी रहेंगी मुस्लिम औरतें! अब तक दायर 8 याचिकाओं पर SC जल्द करेगा फैसला*

तलाक-ए-हसन सही है या नहीं, भारत की सुप्रीम कोर्ट अब इसकी वैधता पर विचार किया जाएगा।  तलाक-ए-हसन की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में आठ याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें एक याचिका गाजियाबाद की रहने वालीं बेनजीर हिना की भी है, जिसे उसके पति ने तलाक-ए-हसन के तहत तलाक दे दिया था।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। बेंच ने कहा कि वो व्यक्तिगत वैवाहिक विवादों में नहीं उलझेगी और सिर्फ तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। तलाक-ए-हसन इस्लाम में तलाक देने का एक तरीका है, जिसमें पति अपनी पत्नी को तीन महीने में तीन बार तलाक बोलकर तलाक देता है।

तलाक-ए-हसन क्या है? ये जानने के लिए पहले ये समझना जरूरी है कि इस्लाम में तलाक की क्या व्यवस्था है? दरअसल, इस्लाम में तलाक देने के तीन तरीके हैं। पहला है तलाक-ए-अहसन, दूसरा है तलाक-ए-हसन और तीसरा है तलाक-ए-बिद्दत। अब इन तीन तरीकों में से एक तलाक-ए-बिद्दत गैरकानूनी बन चुका है। इसे आम भाषा में तीन तलाक भी कहा जाता है।

*  तलाक-ए-अहसनः इसमें शौहर बीवी को तब तलाक दे सकता है, जब उसका मासिक धर्म न चल रहा हो। इसे तीन महीने में वापस भी ले लिया जा सकता है, जिसे ‘इद्दत’ कहा जाता है। अगर इद्दत की अवधि खत्म होने के बाद भी तलाक वापस नहीं लिया जाता तो तलाक को स्थायी माना जाता है।

* तलाक-ए-हसनः इसमें तीन महीने में तीन बार तलाक देना पड़ता है। ये तलाक बोलकर या लिखकर दिया जा सकता है। इसमें भी तलाक तभी दिया जाता है जब बीवी का मासिक धर्म न चल रहा हो। इसमें भी इद्दत की अवधि खत्म होने से पहले तलाक वापस ले सकते हैं। इस प्रक्रिया में तलाकशुदा शौहर और बीवी फिर से शादी कर सकते हैं, लेकिन ये तभी होता है जब बीवी किसी दूसरे व्यक्ति से शादी कर ले और उसे तलाक दे दे। इस प्रक्रिया को ‘हलाला’ कहा जाता है।

* तलाक-ए-बिद्दतः इसमें शौहर, बीवी को एक ही बार में तीन बार बोलकर या लिखकर तलाक दे सकता है। तीन बार तलाक के बाद शादी तुरंत टूट जाती है। अब तीन तलाक देना गैर कानूनी है और ऐसा करने पर 3 साल तक की सजा का प्रावधान है। इस प्रक्रिया में भी तलाकशुदा शौहर-बीवी दोबारा शादी कर सकते थे, लेकिन उसके लिए हलाला की प्रक्रिया को अपनाया जाता है।

*  2017 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने ट्रिपल तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को असंवैधानिक ठहराया। कोर्ट ने सरकार को तीन तलाक को रोकने के लिए कानून बनाने का आदेश दिया।

* सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरकार ने दिसंबर 2017 में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल पेश किया। ये बिल लोकसभा से तो पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में अटक गया।

*  इसके बाद 2019 में आम चुनाव के बाद सरकार ने कुछ संशोधन के साथ इस बिल को फिर पेश किया। इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों से पास हो गया।

*  ये कानून तीन तलाक पर रोक लगाता है। तीन तलाक देने वाले दोषी पुरुष को 3 साल तक की सजा हो सकती है। इसके साथ ही पीड़ित महिला अपने और अपने नाबालिग बच्चे के लिए गुजारा भत्ता भी मांग सकती है।

*हत्या से पूर्व रिकॉर्ड या शूट किए गए मैसेज को डाइंग डिक्लरेशन माना जाए? सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर*

क्या मृत्यु या हत्या से पूर्व रिकॉर्ड या शूट किए गए ऑडियो-वीडियो मैसेज को डाइंग डिक्लरेशन माना जा सकता है। इसी सवाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इस याचिका के माध्यम से ऑडियो-वीडियो रिकार्डिंग को सबूत मानने कथित हॉरर किलिंग की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई है। इस याचिका में राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की गई है। राजस्थान हाईकोर्ट ने एक युवती की हॉरर किलिंग की जांच सीबीआई से कराने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था।

यह याचिका उमा पालीवाल ने दायर की है। मरने वाली युवती ने उमा पालीवाल को ही एक मैसेज भेजकर अपनी हत्या की आशंका व्यक्त की थी।

दरअसल उदयपुर के झल्लारा थाने में 27 मई 2022 कोमें एक मामला दर्ज किया गया था। जिसमें हत्या करने, सबूत मिटाने और आपराधिक साजिश रचने के आरोप लगे थे।

याचिकाकर्ता ‘विशाखा संगठन’ में वरिष्ठ अधिकारी हैं और उन्हीं के संगठन में काम करने वाली एक युवती ने अपनी पसंद से शादी करने के लिए अपने ही परिजनों द्वारा हत्या की आशंका जताई थी।

आरोप है कि युवती को उसके परिजनों ने 10 मई 2022 को बुरी तरह से पीटा था।केअगले दिन युवती का शव उसके कार्यस्थल पाया गया था। मरने से पहले युवती ने एक वीडियो मैसेज रिकॉर्ड कर उमा पालीवाल को भेजा था, जिसमें हत्या की आशंका जताई थी।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि युवती की हत्या के मामले में पुलिस ने जांच में खानापूर्ति कर मामले को निपटा दिया है और चार्जशीट में सिर्फ पीड़िता की मां को आरोपी बनाया है।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाया है कि क्या मौत से पहले रिकॉर्ड किए गए वॉइस या वीडियो मैसेज को मृत्यु पूर्व बयान माना जा सकता है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।

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